बुधवार, 29 जनवरी 2020

मुखौटा (Mukhouta)

So far my best poem which is very close to my life.




इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।
थोड़ी सी शोहरत के लिए,
रोज नये मुखौटे गढ़े जाते हैं।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।


एक मुखोटा यदि ना भाये चित्त को,
तो न जाने कई और परखे जाते हैं ।
कभी अंबर कभी दिगंबर वो
अभिनय भी खूब दिखाते हैं ।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।
उनकी चुक जरा सी ना दिखती,
किस रंगरसिया से वो रंग लगवाते हैं ।
मेरे जैसे वर्णकार तो बस,
उनकी कैद में फंसते चले जाते हैं।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।


उम्मीदो के दीपक भी यहां
नित्य बुझाये जाते हैं ।

थोड़ी सी शोहरत के लिए,

रोज नये मुखौटे गढ़े जाते हैं।

इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।

विश्वजीत कुमार✍️



राजा रवि वर्मा एवं बसंत पंचमी।



कला का साथ हो, 
वर्णों के पास ही मेरा निवास हो।
 जिंदगी की  हर परीक्षा में आप मेरे पास हो।
 सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🏻 

       इस तस्वीर में प्रयोग कि गई मां सरस्वती की छवि का  निर्माण भारत के सर्वश्रेष्ठ चित्रकार राजा रवि वर्मा के द्वारा किया गया है। कहते हैं कि किसी भी शख्सियत का मूल्यांकन दुनिया को सौंपी उसकी विरासत से होता है. सामान्य से सामान्य जन को यदि लगे कि वह शख्स न होता तो उसका जीवन थोड़ा कम बेहतर होता तो ऐसा शख्स ही शख्सियत बन जाता है. राजा रवि वर्मा ऐसी ही शख्सियत थे. कहने को तो वे ‘राजा’ थे लेकिन उनके पास कोई राज्य न था. उनके नाम में जुड़ा यह शब्द एक उपाधि थी जो तत्कालीन वायसराय ने उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उन्हें दी थी. अति-प्रतिभाशाली रवि वर्मा की लोकप्रियता का आलम यह था कि टीवी और इंटरनेट न होने के बावजूद वे घर-घर में वह मशहूर थे. हालांकि तमाम दूसरी हस्तियों की तरह उन्हें एक तरफ अपार लोकप्रियता नसीब हुई तो दूसरी ओर बदनामी और विवाद भी झेलने पड़े. लेकिन रवि वर्मा का काम और उनकी कल्पनाशीलता इन सबसे बेपरवाह चित्रकला को नई  बु​लंदियां बख्शती रही. चित्रकारी में उन्होंने कई ऐसे प्रयोग किए जो भारत में तब तक किसी ने नहीं किए थे. आज घर-घर में देवी-देवताओं की तस्वीरें आम हैं. लेकिन अब से करीब सवा सौ साल पहले ये देवी-देवता ऐसे सुलभ न थे. उनकी जगह केवल मंदिरों में थी. वहां सबको जाने की इजाजत भी नहीं थी. जात-पात का भी भेद होता था. घर में भी यदि वे होते तो मूर्तियों के रूप में. तस्वीरों, कैलेंडरों और पुस्तकों में जो देवी-देवता आज दिखते हैं वे असल में राजा​ रवि वर्मा की कल्पनाशीलता की देन हैं।

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https://bishwajeetverma.wordpress.com/2020/01/29/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%be-%e0%a4%b0%e0%a4%b5%e0%a4%bf-%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%8f%e0%a4%b5%e0%a4%82-%e0%a4%b5%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%aa%e0%a4%82/

रविवार, 19 जनवरी 2020

"बेड़ियाँ"





https://bishwajeetverma.wordpress.com/2020/01/19/%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a5%9c%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%81/





है बड़ी कठिन ये बेड़ियाँ,
किसने जकड़ी है तुमको यह लड़ियाँ।
तुम्हें तो थी,
चारु दिखने की इच्छा।
जो बन गई थी,
मेरी इक अभिलाषा।
वात्सल्य में अभिभूत हो,
मैंने बाँधा था एक काला धागा।
लेकिन था किसे पता,
ये बेड़ियाँ इतनी कठोर हो जाएगी।
नाजुक सी दिखने वाली,
इतनी सख्त हो जाएगी ।
कहने को तो है, यह एक बंधन । -2
चाहे, वो पैरो में पायल हो
या फिर हो हाथो में कंगन ।
उसकी तो मंशा यही है,
रखना है तुम्हें बना कर बंधक।
अपनी बेड़ियों को तोड़ !!!
क्या तुम मुक्त वातावरण में विचरण कर पाओगी???
याँ युँ ही प्रतिबंध मे रह,
जिंदगी शेष गवाओगी।
प्रश्न तो है बहुत विकट
एक तरफ है बंधन
तो एक तरफ है पथ दुर्गम ।
लेकिन तुम्हें तो बीच का एक रास्ता खोजना होगा....
जहां बंधन भी रहे और बेड़ियाँ भी ना रहे।
संशय है, ये मुमकिन नहीं ।
लेकिन प्रण कर लो तो ये नामुमकिन भी नही।
है बड़ी कठिन ये बेड़ियाँ,
किसने जकड़ी है तुमको ये लड़ियाँ।
तुम्हारा रूप है महीयसी,
युँ ना बनो मितभाषी।
भाराक्रान्त से ऊपर उठो,
अथक परिश्रम से तोड़ दो इन बेड़ियों को ।
तब तुम्हारे हृदय के सुरलोक में खिलेंगे सुमन भी।
तब तुम्हारे हृदय के सुरलोक में खिलेंगे सुमन भी ।
-विश्वजीत कुमार

इस कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ मैं यहां बता देता हूं- चारु -सुंदर/सुंदरता, महीयसी -महान स्त्री, मितभाषी-कम बोलने वाला, भाराक्रान्त- भार से दबा हुआ.


बेड़ियाँ,

मंगलवार, 14 जनवरी 2020

मकर संक्रांति

     
            Celebration a festival of दही-चूड़ा।





        Celebration a festival of दही-चूड़ा. Bt me have  दूध-चूड़ा, क्योंकि मैं दही (Yogurt) नहीं खाता😊. आप सभी को C.A.P.  परिवार की तरफ से मकर सक्रांति की बहुत-बहुत  बधाइयां💐💐💐. मकर संक्रान्ति  हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें तारीख़ को ही पड़ता है ,
 इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहाँ जाता हैं।

विभिन्न नाम भारत में

मकरसंक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू

ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु

उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड

माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब

भोगाली बिहु : असम

शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी

खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार

पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल

मकर संक्रमण : कर्नाटक

लोहड़ी : पंजाब

विभिन्न नाम भारत के बाहर

बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति

नेपाल : माघे संक्रान्ति या 'माघी संक्रान्ति' 'खिचड़ी संक्रान्ति' थाईलैण्ड : สงกรานต์ सोंगकरन

लाओस : पि मा लाओ

म्यांमार : थिंयान

कम्बोडिया : मोहा संगक्रान

श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल

Credit:- Wikipedia.

https://www.instagram.com/p/B7TBBKGF4BW/?igshid=1i4epbepw4366


https://bishwajeetverma.wordpress.com/%e0%a4%ae%e0%a4%95%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%bf/

शनिवार, 11 जनवरी 2020

स्वामी विवेकानंद

C.A.P. परिवार के तरफ से स्वामी विवेकानंद की 157वीं जयंती एवं राष्ट्रीय युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

Swami Vivekanand Clip Art By:- Bishwajeet Verma.
Assistant Professor in Munger University.





स्वामी विवेकानंद के कुछ सुविचार:- 

 1. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान. 
ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.



2. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है.

3. उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते.

4. जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.

5. पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं.

6. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.

7. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है. 

8. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते.

9. एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ.

10. जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी.




सोमवार, 6 जनवरी 2020

Food Photoshoot. ""चाहिये इससे""

देख रहा हूँ.......देख रहा हूँ.......



देख रहा हूं।



देख रहा हूं।....देख रहा हूं।.......
मैं उन सुलोचनाओ को,
जो थे कभी बसे, मेरे इन लोचनों में।
ना जाने कौन था वह रजनीचर,
जिसे ना भाया तुम्हारा ये मधुर नयन।


छीन कर के तुम्हारे चीर को,
ले उड़ा वह अपने सदन तक ।
फलक तक तो तुमको जाना था,
इस धरा को त्यागना था ।


अब भी विलंब नहीं हुई है उठ जा !!!
रश्मि की पुकार को तू सुनती जा।
तु ही हो शारदा, तु ही हो चंडिका और तुम ही हो दामिनी ।
रजनी की दास्तां को भुला,
फिर से अपना निकेतन बसा।


मेरे लोचन आज भी तुम्हें देख होते हैं, 
विमोचन !!
आज भी लालसा है,
तुम्हारी ही शबीह का।

मुझे तो बस इंतजार है,
इस शुभ घड़ी का!!!!!

मुझे तो बस इंतजार है,
इस शुभ घड़ी का!!!!!



-विश्वजीत कुमार ✍️


इस कविता का निर्माण इसी पेंटिंग के ऊपर किया गया है।