शनिवार, 30 मार्च 2024

दो नदियाँ जहां मिलती हैं, वहाँ ही सभ्यता पनपती है।


भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ 

सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ 


जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ 

तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ 


न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द 

मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ 


दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूँ 

कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ 


कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत 

फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ 


रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं 

तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ 


जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात 

तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ 


न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल 

न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ 


किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में 

'ज़फ़र' मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ 


              बहादुर शाह ज़फ़र

शुक्रवार, 15 मार्च 2024

Important Idioms and Phrases starting with the letter "A"



Important Idioms and Phrases starting with the letter "A"


1. A Bee in one's bonnet

◾️किसी चीज़ के बारे में लगातार बात करते रहना


2. A Bolt from the Blue

◾️अचानक और अप्रत्याशित घटना


3. A close shave

◾️बाल - बाल बचना


4. A Cat and Dog life

◾️हमेशा झगड़ते रहने वाला जीवन


5. A chicken-hearted Person

◾️कायर व्यक्ति


6. A Dark Horse

◾️अप्रत्याशित विजेता


7. A Cold shoulder

◾️उदासीनता का प्रदर्शन


8. A Cog in the Machine

◾️कार्य के लिए आवश्यक लेकिन कम महत्व का


9. A close-fisted man

◾️पैसे देने या ख़र्च करने के लिए बहुत ही अनिच्छुक रहना


10. A chink in someone's armour

◾️किसी की कमजोरी


11. A Hot potato

◾️एक विवादास्पद मुद्दा जो निपटने में कठिन है और बहुत ही असहमतियो से युक्त है


12. A Good turn

◾️एक ऐसा कार्य जो किसी अन्य व्यक्ति से किसी तरह से लाभकारी है


13. A going concern

◾️लाभ कमाता हुआ व्यवसाय


14. A go-getter

◾️एक बेहद प्रेरित और महत्वाकांक्षी व्यक्ति


15. A fool's paradize

◾️हवाई महल


16. A feather in one's cap

◾️गर्व करने लायक उपलब्धि


17. A dime a dozen

◾️बहुत आम


18. A stone's throw of

◾️बहुत पास में


19. A sight for sore eyes

◾️आँख की ठण्डक


20. A red rag to a bull

◾️साँड़ को लाल कपड़ा दिकाने के समान


21. A queer fish

◾️सनकी व्यक्ति


22. A left-handed compliment

◾️प्रशंसा की आड़ में एक अपमान


23. A leap in the dark

◾️साहसिक कार्य


24. A jack of all trades

◾️कई अलग अलग क्षेत्रों में कुशल व्यक्ति


25. At the end of one's tether

◾️और ज्यादा कष्ट सहने में असमर्थ


26. A wild goose chase

◾️निरर्थक खोज


27. A taste of your own medicine

◾️जैसे को तैसा


28. A storm in a tea-cup

◾️बात का बतंगड़


29. A chip on your shoulder

◾️हर समय गुस्सा आना क्योंकि आपको लगता है कि आपके साथ गलत तरीके से व्यवहार किया गया है या आपको लगता है कि आप अन्य लोगों के समान उतना ही अच्छे नहीं हैं


30. A man of spirit

◾️साहसिक व्यक्ति


31. A man of straw

◾️एक कमजोर व्यक्ति


32. A man of parts

◾️कई अलग-अलग क्षेत्रों में महारथ वाला


33. A man of mettle

◾️दृढ़-संकल्प का व्यक्ति


34. A man of means

◾️अमीर आदमी


35. A man of letters

◾️साहित्यिक व्यक्ति


36. A man of his words

◾️अपनी बात का पक्का


37. A man in a million

◾️लाखो में एक

गुरुवार, 14 मार्च 2024

कच्छा-सरकल

हास्य



नाम लिखाईल कविवर के,

क्लास करे गईलन कालेज

पढ़े से अधिका कापी-कलम,

सब कुछ रखे लगले सहेज


अतिरिक्त विषय में देल रहे,

सबके आपन-आपन च्वाईस

सैनिक, विज्ञान पढ़ाई पढ़े के

सबलोग दे दिहल एडवाईस


चले लागल क्लास हफ्ता में,

अनुशासन के मिलल सीख

जवन जवन बतलावल गईल,

कापी पर कविवर लेले लीख


राईफल के जवन पार्ट-पुर्जा,

खोले जोड़ेके गईल बतावल

जवन पार्ट पहिले खोलाईल,

पाछे जोड़े के गईल बतावल


कविवर के सब लागल नीमन,

सबसे बढ़िया रही इहे नालेज 

जब लाग जाई सेना में नौकरी,

सफल हो जाई भेजल कालेज


भईल अचानक ट्रेनिंग एक दिन,

जे जल्दी से पोशाक उतार पाई

अधिका नम्बर तS मिलबे करी,

वार्षिकोत्सव में इनाम मिल जाई


कविवर हड़बड़ में ड्रेस उतरले,

खुशी के लागल पहाड़े भरकल

प्रथम अईले ताली गड़गड़ाईल,

पैंट के साथ ही कच्छा-सरकल


  सुरिष्ट राय

बुधवार, 13 मार्च 2024

Heritage walk (हेरिटेज वॉक)

    08 मार्च 2024 को शाम 04:33 में Nift Patna के ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में हिंदी में एक मैसेज आता है - "अमूमन इस ग्रुप में सारे मैसेज इंग्लिश में ही आते हैं, संभवत: पहली बार कोई मैसेज हिंदी में आया था।" मैसेज में यह लिखा था कि 10 मार्च को दिन के 10:00 बजे से हेरिटेज वॉक का आयोजन किया जा रहा है। मेरे जन्म की तिथि 10 हैं और 10 का मूलांक 01 होता है, इस 10 अंक के साथ अब घनिष्ठता (Closeness) सी हो गई है। मैंने बिना 10 Min. विचार किये, 10 सेकंड में ही इस हेरिटेज वॉक में सम्मिलित होने के लिए सहमति दे दी लेकिन 10 घंटे बितने के बाद भी जब कोई जवाब नहीं आया तो मैंने जयंत सर पूछा कि - कल आयोजित होनेवाले हेरिटेज वॉक का क्या हुआ???

 सर ने बोला कि वह मेरा नंबर उन्हें शेयर कर दिए हैं, उनके द्वारा मुझे कॉल किया जाएगा।

 तय समय सीमा के अनुसार रविवार को 10:00 बजे से हेरिटेज वॉक शुरू होने को था इसलिए शनिवार को रात के 10:00 बजे ही सो गए ताकि सुबह में जल्दी उठ सके।

रविवार की सुबह जब 08:00 बजे तक कोई कॉल नहीं आया तो हम समझ गए कि लगता है कोई हेरिटेज वॉक नहीं होने वाला है और हम किचन में जाकर अपना पसंदीदा कार्य "कुकिंग" स्टार्ट कर दिए। सब्जी लगभग बन चुका था और पहली रोटी बनने ही वाली थी कि तभी व्हाट्सएप पर कॉल आता है। उस समय 08:41 हो रहा था। वह कॉल, भैरव दास सर का था। सर ने अपना परिचय देने के बाद कहां कि हम 09:15 से 09:30 तक चिरैयाटाड़ पुल को पार करेंगे, आप राजेंद्र नगर साइड में आ जाइए। हम आपको वही से पिक-अप कर लेंगे।

बिना नाश्ता किये ही 09:30 AM तक, हम चिरैयाटाड़ पुल के पास पहुंच गये थे। 10:01 मे सर का पुन: कॉल आता है कि 30 सेकंड में हम आपके पास पहुंच रहे हैं। बस में 10 से ज्यादा लोग थे। बस जैसे-जैसे आगे बढ़ते रही, लोगों की संख्या भी बढ़ती रही। कुछ दूर आगे जाने के उपरांत एक जगह बस रुकी और हमलोगो से कहां गया कि "अrunodaya एक उड़ान" की कुछ बच्चियों भी कादंबिनी सिन्हा मैम के साथ हमारे इस यात्रा में सम्मिलित होगी। भैरव सर ने हम सभी से अनुरोध किया कि तब तक वह सभी यहां पर आते हैं तब तक आप सभी अपना-अपना परिचय दे दीजिये। एक-एक करके हम सभी ने अपना परिचय दिया। उसके उपरांत भैरव सर ने नेपाली मंदिर की विशेषता और उसकी ऐतिहासिक महत्ता को समझाया।

  सबसे पहले हम सभी कौनहारा घाट पहुंचे, कौनहारा घाट गंडक नदी (जिसे नारायणी की भी संज्ञा दी गई है।)  के तट पर हाजीपुर वैशाली की तरफ स्थित है।


 गज एवं ग्राह के युद्ध की कहानी हम कई बार पढ़ चुके हैं यहां आने के बाद मुझे ज्ञात हुआ कि इन दोनों की लड़ाई में हारा कौन? और जीता कौन ? इसी जिज्ञासावश इस घाट का नाम कौनहारा घाट हो गया। चूंकि हमलोगो की यात्रा यहां से शुरू हो चुकी थी इसलिए एक ग्रुप फोटोग्राफ लेने के बाद हम नेपाली मंदिर की ओर अग्रसर हुये।


 नेपाली मंदिर के बाहर एक बोर्ड था जो की बहुत मुश्किल से अपने आप को एक दीवार के सहारे संभाला हुआ था। उस बोर्ड के ऊपर वैधानिक सूचना - पट्ट को ही हम अच्छे से पढ़ पा रहे थे उसके बाद के लिखे शब्द समय के साथ धुंधले पड़ गए थे, जैसे कि हमारी हेरिटेज इमारतें।

 नेपाली मंदिर जिसे स्थानीय भाषा में नेपालीयां मंदिर भी कहा जाता है, नागर शैली में ईंटों से बना एक मंदिर है। इसे नेपाल के महाराजा ने लगभग 250 साल पहले सैनिक छावनी के तौर पर निर्माण कराया था। 2014 में मुझे मध्य प्रदेश के खजुराहो के मंदिरों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज इस नेपाली मंदिर को देखकर खजुराहो की सारी स्मृतियां पुन: ताजा हो गई। खजुराहो में मंदिरों के ऊपर जो भी आकृतियां बनाई गई है उसका आधार शैल (Stone) हैं जबकि नेपाली मंदिर में आकृतियों का आधार काष्ठ (Wood) है। यहां आने के उपरांत मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि इस मंदिर को उत्तर का खजुराहो भी कहा जाता है।

 आज के इस डिजिटल युग में भी हमारे यहां के प्रेमी जोड़ों को अपने दिल💌 का हाल बयां करने के लिए शायद सोशल मीडिया भी कम पड़ जाता है तभी तो वह, यहां स्थित हेरिटेज इमारते को अपना निशाना बनाते हैं। और दीवारों को कुरेद कर अपना एवं अपने महबूबा का नाम लिखकर यह समझते हैं कि मैंने अपने प्यार को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा दिया लेकिन उनके इस कार्य से कितनी क्षति होती है शायद इससे वो अनभिज्ञ रहते हैं। नेपाली मंदिर की दीवारों पर भी मुझे ऐसा ही कुछ प्रसंग दिखा। अचानक से मेरी नज़र एक टाइपोग्राफी पर रुक गई, वहां लिखा था - MOM & DAD LOVE 03/03/2024. इसने तो बकायदा तिथी भी बता दी थी। इस पर क्या लिखे,......✍️

 ......हम मंदिर के अंदर प्रवेश किये। अंदर का दृश्य ऐसा था कि एक के ऊपर दूसरा नाम अधिव्यापन (Overlap) हो रहा था। हम सुने एवं देखे थे कि शिव मंदिर में पूजा करने के उपरांत भक्तगण नंदी जी के कान में अपनी इच्छाओं (wishes) को कहते हैं, ताकि वह शिवजी के पास तुरंत पहुंच जाए। लेकिन यहां तो उनके भक्तगण सीधे दीवार पर ही अपनी इच्छाएं व्यक्त कर दिए हैं ताकि दिन-रात शिवजी इसे पढ़ते रहे एवं उन्हें जब समय मिले तत्काल पूरा कर दे।

 नेपाली मंदिर के पास में ही श्री विशालनाथ महादेव मंदिर था उसका भी दर्शन करते हुए हम लोग कबीर आश्रम की ओर बढ़े। यहां पर हमें श्री श्री १०८ बाबा निर्मल दास जी साहेब की जिंदा समाधि स्थल दिखी। सबसे आश्चर्य हमारे लिये यह रहा की यहां पर नौ ग्रहो को समर्पित 1640 ई० मे निर्मित एक नवग्रह कुआं दिखाई दिया। दावा यह था की ग्रहों के हिसाब से ही जल का सेवन किया जाता है। ग्रहों का तो नहीं पता लेकिन जल का टेस्ट हमने भी ले लिया।😊

 पुनः हम सभी बस में बैठे और 16वी शताब्दी में निर्मित पत्थर की मस्जिद देखने पहुंचे। सफेद रंग की चादर ओढ़े वह मस्जिद बहुत ही अलौकिक लग रहा था। पटना सिटी में स्थित पत्थर की मस्जिद मैंने सुना था आज पता चला कि हाजीपुर में भी पत्थर की मस्जिद है और इन दोनों का निर्माण एक ही कालखंड यानी कि मुगल काल में किया गया है। एक और बाद मुझे पता चली जिसकी सत्यता पर मुझे भी एवं बताने वाले को भी थोड़ी शंका थी। वह यह थी कि "इस पत्थर की मस्जिद से लेकर पटना सिटी में स्थित पत्थर की मस्जिद तक एक सुरंग का निर्माण किया गया था ताकि नमाजी एक मस्जिद से दूसरे मस्जिद तक आसानी से आ जा सके।"

 वहां से निकलने के बाद हम सभी सीधे सोनपुर पहुंचे। हमारे लंच की व्यवस्था वही पर की गई थी। सोनपुर के घाटों का सौन्दर्यकरण बहुत ही बेहतरीन किया गया था। इस हेरिटेज यात्रा में जय भास्कर जी से परिचय हुआ। उनसे यूट्यूब, वेबसाइट एवं ब्लॉगस्पॉट पर लंबी बातचीत हुई। सोनपुर के घाटों पर हमने बहुत सारी तस्वीर भी खिंचवाई। घाट पर घूमते हुए मेरी नजर एक दुकान पर गई जिसका नाम था - बेवफा चाय वाला I ❤️ Sonpur "प्रेमी जोड़ो के लिए ₹15 की चाय" "प्यार में धोखा खाये लोगो के लिए ₹10 की चाय" क्योंकि यह दोनों ऑफर मेरे ऊपर फिट नहीं हो रहे थे इसीलिए हम आगे बढ़ते रहे। रास्ते में हमें नौका स्टेशन, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कष्टहरिया घाट, एवं आपरूपी गौरी शंकर मंदिर दिखाई दिया। सबके दर्शन कर हम आगे बढ़ते रहे।

 उस समय तक दो बज चुका था, और हमारे सामने CHAUPATI RESTURENT दिखा। अचानक से मुझे ध्यान आया कि सुबह से तो कुछ खाये ही नहीं है। खैर!!! रेस्टोरेंट के अंदर पहुंचे। इत्तेफाक कहिए या फिर संयोग मेरे टेबल का नंबर 05 था जो की मेरा लकी नंबर भी हैं।


 लंच करने के उपरांत फिर हम बाबा हरिहर नाथ के दर्शन करने गए। हमारी आज की यह यात्रा मेरे लिए एवं संभवत: सभी लोगो के लिए भी एक अविस्मरणीय पलों में से एक रही। इसी आशा एवं उम्मीद के साथ वापस पटना की ओर लौट चले की हम सभी एक बार फिर से ऐसे ही किसी और यात्रा में सम्मिलित होंगे।

धन्यवाद 🙏🏻


नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप इस हेरिटेज वॉक के सभी फोटोग्राफ आप प्राप्त कर सकते हैं।👇🏻

Photograph Link


सोमवार, 11 मार्च 2024

वाल्मीकि रामायण भाग - 30 (Valmiki Ramayana Part - 30)



मारीच के पूछने पर रावण ने अपना मंतव्य बताया, तात मारीच! मैं इस समय बहुत दुःखी हूँ और केवल तुम ही मुझे सहारा दे सकते हो। मेरा भाई खर, महाबाहु दूषण, मेरी बहन शूर्पणखा, मांसभोजी राक्षस त्रिशिरा और चौदह हजार वीर निशाचर मेरी आज्ञा से जनस्थान में रहा करते थे और वहाँ के धर्माचारी मुनियों को सताया करते थे। वे सब अच्छी तरह सन्नद्ध होकर युद्ध-क्षेत्र में राम से जा भिड़े, परन्तु मनुष्य होते हुए भी उस राम ने अपने भयंकर बाणों से अकेले ही उन चौदह हजार राक्षसों का विनाश कर डाला। खर, दूषण और त्रिशिरा को भी मारकर उसने दण्डकारण्य को अन्य सबके लिए निर्भय बना दिया। उस क्षत्रियकुल-कलंक राम को उसके पिता ने कुपित होकर पत्नी सहित घर से निकाल दिया है। उसका जीवन क्षीण हो चला है। वह निर्लज्ज, क्रूर, मूर्ख, लोभी अजितेन्द्रिय, धर्मत्यागी, दुरात्मा और सबका अहित करने वाला पुरुष है। किसी वैर के बिना ही उसने मेरी बहन शूर्पणखा के नाक-कान काटकर उसे कुरूप बना दिया। उससे बदला लेने के लिए मैं भी जनस्थान से उसकी सुन्दर पत्नी सीता को हर लाऊँगा। इसमें तुम मेरी सहायता करो। महाबली मारीच! मेरी सहायता के लिए तुम्हें क्या करना है, अब यह सुनो। तुम सुनहरे रंग वाले चितकबरे हिरण जैसा रूप धारण करो और राम के आश्रम के पास जाकर सीता के सामने विचरण करो। ऐसे विचित्र मृग को देखकर सीता अवश्य ही राम और लक्ष्मण से तुम्हें पकड़ लाने को कहेगी। जब वे दोनों तुम्हें पकड़ने के लिए दूर निकल जाएँगे, तब मैं बिना किसी विघ्न-बाधा के उस सूने आश्रम से सहज ही सीता का अपहरण कर लूँगा। फिर जब सीता के वियोग में राम अत्यंत दुःखी और दुर्बल हो जाएगा, तो मैं निर्भय होकर उस पर प्रहार कर दूँगा।

रावण के मुँह से श्रीराम का नाम सुनकर मारीच का मुँह सूख गया और भयभीत होकर वह अपने सूखे होंठों को चाटने लगा। हाथ जोड़कर भय से काँपता हुआ वह रावण से बोला, “राजन्! एक तो तुम्हारा हृदय बड़ा चंचल है और तुम कोई गुप्तचर भी नहीं रखते हो, इसी कारण तुम्हें राम के स्वभाव का कोई ज्ञान नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि अत्यंत कुपित होकर राम सारे राक्षसों का ही संहार कर दे। कहीं वह सीता तुम्हारी मृत्यु बनकर ही तो नहीं आई है? राजा के आगे सदा प्रिय वचन बोलने वाले तो बहुत लोग होते हैं, किन्तु जो अप्रिय होने पर भी हित की बात कहे, ऐसा मनुष्य दुर्लभ होता है। अतः तुम शांत चित्त से मेरी बात सुनो क्योंकि मैं तुम्हारे हित की बात कह रहा हूँ। मैं समस्त राक्षसों का कल्याण ही चाहता हूँ, इसीलिए तुमसे कहता हूँ कि तुम राम से लड़ने का विचार त्याग दो। जो राजा तुम्हारे समान दुराचारी, स्वेच्छाचारी, पापपूर्ण विचार रखने वाला और खोटी बुद्धि वाला होता है, वह अपने साथ-साथ अपने स्वजनों के व पूरे राष्ट्र के भी विनाश का ही कारण बनता है। जब राम ने देखा कि रानी कैकेयी ने मेरे पिता दशरथ को धोखे में डालकर मेरे लिए वनवास माँग लिया है, तो उसने मन ही मन निश्चय किया कि मैं पिता के वचन को झूठा नहीं होने दूँगा। इसलिए वह स्वयं ही राज्य और समस्त सुखों का त्याग करके दण्डकवन में आया है। उसे न तो पिता ने घर से निकाला है और न ही वह लोभी या क्षत्रिय कुल-कलंक है। राम तो जलती हुई अग्नि के समान भयंकर है। उससे युद्ध करना अग्नि-कुंड में प्रवेश करने के समान है। वह अकेला ही पूरी शत्रु-सेना के प्राण लेने में समर्थ है। राम को सीता प्राणों से भी अधिक प्रिय है। राम से बैर लेकर तुम्हें क्या मिलेगा? जिस दिन युद्ध में राम की दृष्टि तुम पर पड़ जाए, उसी दिन को तुम अपने जीवन का अंत समझ लेना। मैं अपने अनुभव से कहता हूँ कि राम से युद्ध करना बुद्धिमानी की बात नहीं है। बहुत समय पहले एक बार मैं ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न डालने गया था। तब तो राम की किशोरावस्था ही थी, पर उस छोटी-सी आयु में भी उसने मुझ पर ऐसा तीखा बाण छोड़ा, जिसकी चोट खाकर मैं सौ योजन दूर गहरे समुद्र के जल में जाकर गिरा था। फिर कुछ वर्षों बाद जब मैंने राम को दण्डकारण्य में तपस्वी वेश में देखा, तो पुरानी बात का बदला लेने के लिए मैं अपने दो राक्षसों के साथ बड़े तीखे सींग वाले मृगों का रूप बनाकर उस पर आक्रमण करने गया। उस समय राम ने एक साथ तीन पैने बाण छोड़े। मैं तो उसके पराक्रम को पहले ही जानता था, इसलिए किसी प्रकार उछलकर मैंने अपने प्राण बचा लिए, किन्तु मेरे वे दोनों साथी मारे गए। वास्तव में उस बार भी मेरी ही मति मारी गई थी। उसके बाद से मैं इतना घबराया कि मैंने समस्त दुष्कर्मों को त्यागकर संन्यास ले लिया और तब से मैं यही रहकर तपस्या करता हूँ। मुझे राम से इतना भय होता है कि एक-एक वृक्ष मुझे राम जैसा भयंकर दिखाई पड़ता है। एकांत में और स्वप्न में भी मैं राम के भय से काँप उठता हूँ। राम से मैं इतना भयभीत हूँ कि रत्न, रथ आदि जो भी र अक्षर वाले शब्द हैं, उन्हें सुनकर भी मुझे भय हो जाता है। इसलिए तुम भी मेरी बात मानो और अपने हित को समझो। यदि तुम राम से बैर करोगे, तो शीघ्र ही अपने प्राण गँवाओगे और अपने पूरे राज्य का भी विनाश करोगे। परायी स्त्री के संसर्ग से बड़ी मूर्खता और कोई नहीं है। तुम्हारे अन्तःपुर में हजारों स्त्रियाँ हैं, तुम उनमें ही अनुराग रखो। अपनी मान, प्रतिष्ठा, उन्नति, राज्य और अपने जीवन को नष्ट न करो। फिर भी यदि तुम्हारी इच्छा है, तो तुम रणभूमि में राम से युद्ध करो, पर मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो मेरे सामने राम का नाम भी न लो। मैं इस कार्य में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता, अतः तुम मुझे क्षमा कर दो। तुम विभीषण आदि बुद्धिमान मंत्रियों से सलाह लो और उसके बाद ही राम से युद्ध का कोई निर्णय लो।

मारीच का यह कथन उचित था, किन्तु अहंकारी रावण ने उसकी बात नहीं मानी। उसने क्रोधित होकर कठोर वाणी में कहा, “दूषित कुल में जन्मे मारीच! तुमने मेरे प्रति बड़ी अनुचित बातें कह दी हैं। तुम्हारे ये कायरतापूर्ण वचन मुझे उस मूर्ख, पापी राम से युद्ध करने या उसकी स्त्री का अपहरण करने से नहीं रोक सकते। मेरे सामने उस तुच्छ मनुष्य की शक्ति ही क्या है यदि तुमसे मैंने परामर्श माँगा होता, तब तुम्हें ये सब बातें कहनी चाहिए थीं। जो अपना कल्याण चाहता हो, उसे राजा के पूछने पर ही अपना अभिप्राय बताना चाहिए और वह भी हाथ जोड़कर नम्रता के साथ। क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि राजा के सामने केवल अनुकूल, मधुर और उत्तम बात ही कहनी चाहिए? मैं तुमसे अपना कर्तव्य पूछने नहीं आया हूँ, केवल तुम्हारा कर्तव्य बताने आया हूँ। अतः जो मैंने कहा था, तुम केवल उसका पालन करो। सोने के रंग वाले चितकबरे मृग का रूप धारण करके तुम सीता के सामने विचरो। जब वह तुम्हें पकड़ने के लिए राम को भेजेगी, तो तुम बहुत दूर भाग जाना और राम के ही स्वर में ‘हा सीते! हा लक्ष्मण!’ कहकर पुकारना। इससे घबराकर वह राम की सहायता के लिए लक्ष्मण को भी भेज देगी। तब मैं सीता का अपहरण कर लूँगा। उसके बाद तुम्हें जहाँ जाना हो, तुम चले जाना। इस एक कार्य के लिए मैं तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूँगा, पर यदि तुम नहीं मानोगे, तो मैं अभी तुम्हारे प्राण ले लूँगा।

बहुत समझाने पर भी जब मूर्ख रावण नहीं माना, तब हारकर मारीच ने कहा, “रावण! अपनी मूर्खता और अहंकार के कारण तुम अब अपना और समस्त राक्षसों का विनाश तय समझो। इसमें कोई संदेह नहीं कि राम के हाथों मेरी मृत्यु भी निश्चित ही है, किन्तु तुम्हारे हाथों मरने से अच्छा है कि मैं युद्धभूमि में शत्रु से लड़कर अपने प्राणों का त्याग करूँ। अतः मैं अब तुम्हारी योजना के अनुसार जनस्थान में जाऊँगा।” यह सुनकर रावण बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कसकर मारीच को गले लगाकर कहा, “अब तुमने वीरता की बात कही है क्योंकि अब तुम मेरी इच्छा मान रहे हो। आओ मेरा रत्नों से विभूषित आकाशगामी रथ तैयार है। तुम इस पर बैठकर मेरे साथ चलो। तब रावण और मारीच उस विमान पर बैठकर दण्डकारण्य की ओर चल दिए।
आगे अगले भाग में…
स्रोत: वाल्मीकि रामायण। अरण्यकाण्ड। गीताप्रेस
जय श्रीराम 🙏🏻


पं रविकांत बैसान्दर✍️

बीणा का आविष्कार (Invention of Harp)


 भारतीय शास्त्रीय संगीत में सात स्वरों का मूलाधार वैदिक काल से है। इन स्वरों का महत्व उनके ध्वनिक और आध्यात्मिक परिणामों में है और यह सनातन परंपरा में भगवान शिव के साथ गहरा संबंध रखता है। भगवान शिव को नादब्रह्म (संगीत का दिव्य स्वरूप) के रूप में भी जाना जाता है। उनके ध्वनि का महत्वपूर्ण स्थान है और सात स्वर उनकी महिमा को दर्शाते हैं।

माता पार्वती के साथ भगवान शिव का संबंध स्त्री-पुरुष संबंध की सर्वाधिक मानक स्वरूप है। एक-दूसरे के संग उनके कोमल प्रणय समय बिताने की अनेक कथाएं हैं, जिसमें संगीत का आनंद भी शामिल है। इन कथाओं में, भगवान शिव कई बार संगीत वादन करते हुए दिखाए गए हैं। भगवान शिव अपने संगीत को समयानुसार माता का मनोरंजन और ध्यान साधना दोनों का जरिया बनाते थे।

इस पेंटिंग में मैंने भगवान शिव को बीणा बजाते हुए माता पार्वती के साथ मग्न दिखाया है। वाद्य यंत्रों में से इस तस्वीर के लिए मैंने बीणा को इसलिए चुना क्योंकि बीणा का आविष्कार महादेव द्वारा बताया जाता है। डॉ अशोक कुमार अमन अपनी पुस्तक भारतीय संगीत का इतिहास-भाग एक के पृष्ठ संख्या-१५४ में वीणा के आविष्कार पर लिखते हैं - "एक बार देवी पार्वती को श्री महादेव ने इस प्रकार शयन करते हुए देखा कि उनके दोनों हाथ दोनों छातियों पर रखे हैं और वे सीधी सो रही हैं, महादेव ने पार्वती की दोनों छातियों के रूप में दो तुम्बे और हाथों को डांड के रूप में बनाकर बीणा तैयार की और चूड़ियों के स्थान पर तरबें लगा दी। इस प्रकार बीणा का आविष्कार हुआ।"

इस तस्वीर में महादेव और माता के संबंध के कोमल संगीतमय ध्यान मुद्रा के माध्यम से मैंने दांपत्य जीवन के मधुर रस को प्रस्तुत करने की कोशिश किया है।

आप सबों की आशीर्वाद, सलाह और समीक्षा की कामना के साथ।


रीतिका (०८-०३-२०२४)✍️


शुक्रवार, 8 मार्च 2024

Story of Manjusha Painting (मंजूषा चित्रकला की कहानी)


Manjusha Art

Manjusha Art is based on a folk story. The tale is that of Bihula who saved her husband from the deity’s wrath and a snake-bite and also of Bishahari or Mansa Devi, the snake goddess. Earlier this story used to be sung in the oral tradition, nowadays though the oral songs are not as popular, an effort is being made to revive them. Manjusha Art is the First narrative folk art here is the story on which Manjusha Art is based and is illustrated.

The story goes that one-day Lord Shiva was taking a bath in Sona dah Lake, at which time Five (05) hairs from his plait broke and fell into the water. These 05 hairs become five lotuses at the bank of the river. As Shiva continues with his bath, he hears a sound coming from the lotuses, all five of the lotuses request Lord Shiva to accept them as his daughters. Shiva replies that without seeing their true form, he cannot accept them. All 05 lotuses convert into their true forms of 05 women. They are 05 sisters their names are-

  1. Jaya Bishahari – Symbols – Bow & Arrow + Amrith Kalash
  2. Dhothila Bhavani – Symbols – One hand the rising sun and on the other Hand a snake
  3. Padmavathi – Symbols – One hand there is a lotus
  4. Mynah Bisahari – symbol – The mynah Bird in one hand
  5. Maya bishahari /Manasa bishahari – Symbols – Both hands are snakes.

Lord Shiva accepts these five Women as his “Manasaputri” which means he accepts them as his daughters in the human form. They are also known as “Dattak Putri” (Daughters who have been adopted.) As he accepts them in their human form, they are also known as “Manasa”.

Those five sisters go to Goddess Parvati and ask her to accept their daughters as their own, to which she rejects their offer. The five sisters become angry at this and transform themselves into snakes and plant lizards in the flowers. When Goddess Parvati plucks flowers, snakes bite her and she becomes unconscious. At the same time, Lord Shiva comes and requests those five sisters to revive Parvati ji and he assures them that Goddess Parvati will accept him. On this request of Shiva, Jaya Bishahari gave Amrit to Goddess Parvati from her Amrit Kalash and revived Goddess Parvati. Parvati gave him a boon and said that - Whoever worships him can get rid of snake poison. After that the word "Bishahari" was added to the name of Mata Jaya and she got recognition all over the world by the name of Jaya Bishahari.

One day, all the five sisters were playing a game called “Jhingri” together in the form of snakes. Then Lord Vasuki Naag comes to him. Those five sisters tell them that - now that they belong to Lord Shiva's family and every member of their family is worshipped, they should also be worshipped. Lord Vasuki Naga replied that there is a devotee of Lord Shiva named Chando Saudagar in Champa city of Angapradesh. If he accepts to worship him then all people in the entire world will follow him. Hearing this, the five sisters ask permission from Lord Shiva to go to Chando Saudagar of Champa Nagar.

Chando Saudagar was a very successful Businessman. He was a very strong Lord Shiva devotee and did business nationwide and beyond. He had 06 sons. When the Bishaharis approached him and asked him to worship them, and they said if he did so, then they would grant him boons of wealth & power. To which Chando soudagar replied that he did not know who they were and He would not worship Them. On hearing this Mynah Bisahhari gets angry and curses him “If he does not worship them then they will ruin his business and kill his family.” But Chando Saudagar even on hearing this and refuses to worship them. Chando Saudagar was also known as a very stubborn man and once he made up his mind about something, it was very difficult to get him to change it.

Once when Chando Saudagar was traveling with his sons in the boat “Sonamukhi” which was made of gold, his wife Sonka Sahund requests Chando Saudagar to worship the Bishaharis, at which he again refused. Bishaharis becomes furious about his refusal and drowns the entire family along with the boat. But the Bishaharis discuss amongst themselves and realise that if they drowned Chando saudagar also then their wish of being worshipped would not be fulfilled. So all 05 Sisters prayed to Lord Hanuman, who appeared in front of them and He pulled out Chando saudagar from the sea. After this incident, Chando Saudagar still refuses to worship the Bisaharis, as time passes by, Chando saudagar and his wife have another son Bala Lakhendra. Once the son grows up, they go in search of a suitable bride for him. His marriage is fixed with a Girl by the name Bihula from the nearby village of Ujjaini. This proposal was accepted by Chando Saudagar after much deliberation, as he was very much aware of the Bisaharis curse and wanted to make sure the girl whom his son married would be able to stand up against the Bisaharis.

There are many other small stories here, which claim that Bihula had been cursed by an old woman that she would become a widow on her wedding night.

It is said that Chando Saudagar tests Bihula’s intelligence by asking her to prove herself through some tasks he set her. After he was satisfied, the proposal was accepted and with a lot of pomp and celebrations, the wedding took place. Always aware of the threat of the Bisaharis, an iron house had been constructed for the couple's wedding night. This house had been constructed by the “Devashilpi” Lord Bishwakarma. The Bisaharis though had made sure that they had intercepted this plan and had requested him to leave a small hole as fine as a hair in the wall of the room. The night of the marriage the house was surrounded by a lot of people guarding it and also mongooses the enemies of the snakes. The Bisaharis managed to get Lord Shivas snake “Maniyar” to enter the house and kill Bal Lakhendra. Bihhula distraught at her husband’s death starts crying, at which the rest of the family appears. Chando saudagr is about to order that his son's body is to be immersed in the river When Bihula stops him and says she will travel with his body and approach “Nethula Dhobin” to revive him. Bihula orders the same Bishakarma who had constructed the house to construct a boat for her, in which she can take her husband’s body and a cover/Manjusa to cover the body. She also requests an artist to draw the story of her tribulations on the Manjusa in which all her family members were depicted. She also requested him to portray all the flora and fauna of the Ang Pradesh. The colours were used such that sacrilege, Determination and happiness were portrayed. As Bihula takes her husband in the manjusha they go through Sonapur ghat, Godha ghat, Jawari ghat, Jokaseni ghat, Sahushanka Ghat, Bhojaseni ghat, then they finally reach Galantri ghat, where the water is such that it is like an Acid and there the flesh of Bala gets dissolved and only the skeleton remains. (Even today the water there is not used, it is said to cause deaths for animals, and it is on the way to Katihar). She puts the skeleton into a Potli (Bag) and continues on her journey.

As she is going ahead, she experiences an incident. She sees one woman with two men. she was the Nethula Dhobin. She saw her cut her husband into “koota” and the son she cut and made into a “Paat”. She washes her clothes (the story goes that she used to wash the clothes on all the gods and goddesses) and once she is done with certain Mantras she brings back her husband and son alive and then they continue with their work. Bihula witnesses this and realizes that she can help her in keeping her husband alive. Bihula approaches her and requests her help in reviving her husband. After a lot of trials and tribulations, Bihula manages to approach Lord Shiva in heaven and there she conceals her face by wearing her Ghoongat. She requests Lord Shiva that she wants all the wealth that her Father-in-Law Chando Saudagar lost to be returned to him, and requests all the other gods and goddesses, that when she entered Champa Nagar all the happiness had gone, so she requests them to give them back their happiness. She also asks that her 06 Sister in laws who are widows should become “Suhaagan” again and that she is blessed with the happiness of having children. All her boons were granted, and then she removed her ghoonghat and Bisahari recognized her as Bihula. At that point, Bishahari tells her that all your boons will come true only on one condition that you will make sure that Chando Saudagar will worship her and her sisters. Bihula agrees and assures her that she will get this pooja done. Bisahari brings Bala back to life. The entire family with the Sonamukhi boat and their wealth head back to Champa Nagar. Once they go the entire family starts greeting one another with a lot of celebrations and festivities. Then Bihula stops them and says there is one condition that Chando Saudagar has to do pooja for Bisahahri. He refuses, and the moment he refuses Bisahari asks Bihula with her power to create a sense of Darkness “Aandhi”. Bihula does so, and the 07 brothers again fall into the lake where they are drowned, the family requests Chando Saudagar to do pooja, but he still refuses and says he would rather die than do this pooja, as he removes his sword to kill himself and offer himself to Lord Shiva, Lord Shiva appears and tells him not to kill himself and Bishahri is her daughter, on hearing this Chando Saudagar says he will offer pooja in his right hand only to Lord Shiva, so Shiva says then offer pooja to her with your left hand. Chando Saudagar accepts this and worships Bisahari with his left hand. With her worship, the worship of Maa Mansa begins all over the world.




मंजूषा कला


मंजूषा कला एक लोक कथा पर आधारित है। कहानी बिहुला की है जिसने अपने पति को देवता के प्रकोप और सांप के काटने से बचाया था और बिषहरी या मनसा देवी जो की सांपो की देवी थी उनसे भी संबधित यह कथा हैं। पहले यह कहानी मौखिक परंपरा में गाई जाती थी, आजकल यद्यपि मौखिक गीत उतने लोकप्रिय नहीं हैं, फिर भी उन्हें पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। मंजूषा कला पहली कथात्मक लोक कला है, यहाँ वह कहानी है जिस पर मंजूषा कला आधारित है और जिसका चित्रण किया गया है।

कहानी यह है कि एक दिन भगवान शिव सोना दाह झील में स्नान कर रहे थे, उसी समय उनकी जटा से 05 बाल टूटकर पानी में गिर जाते हैं। नदी के किनारे ये 05 बाल 05 कमल में परिवर्तित हो जाते हैं। शिव जी अपना स्नान करना जारी रखते है तभी उन्हें कमलों से आने वाली ध्वनि सुनाई दी, सभी 05 कमलों ने भगवान शिव से उन्हें अपनी बेटियों के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध किया। शिव उत्तर देते हैं कि उनके वास्तविक स्वरूप को देखे बिना वह उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। सभी 05 कमल अपने असली रूप 05 नारियों में परिवर्तित हो जाते हैं। वे 05 बहनें हैं उनके नाम हैं –

  1. जया बिषहरी - प्रतीक - धनुष और बाण एवं अमृत कलश
  2. धोथिला भवानी - प्रतीक - एक हाथ में उगता हुआ सूरज और दूसरे हाथ में साँप।
  3. पद्मावती - प्रतीक - एक हाथ में कमल।
  4. मैना बिषहरी - प्रतीक - एक हाथ में मैना पक्षी।
  5. माया बिषहरी/मनसा बिषहरी - प्रतीक - दोनों हाथ में सर्प हैं।

भगवान शिव इन 05 नारियों को अपनी "मानसपुत्री" के रूप में स्वीकार करते हैं जिसका अर्थ है कि वह उन्हें मानव रूप में अपनी बेटियों के रूप में स्वीकार करते हैं। उन्हें "दत्तक पुत्री" (गोद ली गई बेटियाँ) के रूप में भी जाना जाता है। चूँकि वह उन्हें उनके मानव रूप में स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें "मनसा" के नाम से भी जाना जाता है।

वे पांचो बहनें देवी पार्वती के पास जाती हैं और उनसे उन्हें अपनी बेटियों के रूप में स्वीकार करने के लिए कहती हैं, जिससे वह इनकार कर देती हैं। इसपर पांचो बहनें क्रोधित हो जाती हैं और वे खुद को सांप के रूप में बदल लेती हैं एवं फूलों में छिप जाती हैं। जब देवी पार्वती फूल तोड़ने जाती हैं तो सांप उन्हें काट लेता है और वह बेहोश हो जाती हैं, उसी समय भगवान शिव आते हैं और उन पांचो बहनो से पार्वती जी को पुन: जीवित करने का अनुरोध करते हैं और वह उन्हें यह विश्वास दिलाते है की देवी पार्वती उन्हें स्वीकार कर लेंगी। शिव के इस अनुरोध पर जया बिषहरी ने देवी पार्वती को अपने अमृत कलश से अमृत पिलाया और देवी पार्वती को पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि – जो भी उनकी पूजा करेगा वो सांप के जहर से छुटकारा पा सकता हैं। उसके उपरांत माता जया के नाम में "बिषहरी" शब्द जुड़ गया एवं उन्हें जया बिषहरी के नाम से पूरी दुनिया में पहचान मिली।

एक दिन वे सभी पांचो बहनें एक साथ मिलकर साँप का रूप धारण कर “झिंगरी” नामक खेल, खेल रही थीं। तभी भगवान वासुकी नाग उनके पास आते हैं। वे पांचो बहनें उनसे कहती हैं कि - अब जब वे भगवान शिव के परिवार की हैं और उनके परिवार के हर सदस्य की पूजा की जाती है तो उनकी भी पूजा की जानी चाहिए। भगवान वासुकी नाग ने उत्तर दिया कि अंगप्रदेश राज्य के, चंपा नगर में चांदो सौदागर नाम का एक भगवान शिव का भक्त है। यदि वह उनकी पूजा करना स्वीकार कर ले तो पृथ्वी पर सभी लोग उसका अनुसरण करेंगे। यह सुनकर पांचो बहनें भगवान शिव से चंपा नगर के चांदो सौदागर के पास जाने की अनुमति मांगती हैं।

चांदो सौदागर एक बहुत ही सफल व्यवसायी एवं भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और देश-विदेश में व्यापार करते थे, उनके 06 पुत्र थे। जब बिषहरियों ने उनसे संपर्क किया तो उनसे अपनी पूजा करने के लिए कहा, और ये भी कहा कि यदि वह ऐसा करेंगे, तो वे उन्हें धन और शक्ति का वरदान वे देंगी। जिस पर चांदो सौदागर ने उत्तर दिया कि - वह यह नहीं जानता कि वे कौन है और वह उनकी पूजा नहीं करेगा। यह सुनकर मैना बिषहरी क्रोधित हो जाती है और उन्हें श्राप दे देती है कि "यदि वह उनकी पूजा नहीं करेगा तो वे उसके व्यवसाय को बर्बाद कर देंगे और उसके परिवार को मार डालेंगे।" लेकिन चांदो सौदागर यह सुनकर भी उनकी पूजा करने से इंकार कर देते है। चांदो सौदागर को एक बहुत ही जिद्दी व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था और एक बार जब उन्होंने किसी चीज़ के बारे में अपना मन बना लिया, तो उसे बदलना बहुत मुश्किल था।

एक बार जब चांदो सौदागर अपने बेटों के साथ सोनामुखी नाव में यात्रा कर रहे थे, जो सोने से बनी थी, तो उनकी पत्नी सोनका सहुंड ने चांदो सौदागर से बिषहरियों की पूजा करने का अनुरोध किया, जिस पर उन्होंने फिर से इनकार कर दिया। उनके इस इनकार पर बिषहरियों को क्रोध आ जाता है और वे नाव को पूरे परिवार सहित डुबो देती है। लेकिन उसके उपरांत बिषहरियों ने आपस में चर्चा की और ये महसूस किया कि अगर उन्होंने चांदो सौदागर को भी डुबो दिया तो उनकी पूजा करने की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। इसलिए सभी 05 बहनों ने भगवान हनुमान से प्रार्थना की, जो उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने चांदो सौदागर को समुद्र से बाहर निकाला। इस घटना के बाद, चांदो सौदागर ने हमेशा बिषहरियों की पूजा करने से इनकार करते रहे, जैसे-जैसे समय बीतता है, चांदो सौदागर और उनकी पत्नी का एक और बेटा बाला लखेंद्र का जन्म होता है। जब उनका बेटा बड़ा हो जाता है तो वे उसके लिए उपयुक्त दुल्हन की तलाश में लग जाते हैं। उसकी शादी पास के गांव उज्जयिनी की बिहुला नाम की लड़की से तय होती है। इस प्रस्ताव को चांदो सौदागर ने बहुत विचार-विमर्श के बाद स्वीकार कर लिया, क्योंकि वह बिषहरियों के श्राप के बारे में बहुत अच्छी तरह से जानते थे और यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि जिस लड़की से उनके बेटा की शादी हो वो वह बिषहरियों के खिलाफ खड़ी हो सके।

यहां और भी कई छोटी-छोटी कहानियां हैं, जो दावा करती हैं कि बिहुला को एक बूढ़ी औरत ने श्राप दिया था कि वह अपनी शादी की रात विधवा हो जाएगी।

ऐसा कहा जाता है कि चांदो सौदागर ने बिहुला की बुद्धिमत्ता का परीक्षण करते हुए उससे अपने द्वारा निर्धारित कुछ कार्यों के माध्यम से खुद को साबित करने के लिए कहा। उनके संतुष्ट होने के बाद प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और बहुत धूमधाम और उत्सव के साथ शादी हुई। बिषहरियों के खतरे से हमेशा सचेत रहने वाले जोड़े की शादी की रात के लिए एक लोहे का घर बनाया गया था। इस घर का निर्माण "देवशिल्पी" भगवान विश्वकर्मा ने किया था। हालाँकि बिषहरियों की योजना को रोक दिया गया था लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित कर के कमरे की दीवार में एक बाल जितना छोटा छेद छोड़ने का अनुरोध भगवान बिश्वकर्मा से किया था। शादी की रात घर को बहुत सारे लोगों ने घेर लिया और पहरा देने लगे, उनके साथ सांपों के दुश्मन नेवले भी थे। बिषहरियों ने भगवान शिव के सांप "मनियार" को घर में प्रवेश करने और बाला लखेंद्र को मारने में कामयाबी हासिल की। अपने पति की मौत से व्याकुल बिहुला रोने लगती है, जिस पर परिवार के बाकी लोग आ जाते हैं। चांदो सौदागर आदेश देने ही वाले थे कि उसके बेटे के शव को नदी में विसर्जित कर दिया जाए, बिहुला उसे रोकती है और कहती है कि वह उसके शव के साथ यात्रा करेगी और उसे पुनर्जीवित करने के लिए "नेथुला धोबिन" के पास जाएगी। बिहुला ने उसी विश्वकर्मा को आदेश दिया जिसने घर का निर्माण किया था ताकि वह उसके लिए एक नाव का निर्माण कर सके, जिसमें वह अपने पति के शरीर और शरीर को ढकने के लिए एक आवरण/मंजूषा ले जा सके। वह एक कलाकार से मंजुषा पर उसके कष्टों की कहानी बनाने का भी अनुरोध करती है जिसमें उसके परिवार के सभी सदस्यों को चित्रित किया गया है। उन्होंने उनसे अंग प्रदेश की सभी वनस्पतियों और जीवों को चित्रित करने का भी अनुरोध किया। रंगों का उपयोग ऐसे किया गया कि पवित्रता, दृढ़ संकल्प और खुशी को चित्र के माध्यम से दिखाया जा सके। बिहुला अपने पति को मंजूषा में ले के सोनापुर घाट, गोधा घाट, जवारी घाट, जोकासेनी घाट, साहूशंका घाट, भोजासेनी घाट से गुजरते हुये, फिर अंत में गलन्त्री घाट पहुंचती हैं, जहां का पानी बिल्कुल एसिड की तरह है और वहां बाला का मांस गल जाता है और केवल कंकाल रह जाता है। (आज भी वहां के पानी का उपयोग नहीं किया जाता है, कहा जाता है कि यह पानी जानवरों की मौत का कारण बनता है, यह कटिहार के रास्ते में है)। वह कंकाल को एक पोटली (बैग) में रखती है और अपनी यात्रा जारी रखती है।

जैसे ही वह आगे बढ़ती है, उसे एक दृश्य दिखाई देता है। वह एक महिला को दो पुरुषों के साथ देखती है। वह नेथुला धोबिन थी। उसने देखा कि उसने अपने पति को काट कर "कूट" बना दिया था और बेटे को भी उसने काट कर "पाट" बना दिया था। और उस पर अपने कपडे धो रही है । (कहानी के अनुसार, नेथुला धोबिन सभी देवी-देवताओं के कपड़े धोती थी) कपडे धोने के उपरांत वह वह कुछ मंत्रों का जाप करती है और उसके पति और बेटे को जीवित हो जाते है। बिहुला ने जब यह दृश्य देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह अपने पति को जीवित करने में नेथुला धोबिन उसकी मदद कर सकती है। बिहुला उसके पास जाती है और अपने पति को पुनर्जीवित करने में मदद का अनुरोध करती है। बहुत सारे परीक्षणों और कष्टों के बाद, बिहुला आकाश में भगवान शिव के पास जाने में सफल हो जाती है और वहां वह अपना चेहरा घूंघट में छिपा लेती है। वह भगवान शिव से प्रार्थना करती है कि वह चाहती है कि उसके ससुर चांदो सौदागर की खोई हुई सारी संपत्ति उन्हें वापस मिल जाए, और अन्य सभी देवी-देवताओं से प्रार्थना करती है कि जब उसने चंपा नगर में प्रवेश किया तो सारी खुशियाँ चली गईं, इसलिए वह विनती करती है उसकी सारी खोई खुशियाँ वापस लौट आये। वह यह भी मांगती है कि उसकी 06 ननदें जो विधवा हैं, वे फिर से "सुहागन" बन जाएं, और उसे बच्चे पैदा करने की खुशी मिले। उसे देवताओं द्वारा सभी वरदान दे दिए जाते है, उस समय वह अपना घूंघट हटाती है और बिषहरी उसे बिहुला के रूप में पहचान लेती है। तब बिषहरी उससे कहती है कि आपके सभी वरदान केवल एक शर्त पर सच होंगे कि आप यह सुनिश्चित करेंगे कि चांदो सौदागर उसकी और उसकी बहनों की पूजा करेंगे। बिहुला सहमत हो जाती है और उसे आश्वासन देती है कि वह अपने ससुर चांदो सौदागर से यह पूजा करवाएगी। बिषहरी बाला को वापस जीवित कर देती है। उसका पूरा परिवार सोनामुखी नाव और अपनी संपत्ति के साथ चंपा नगर वापस लौट आते है। जब वे वापस चले जाते हैं तो पूरा परिवार ख़ुशी और उत्सवों के साथ एक-दूसरे को बधाई देना शुरू कर देता है। उस समय बिहुला उन्हें रोकती है और कहती है कि एक शर्त है कि चांदो सौदागर को माता बिषहरी की पूजा करनी होगी। लेकिन चांदो सौदागर उसे मना कर देता है, जैसे ही वह मना करता है, बिषहरी बिहुला से अंधेरा/आंधी पैदा करने की अनुमती मांगती है। बिहुला उसे अनुमति दे देती है, और उनके सातो पुत्र फिर से झील में गिर जाते हैं जहां वे डूब रहे होते हैं, पुरा परिवार चांदो सौदागर से पूजा करने का अनुरोध करता है, लेकिन वह फिर भी मना कर देता है और कहता है कि वह इस पूजा को करने के बजाय मरना पसंद करेगा, क्योंकि वह केवल शिव की पूजा करते है। वह खुद को मारने के लिए अपनी तलवार निकालते है, एवं स्वं को भगवान शिव को अर्पित कर देते हैं तभी भगवान शिव प्रकट होते हैं और उनसे कहते हैं कि वह खुद को न मारें और बिषहरी की पूजा करे क्योंकि वह उनकी बेटी है। यह सुनकर चांदो सौदागर कहते हैं कि वह अपने दाहिने हाथ से केवल भगवान शिव को पूजा अर्पित करेंगे, तो शिव कहते हैं कि आप माँ मनसा की पूजा अपने बाएँ हाथ से कर सकते है । चांदो सौदागर इसे स्वीकार कर लेते हैं और बाएं हाथ से बिषहरी की पूजा करते हैं।

चांदो सौदागर के पूजा करने के साथ ही पुरे पृथ्वी लोक पर माँ मनसा की पूजा प्रारंभ हो जाती है।


कहानी के अनुसार मंजूषा पेंटिंग


शिवजी सोना दाह में स्नान करते हुए पांच कमल की उत्पत्ति
Shivaji bathing in Sona Dah, And Origin of five lotuses.



शिवजी मनसा देवी को लेकर पार्वती जी के पास पहुंचते हुए।
Shiv jee reaching Parvati jee with Manasa Devi.

शिवजी और मनसा देवी के बीच संवाद पूजा लाने के लिए।
Communication between Shiva jee and Manasa Devi to bring worship.

मनसा देवी एवं उनकी पांच बहने एक साथ।
Mansa Devi and her five sisters are together.

चंद्रधर सौदागर का चित्र हाथ में छड़ी और मछली लिये हुये।
Painting of Chandradhar Saudagar holding a stick and fish in his hand.

चंद्रधर सौदागर शिव जी की पूजा करते हुए।
Chandradhar Saudagar worshiping Lord Shiva.

मनसा देवी एवं चंद्रधर सौदागर के बीच संवाद।
Communication between Mansa Devi and Chandradhar Saudagar.

 चंद्रधर सौदागर और उसके छ: पुत्र।
Chandradhar Saudagar and his six sons.

चंद्रधर सौदागर का नगर भ्रमण।
City tour of Chandradhar Saudagar.

चंद्रधर सौदागर का अपने व्यापार के लिए जाना।
Chandradhar Soudagar going for his business.

चंद्रधर सौदागर का नाव पलटना।
Chandradhar Saudagar boat capsizing.

बाला लखेन्द्र का जन्म।
Birth of Bala Lakhendra.

 बिहुला का जन्म।
Birth of Bihula.

 बिहुला तालाब।
Bihula Pond.

बिहुला का दाल पकाना।
Cooking Bihula Pulse (Dal).

 बाला लखेन्द्र और बिहुला का वरमाला।
Garland of Bala Lakhendra and Bihula.

 बाला लखेन्द्र और बिहुला की शादी।
Marriage of Bala Lakhendra and Bihula.

बिहुला, डोली पर बैठ ससुराल जाते हुए।
Bihula, going to her in-laws' house, sitting on a doli.

विश्वकर्मा भगवान के द्वारा लोहा एवं बांस के घर का निर्माण।
Construction of a house of iron and bamboo by Lord Vishwakarma.

 लोहा एवं बांस के घर में बाला और बिहुला।
Bala and Bihula in a house of iron and bamboo.

लहसन मालाकार द्वारा रंग रोजन का कार्य।
The work of coloring by Lahsan Malakar.

बिहुला का अपने मृत पति के साथ स्वर्ग जाना।
Bihula going to heaven with her dead husband.

नेतुला धोबिन के द्वारा कपड़ा धुलाई।
Washing clothes by Netula washerman (Dhobin).

 बिहुला का स्वर्ग में टेकुआ नृत्य (सुई के ऊपर नृत्य)।
Bihula's tekua dance (dance over the needle) in heaven.

बाला लखेंद्र और उनके सभी भाई का जीवित होना।
Bala Lakhendra and all his brothers are alive.

 बिहुला का पृथ्वी लोक पर आना।
Bihula's arrival on The Earth.

चंद्रधर सौदागर द्वारा बिहुला का स्वागत।
Bihula welcomed by Chandradhar Saudagar.

 चंद्रधर सौदागर और बिहुला के बीच मनसा देवी की पूजा के लिए संवाद।
Dialogue between Chandradhar Saudagar and Bihula for the worship of Mansa Devi.

चंद्रधर सौदागर का बाएं हाथ से मनसा देवी की पूजा करना।
Chandradhar Saudagar worships Mansa Devi with his left hand.

चंद्रधर सौदागर अपने सभी परिवार के साथ शिव जी की पूजा करते हुए।
Chandradhar Saudagar worshiped Lord Shiva with his entire family.

पृथ्वी लोक में मनसा देवी की पूजा होना।
Manasa Devi worshipped in the entire world.

शिवलिंग का चित्र।
Painting of Shivalinga.