मेरी लेखनी✍️ में अब तो,
तुम्हारा ही जिक्र आएँ।।
सैकड़ों मील से मुझको,
तेरी खुश्बू🏵️ आए।।
कितने रंगीन थे साएं,
वो तेरी जुल्फों के।
सोचता हूं मैं जब तो,
आंख से मेरे लहू😭 आए ।।
तुमने ही मुझ पे किया है,
कोई काला जादू ।☠️
हर घड़ी तेरा चेहरा👩🏻🦰 ही,
मुझे रूबरू आए।।
इतनी मंजलिस है कि,
हम अब क्या ही कहें।
मेरी नजरों को इक तेरी ही,
जुस्तजू आए ।।
कितने उक्ताए हैं हम,
इस जिंदगी से की पूछो ही मत।
साक़ी दिल जो थम जाए,
तो हमें कुछ सुकूँ आए ।।
दिल की मैं बेकली कहूँ,
या कहुँ आख़री ख्वाहिश।
काश मैय्यत पे मेरी,
सज-सँवर🧑🏻🦰 के तू आए ।।
इस कदर भर गया बुराइयों से मैं अब तो।
अपने किरदार से मुझे बू आए।।
साभार - सोशल मीडिया
जुस्तजू (स्त्रीलिंग) - खोज, तलाश।
मजलिस (स्त्रीलिंग) - भीड़, बैठने की जगह, सभा।
बेकली (स्त्रीलिंग) - बेचैनी।
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