रविवार, 31 अगस्त 2025

कोई बात नही...

 ग़ज़ल 



आपको मुझसे इश्क़🥰 नही है तो कोई बात नही,

आंखो में नमी😓 नही है तो कोई बात नही।


कभी कहते थे मुझसे मेरे बिना जी न सकेंगे,

लाख मुसीबते आये हँस कर आत्मसात करेंगे।


ये तो अब पुरानी बाते हो गई,

और यही सही है तो कोई बात नही।


लानत है मुझको खुद पे कि ताउम्र मैंने वफ़ा की,

फिर भी मुझमें ही कमी है तो कोई बात नही।


धोखा, फरेब, झूठ को कहते हैं इश्क़🥰वो,

फिर भी, इश्क़🥰यही है तो कोई बात नही।


शैवाल पत्थर तक है तब तक ठीक है,

अगर आपके दिल में भी जमा है तो कोई बात नही।


आपको मुझसे इश्क़🥰 नही है तो कोई बात नही,

आंखो में नमी😓 नही है तो कोई बात नही।


      विश्वजीत कुमार ✍🏻

सोमवार, 11 अगस्त 2025

कोइरीगाँवा के ब्रह्म बाबा: गाँव का मर्म और हमारी जड़ें


   बिहार और उत्तर प्रदेश के गांवों में, हर गाँव के संरक्षक देवता के रूप में एक विशेष पहचान है, और ये हैं ब्रह्म बाबा। हमारे गाँव कोइरीगाँवा में भी, ब्रह्म बाबा का महत्व अतुलनीय है। वो सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि हमारे गाँव के प्रहरी हैं, हर सुख-दुःख के साथी हैं। हर शुभ कार्य की शुरुआत में उनका आशीर्वाद लेना एक अटूट परंपरा है।

     ब्रह्म बाबा का वास अक्सर एक पुराने, विशाल बरगद के पेड़ में होता है, जो गाँव के जीवन का केंद्र बिंदु है। इस बरगद की छाँव में हमने बचपन की शरारतें की हैं, गर्मी की दोपहर में सुकून पाया है और कहानियाँ सुनी हैं। यह पेड़ सिर्फ एक छायादार जगह नहीं, बल्कि हमारे दादा-परदादाओं की भी स्मृतियों का हिस्सा है। उस ठंडी, सुकून भरी छाँव में बैठना, मानो ब्रह्म बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करना हो। जब हम उस बरगद के नीचे होते हैं, तो एक आवाज मन में गूँजती है, - "अरे कहाँ भाग रहा है? याद कर, यहीं तो तू अपने दोस्तों के साथ खेला करता था।"

आज भले ही समय बदल गया है, गाँव का अपनापन कहीं खोता जा रहा है, लेकिन ब्रह्म बाबा का सम्मोहन आज भी कायम है। वो हमें अपनी जड़ों को याद दिलाते हैं। उनका यह कहना कि "तुम्हारे दादा-परदादा भी इसी छाँव में आराम करते थे" हमें हमारी विरासत से जोड़ता है।

    हमारे गाँव कोइरीगाँवा में ब्रह्म बाबा को सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। उनके बारे में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। लोग मानते हैं कि अगर कोई झूठ बोलता है, तो ब्रह्म बाबा उसे बीमार कर सकते हैं। आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने पर पटक सकते हैं और हाँ, वो सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि हमारे परिवार का हिस्सा भी हैं। ठंड की रातों में जब हम आग तापते थे, तो महसूस होता था कि ब्रह्म बाबा भी हमारे साथ हैं। बचपन में जब हम उस बरगद के नीचे जाते थे, तो एक हल्की सरसराहट की आवाज के साथ एक डर मन में बैठ जाता था, "गलत काम किया तो ब्रह्म बाबा यहीं पटक देंगे।" यह सिर्फ एक डर नहीं था, बल्कि एक विश्वास था जो हमें सही राह पर चलने की प्रेरणा देता था।

      आज भले ही गाँव का पुराना बरगद का पेड़ कमजोर हो रहा हो और आने वाली पीढ़ियां ब्रह्म बाबा को न पहचानें, लेकिन उनका अस्तित्व हमारे दिलों में हमेशा रहेगा। ब्रह्म बाबा अडिग हैं, और वो कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेंगे। यह जरूरी है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें। गाँव का मतलब सिर्फ काली माई, जिन बाबा, गोरिया बाबा, और ब्रह्म बाबा ही नहीं, बल्कि वे रिश्ते-नाते भी हैं जो बिना किसी स्वार्थ के हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं। यह हमारी परंपरा है, जिसे हम तोड़ना नहीं चाहते।

     आप चाहे कहीं भी हों, अपनी मिट्टी को न भूलें। छठ और दिवाली जैसे त्योहारों के बहाने ही सही, एक बार अपने गाँव जरूर लौटें। अपने पुरखों की धरती पर कदम रखें और एक बार वहाँ के ब्रह्म बाबा को प्रणाम🙏🏻 जरूर करें। यह एक ऐसा प्रयास है जो हमें हमारी पहचान से जोड़े रखेगा और हमारी परंपराओं को जीवित रखेगा।

हमारे गाँव का विद्यालय: सिर्फ एक इमारत नहीं, जीवन का सार।




        यह सिर्फ दो तस्वीरें नहीं हैं, बल्कि मेरे गाँव के उस स्कूल की जीवंत यादें हैं, जो मेरे जीवन की नींव है। पीपल और बरगद की यह घनी छांव, ये स्कूल की पुरानी दीवारें, आज भी मुझे उस बीते हुए कल में खींच ले जाती हैं। ऐसा लगता है मानो समय ठहर गया हो, और मैं फिर से उस छोटे से बच्चे में बदल गया हूँ जो इन्हीं पेड़ों के नीचे बैठकर अपने सपनों को बुनता था। आज भी इन पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट में, मुझे वो पुरानी बातें सुनाई देती हैं। ऐसा लगता है, मानो वो हमें आज भी पढ़ा रहे हों।

        हमारे स्कूल में फर्नीचर के नाम पर सिर्फ दो कुर्सियां और एक मेज हुआ करती थी, पर उस कमी का एहसास कभी नहीं हुआ। कक्षा 01 से 05 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए दो मैंम थीं - हमारी मैडम जी और दीदी जी। वे केवल शिक्षिकाएं नहीं थीं, बल्कि हमारे लिए ज्ञान का प्रकाश थीं। स्कूल की इमारत भले ही दो कमरों और एक बरामदे तक सीमित था, लेकिन उसका आत्मविश्वास आज भी अडिग है। उन मैडम जी ने हमें सिखाया था कि कैसे भगवान बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। उस समय हम भी इसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते थे। जब उस पेड़ से कोई पत्ता गिरता था, तो हमें लगता था कि हमें भी ज्ञान की प्राप्ति हो रही है। हम उन पत्तियों को अपने बस्ते में संभालकर रखते थे, ताकि ज्ञान हमसे दूर न जाए।

     जब भी तेज बारिश होती थी, तो उन दो कमरों में कक्षा 01 से 05 तक के सभी बच्चों को पढ़ाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन हमारी मैडम जी और दीदी जी के पास ऐसा अद्भुत कौशल था कि कभी भी पढ़ाई नहीं रुकी। उनकी आँखों में वो अटूट विश्वास था कि वे हमें आगे बढ़ाएंगी। भले ही कभी-कभी बारिश की वजह से कमरे में पानी भर जाता था, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं डगमगाया।

       आज भले ही हमारी वो दोनों शिक्षिकाएं इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी सिखाई हुई शिक्षा और उनके दिए हुए संस्कार आज भी हमारे जीवन में एक ज्योति🪔 की तरह जल रहे हैं। उनकी शिक्षा की वो ज्योति आज भी हमारे गाँव के स्कूल में प्रज्वलित है और हमें रास्ता दिखा रही है। उन्हीं की बदौलत आज हम जैसे न जाने कितने छात्र अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता की नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं। उनकी मेहनत, उनका त्याग, और उनकी लगन की वजह से ही आज हम इस काबिल बन पाए हैं।

        आज, जब मैं उस पीपल और बरगद की छांव में बैठता हूँ, तो ऐसा लगता है कि वो दोनों मैडम जी यहीं कहीं आसपास हैं और हमें आशीर्वाद दे रही हैं। उनकी यादें हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी। हमारी प्रिय मैडम जी और दीदी जी को हमारी तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि। आपके द्वारा जलाया गया शिक्षा का दीपक हमेशा हमारे दिलों में जलता रहेगा। आप हमेशा हमारे गुरु, हमारे मार्गदर्शक और हमारे प्रेरणा स्रोत रहेंगी। हम हमेशा आपके आभारी रहेंगे।

#गाँव #मेरा_गाँव #मेरी_कहानी

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

देशी दारू की चाय ☕

 बिहार से रांची (झारखण्ड) आये हुए 02 दिन हो गए थें। चुंकि बिहार में अमृत तो बंद है लेकिन झारखंड में पुरी बारिश हो रही थी। 02 दिनों से लगातार सभी इस बारिश में स्नान कर रहे थे। आज तीसरे दिन किसी ने सुझाव दिया की आज कुछ देशी ट्रॉय किया जाएं। फिर क्या था, बस प्लान बन गया। अब समस्या यह थी की इस नेतरहाट की पहाड़ियों में लोकल अमृत मिलेगा कहा? लेकिन कहा जाता है ना की जहा चाह वहा राह। राहे वहां भी मिल गई और जो लोकल ड्राइवर थे उन्ही की मदद से अमृत सीधे रूम तक आ पहुंचा। रात में सभी ने उसका रसास्वदान किया और सुबह देर तक सोये रहे। चुंकि हमें कोयल व्यू पॉइंट भी जाना था और सुबह में सभी को हम जगाते फिर रहे थे। क्योंकि सभी ने कहा था की हमें भी साथ लेकर के जाना। जब हम उस रूम में गए तो बहुत देर तक उन्होंने दरवाजा नहीं खोला और हम भी सोच लिये थे की सभी को लेकर के ही चलेंगे। रूम आख़िरकार खुला और वहा की परिस्थिति देखने लायक थी। ख़ैर मैंने सभी को जगाया एक ने कहा की भाई थोड़ी चाय बना दो ना!!! चुंकि हम चाय पी कर के आये थे इसीलिए बस 02 कप ही बनाये। लेकिन गर्म पानी में जैसे ही दूध डाले वह फट गया। मुझे लगा की क्या हो गया। हिम्मत नहीं हारी और दुबारा पुन: प्रयास किये लेकिन इस बार भी दूध फट गया। अगली बार कैटल को अच्छे से साफ कर के जब दुबारा उसमें पानी डाले तब एक ने कहा - भाई चाय बनाने में इतना विलंब क्यों हो रहा हैं? मैंने कहा - क्या करें!!! बार-बार दूध ही फट जा रहा हैं। अचानक से उसकी नज़र मेरे हाथ में पड़े बॉटल पर गई और वो चिलाते हुए कहा - आरे भाई, इसमें चाय बना रहे हो?

मैंने कहा - हां, क्या हुआ? 

वो बोला - आरे ये पानी नहीं हैं।

मैंने कहा - दिख तो पानी जैसा ही रहा हैं और पानी के बॉटल में भी हैं। और मैंने एक घूंट मुँह में ली।

वो एकदम से बेड से उछला - आरे!!! रुक जा, रुक जा।

मैं तो सीधे बाथरूम में जाकर रुका। उसका स्वाद अजीब सा लगा था। उससे पूछा की - आरे ये हैं क्या?

वो बोला - आरे रात में जो नहीं मंगाए थे वो देशी... वही हैं।

 मैंने बोला - अरे यार!!! इसे पानी के बोतल में कौन रखता है?

 वह बोला - भाई क्या करते, दुसरा बॉटल मिला ही नहीं।

इस घटनाक्रम एवं शोरगुल से सभी जग गए थे उन्होंने सुबह की चाय तो नहीं पी लेकिन मेरे साथ कोयल व्यू प्वाइंट चलने के लिए तैयार हो गए। वहां का नजारा बहुत ही सुंदर था। शुरू में तो कुछ बादल थे लेकिन जब बादल हटा और सूर्य नारायण ने अपने दर्शन दिये तो वहां का नजारा देखने लायक था। हमने भी बहुत अच्छी-अच्छी फोटो क्लिक📸 की कुछ आपके लिए भी साझा कर रहे हैं।

कोयल व्यू प्वाइंट

कोयल व्यू प्वाइंट के पास स्थित खूबसूरत वन

कोयल व्यू प्वाइंट के पास सेल्फी🤳🏻

कोयल व्यू प्वाइंट के पास स्थित डैम