ग़ज़ल ...🥀
मिलना था इत्तिफ़ाक़,
बिछड़ना नसीब था।
वो उतनी दूर हो गया,
जितना क़रीब था।
मैं उस शख़्स को देखने के लिये,
तरसता ही रह गया।
जिस शख़्स की हथेली पर,
मेरा नसीब था।
मेरे बस्ती के सारे लोग ही,
आतिश-परस्त थे।
घर जल रहा था मेरा,
...और समुंदर क़रीब था।
मैं कहाँ तलाश करू,
अपने ख़ूनी को
हर शख़्स के हाथो में,
निशान-ए-सलीब था।
आख़िरकार उसका निशां,
मिट ही गया।
जो मेरे लिए कभी,
कोहिनूर💎 था।
विश्वजीत कुमार✍️
गजल में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ -
आतिश-परस्त - आग की पूजा करने वाला।
सलीब - लोहे आदि का वह नुकीला डंडा या इसी तरह की कोई और चीज जिसपर बैठा या लटकाकर प्राचीनकाल में अपराधियों को प्राणदंड दिया जाता था।
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