हाँ, मैं एक कलाकार हूँ।
हाँ, मैं एक कलाकार हूँ।
नित्य नई-नई रचनाओं को रचित करता है,
फिर उन्हें देख-देख कर हर्षित भी होता है।
मेरे मन को जो भा जाए ऐसी आकृति बनाना चाहता हूँ,
तुम्हारे तस्वीर में मैं वो रंग भरना चाहता हूँ।
जो अमिट हो।
ऐसी एक छवि का निर्माण करना चाहता हूँ।
जो मेरे हृदय में बस जाए, ऐसी शबीह बनाना चाहता है।
हाँ मैं एक कलाकार हूँ।
ख़ुद से ही रूठता हूँ।
ख़ुद से ही ख़ुद को मनाता हूँ।
दूसरों की खुशी के लिए खुद को अर्पित भी कर देता हूं।
कभी नहीं गम करूंगा।
ऐसी कसमें खाई है।
सदा लोगों के बीच मुस्कुराउंगा,
ऐसा इनायत भी किया है।
हाँ मैं एक कलाकार हूं।
कभी नही आने पाएंगे आंसू मेरे आंखो में।
यूँ ही हँसते मुस्कुराते दुनिया से रूखस्त हो जाउंगा।
मेरे जाने के बाद तु मेरे उल्फत की तारीफ़ जरूर करना।
क्योंकि सुना है तारीफ़ उन्ही की होती है।
जो जिन्दा नहीं होते।
लेकिन मैं इस भ्रम को भी मिटाउंगा।
जीते जी मैं अपनी तारीफ तुमसे करवाउंगा।
यदि तुम्हें मेरी छायाकारी पसंद नही तो,
मैं तुम्हारी शबीह भी बनाउंगा।
मेरे चित्रों में यदि तुमने कमी निकाल दी,
फिर उन्ही शब्दों को कविता की माला में गूथ तुम्हें पहनाउंगा।
यदि उससे भी तुम नही मानी तुम्हारे लिए गीत गजलें भी गुनगुनाऊंगा
हर एक वो कार्य करूंगा,
तुम्हारी खुशी के लिए...
क्योंकि मैं एक कलाकार हूँ।
जब तक है हाथो में तुलिका की ताकत,
जब तक मैं तुम्हारी ही शबीह बनाउंगा।
एक कलाकार का क्या फर्ज होता है।
वो मैं दुनिया को बताऊंगा।
हाँ मैं अपनी कलाकृति सबको दिखाउंगा।
और चीख-चीख कर दुनिया को ये बताउंगा।
हाँ मैं एक कलाकार हूँ,
हाँ मैं एक कलाकार हूँ।
-विश्वजीत कुमार
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