ऐ शेखपुरा मेरी जान💗 हो तुम।
मेरे गांव का वह कच्चा मकान हो तुम।
जहां खेल-कूद कर हम बड़े हुए,
उस बचपन से लेकर जवानी तक की पहचान हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
कभी किसी की खौफ की कहानी,
तो वही राजो सिंह की कल्पना का आकार हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
गणेश होटल की कभी ना भूलने वाली समोसा हो,
तो वही निताई चौक के पास मिलने वाली तीखे गोलगप्पे का स्वाद हो तुम।
बंगाली चाय की सौंधी-सी महक हो।
चांदनी चौक के मोमो की दुकान पर लगी,
भीड़ की चहक हो तुम।
खुद के चार्ट को एक दूसरे से बेहतर बताने वाली कटरा चौक की वह दुकान हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
गिरीहिंदा पहाड़ पर स्थित,
बाबा कामेश्वर नाथ का धाम हो तुम।
बुधौली का वो कभी ना हटने वाला जाम हो तुम।
गिरीहिंदा माता के मंदिर में बजने वाला,
वह रिमझिम-सी आवाज हो तुम।
वही श्यामा सरोवर पार्क में,
टहलते लोगों के पैरों की पदचाप हो तुम।
अनुमंडल ग्राउंड में खेलते खिलाड़ियों की संतुष्टि भरी थकान हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
गिरीहिंदा बस स्टैंड पर आती-जाती बसों में,
बैठी सवारियों का ब्यौरा हो तुम।
हॉस्पिटल रोड में घुसते ही एंबुलेंस की आवाज हो तुम।
पुलिस लाइन में खड़े उस सिपाही की वर्दी की गर्मी हो तुम।
नवोदय विद्यालय में नामांकन के लिए,
पढ़ते एवं पढ़ाते छात्रों का मेला हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
सब्जी मंडी में बिकती भाजियों का बाजार हो तुम।
तो वहीं बैठ कर भीख मांगती,
उस बुड्ढी मां के सर का छत हो तुम।
लेबर चौक के पास बैठे कार्य की तलाश में,
उन मजदूरों की आस हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
दशहरा में घूमने आए लोगों का बलखाता रेला हो तुम।
शेखपुरा स्टेशन से गुजरती वह धर-धराती सी ट्रेन हो तुम।
तो वही पास सड़क से निकलता हुआ कोई राहगीर हो तुम।
टाटी नदी का बहता कल-कल पानी हो तो
वही अरघवटी छठ घाट पर आई व्रतियों की आस्था की कहानी हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
बड़ी दुर्गा जी के पास वह बड़ा वाला दुर्गा पंडाल हो तुम।
कच्ची रोड पर कोचिंग पढ़ने आए छात्रों के सपनों की सुनहरी मुस्कान हो तुम।
ए टू जेड मैथ क्लासेस की सेवा प्रणायता की,
दर्शनाथ हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
स्कूल से छुटे बच्चों की मौजूद किलकारी हो तुम।
दल्लू मोड़ में बेफिक्र घूमते मस्त मौलो की,
सीटी बजाती टिटकारी हो तुम।
हुसैनाबाद से आती वह अजान हो
शिव मंदिर बंगाली पर की शंखनाद हो तुम।
....और क्या बताएं कहां-कहां और क्या-क्या हो तुम।
बस इतना जान लो इस शहर में बसने वाले हर एक वाशिंदे के नस-नस में हो और सबके चेहरे की वह मीठी मुस्कान 😊 हो तुम।
किसी और का तो पता नहीं लेकिन
ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी तो जान हो तुम।
ऐ शेखपुरा मेरी तो जान हो तुम।
विश्वजीत कुमार ✍🏻
Good👍👍👍
जवाब देंहटाएंGood 👍👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लेखन शैली
जवाब देंहटाएंइस कविता को पढ़कर लगता है कि सच में शेखपुरा आपकी जान है,
जवाब देंहटाएंऔर उसे(शहर) को आज भी बहुत पसंद करते है
जीवंत लेखन शैली
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंAti sundar
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