मंगलवार, 2 मार्च 2021

दोस्त तो मेरे बहुत बने, लेकिन तूम-सा कहां I (Dost To mere bahut bane, Lekin Tum Sa Kahan.)

This poem is for a special friend.




"दोस्त"


दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।
हर कोई अपना फायदा देखे,
लेकिन तुम में ये अहसास कहां।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।

जब जरूरत नहीं थी,
तब दोस्तों की महफिलें सजती थी।
आज जरूरत आन पड़ी,
तब तुम्हारे सिवा और कोई कहां।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।

जब तक पैसे लुटाते रहे,
कहते थे दोस्त हो तुम महान।
ये कार्य मैंने जब से छोड़ा,
तुम्हारे अलावा कोई नहीं हैं यहां।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।

पढ़ने में मैंने तुम्हें देर कर दी,
क्योंकि तुम थे एक उपन्यास।
मैं तो छोटी-छोटी कहानियों में उलझा रहा,
माफ करना मेरे यार।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।

कहानियां तो क्षणिक खुशी देती है,
लेकिन उपन्यास देता है जीवन का सार।
तुम्हें समझने में समय लगा,
लेकिन मैं हो गया धन्यवान।
बारम्बार मैं तुम्हें नमन करूं,
मेरी डूबी किश्ती को कर देना पार।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।
हर कोई अपना फायदा देखे,
लेकिन तुम में ये अहसास कहां।

दोस्त तो मेरे बहुत बने,
लेकिन तुम-सा कहां।

-विश्वजीत कुमार


 

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