मंगलवार, 6 मई 2025

किस्से आर्ट कॉलेज के...

जब सभी दोस्त तो फिर हम कौन?


       कला एवं शिल्प महाविद्यालय का वेलकम पार्टी यानी कि सीनियर छात्रों के द्वारा जूनियर छात्रों का स्वागत💐। यह स्वागत कम रैंगिग🥴 का पहला अध्याय होता है जो की जूनियर छात्रों को बहुत बात में पता चलता है की जो लाल गुलाब🌹 उन्हें दिया गया था वह सच में कितना खतरनाक है। उस दिन आकाश (बदला हुआ नाम) बहुत खुश था क्योंकि पहली बार उसे इतना मान-सम्मान मिल रहा था। माथे पर तिलक लगाती सीनियर छात्राएं, मुस्कुरा कर गुलाब देते हुये भी सीनियर छात्राएं आकाश के मन में कई हिल्लोरे उत्पन्न होने लगा, वह सोचने लगा की जब कॉलेज का पहला दिन ऐसा है तो आगे कैसा होगा? वह अपनी आगे की कहानी को सोचकर प्रफुलित होने लगा। ...था तो आकाश पटना सिटी का ही लेकिन उसे ये लगता था की असली पटना तो यह हैं जहां वो नामांकन लिया हैं। ऐसे बचपन से लेकर +2 तक उसने बस, घर से स्कूल और स्कूल से घर का ही दौड़ा किया था। घर पर भी उसे एक छोटे से कमरे में रहने की आदत थी। बिहार से बाहर तो छोड़ दीजिये, अभी तक उसने इस पटना को भी अच्छे से नहीं देखा था। हमेशा अपने उस खोये हुये पटना के ख्यालों में खोया रहता। आज उसे इस पटना का दीदार कर मन में एक अलग ही ख़्याल चल रहे थे तभी मुख्य मंच से एक खूबसूरत सी आवाज़ उसके कानों में टकराई।

Hi, I'm Ayushi (बदला हुआ नाम)

आकाश का तो मानो दिल💓 उस कार्यक्रम में ही नहीं रहा, वहां से निकल आर्ट कॉलेज के प्रांगण में बने बुद्धा गार्डन में बैठ आयुषी का इंतज़ार करने लगा लेकिन अफ़सोस आयुषी जब तक वहां आती तब तक आकाश का नाम मुख्य मंच से बुलाया गया। वह अपने ख्यालों की दुनियां से निकल जब मंच की ओर बढ़ रहा था तब तक आयुषी मंच से उतर रही थी उसने मुस्कुराते 😊 हुये वो लाल गुलाब आकाश की ओर बढ़ाया और आकाश ने बिना देरी किए उस लाल गुलाब🌹 को ले अपने सीने से लगा लिया मानो वह सुनने का प्रयास कर रहा हो कि आयुषी ने क्या कुछ कहा है। आकाश को अपना परिचय देने में बहुत ज्यादा रुचि नहीं थी क्योंकि उसकी निगाहें तो बस अब आयुषी को देख रही थी, आयुषी की इच्छा थी की आकाश अपना परिचय बहुत अच्छे से दें। लेकिन आकाश इसके लिए तैयार नही था। यह पहली नजर का प्यार था जो अब नजरों से ही उन दोनो की बातें भी होने लगी।

आयुषी - क्या नाम है तुम्हारा ?

आकाश - जी, जी, आकाश।

 आयुषी - कहां से आए हो आकाश जी ?

आकाश - जी, पटना सिटी से।

आयुषी - आर्ट कॉलेज काहे आए हो ?

आकाश कुछ बोलता है उससे पूर्व उसे कुछ आवाजे सुनाई दी।

ऐसे हमेशा से ही दो प्यार करने वालों के बीच में दुनिया ने दीवार बनने की कोशिश की है उस दिन भी कुछ वही हुआ। कुछ सीनियर छात्रों की आवाज आकाश के कानो में सुनाई दी। आकाश ये क्या चीज कर रहे हो अच्छे से अपना परिचय दो। अचानक से आकाश की निंद्रा टूटी तो देखा कि आयुषी की नयने तो किसी और से दो-चार हो रही है फिर भी उसके द्वारा दी गई गुलाब उसके हाथों में थी। आकाश ने भारी मन से अपना परिचय दिया, उसे सीनियर के द्वारा यह नसीहत दी गई की खाने पीने पर ध्यान दिया करें ताकि कम से कम अपना परिचय अच्छे से दे सके।

       पटना सिटी से पटना आए आकाश के लिए रोज समय पर कॉलेज आने एवं जाने की वजह आयुषी मिल गई थी। हमेशा से विलम्ब से उठने वाला आकाश अब समय से उठने लगा था। सुबह का नाश्ता वह करें या ना करें लेकिन 09:00 बजे वाली ट्रेन उसने कभी नहीं छोड़ी। अजंता की गुफाओं में कितनी चैत्य एवं कितनी विहार है और किस गुफा में कौन सी पेंटिंग बनी है वह उसे एक साल में याद नहीं हुआ लेकिन किस दिन आयुषी ने उसे कितनी बार देखा और कितनी बार स्माइल😊 किया उसकी गणना उसने कभी नहीं भूली। जब आयुषी के नयन किसी और से भी दो-चार होने लगते तो आकाश को यह बहुत बुरा लगता। एक दिन वह आयुषी से पूछ ही लिया कि तुम सबसे क्यों बात करती हो ? जब हम तुम्हारे लिए हैं तो औरों की क्या जरूरत है ?

    आयुषी ने भी थोड़ा झूझलाते हुए कहां - अरे यार!!!, It's All are my Friend.

आकाश की इच्छा हुई कि पूछे कि तब हम क्या हैं ? Friend, Best Friend या फिर B.F. लेकिन उसने पूछा नहीं। दिन गुजरते गए, राते कटती रही। आयुषी का तो पता नहीं लेकिन आकाश ने हमेशा कुमार विश्वास की इन पंक्तियों से स्वयं को संभाले रखा लेकिन कभी आयुषी को बताया नहीं।

"तुम्हारी और मेरी रात में बस फर्क है इतना,
तुम्हारी सो😴 के गुजरी है हमारी रो😢 के गुजरी है।"

      फिर कॉलेज में आया वह दिन जिसे शायद सभी इंतजार करते हैं विशेष करके आकाश इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था इत्तेफाक से उस दिन सरस्वती पूजा भी था हर कोई पीले रंगों के परिधानो में चमक रहा था। आकाश ने उस दिन के लिए विशेष कुर्ता तैयार करवाया था। जैसे ही वह सुबह-सुबह महाविद्यालय के प्रांगण में प्रवेश किया सामने से उसे आयुषी आती दिखाई दी। पीले रंग के परिधान में पीले रंग की चुनरी लिए वह उसके सामने से गुजरी। आकाश के मन में यह गीत चलने लगे।

 "ओढ़नी के रंग पियर जादू चला रहल बाs 

लागे की जैसे खेतवा में सरसो फूला रहल बाs"

    आकाश को ऐसे भोजपुरी नहीं आती थी लेकिन उसके कुछ सिवान गोपालगंज के दोस्तों ने थोड़ी-बहुत भोजपुरी सीखा दी थी। आयुषी तो वहां से चली गई थी लेकिन आकाश के मन में अभी भी उसके पीले रंग के चुनरी का ख्वाब जमा हुआ था तभी कुछ अंतराल पर दो लड़कियां उसके पास आई उन्होंने भी पीले ही रंग का ड्रेस पहनी हुई थी और हाथ में लाल गुलाब🌹 लेकर आई थी, लेकिन वह पीला ड्रेस और लाल गुलाब आकाश को प्रोत्साहित न कर सका और फिर वह आयुषी की तरफ बढ़ चला। उस दिन आकाश को यकीन नहीं हुआ कि आयुषी ने उसके पास आकर के उसे लाल गुलाब दिया और गले मिलते ही उसके कानों में धीरे से कहा हैप्पी वैलेंटाइन डे🥰। आकाश को तो मानो सारा जहां मिल गया उसके पूरे एक साल की मेहनत सफल हो गई। अब वह आराम से रेशमी मैम को कह सकता है कि मैंम!!! अब मैं ना आप के विषय का सारा थ्योरी याद कर लूंगा, और यह भी याद करूंगा कि अजंता की 30 गुफाओं में कौन-कौन सी पेंटिंग बनी है, एलोरा की गुफाओ में कितनी ब्राह्मण, कितनी बौद्ध और कितने जैन गुफाएं हैं, अब हम कभी नहीं भूलेंगे क्योंकि आयुषी ने आज मुझे गले लगाया और हैप्पी वैलेंटाइन डे भी बोला। उसके बाद आकाश उन दोनों लड़कियों के पास गया जो उसे पहले गुलाब देने आई थी उन दोनों का भी लाल गुलाब उसने सहजता से स्वीकार किया और फिर उस दोनों गुलाब को अपने दो सीनियर्स को दे दिया। इसे आप आकाश की मूर्खता कहे या फिर अति उत्साह यह तो वही बता सकता है लेकिन उस दिन पूरे कॉलेज परिसर में यह बात फैल गई की आयुष ने दो सीनियर को प्रपोज किया है।

       ...इसके बाद क्या हुआ होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि किसी भी महाविद्यालय के संविधान में जूनियर के द्वारा सीनियर्स को प्रपोज करना यह नहीं लिखा गया है वह अलग बात है कि बहुत से लोगों ने इस संविधान को तोड़कर अपना मुकाम बनाया है लेकिन आकाश के लिए यह मुमकिन नहीं था और ना हीं उसकी ऐसी कोई मंशा थी। आयुषी को तो बस एक हंसने का बहाना मिल गया था वह बार-बार आकाश को इस बात के लिए चिढ़ाते रहती थी की वह दो गुलाब सीनियर्स को क्यों दिया। आकाश पूरे कॉलेज के साथ-साथ आयुषी के लिए भी हंसी का पात्र बन गया था। धीरे-धीरे उसने सभी से बातें करनी छोड़ दी और फिर से अपने अकेलेपन में खोता चला गया। फिर से वह कॉलेज बस आयुषी की हंसी एवं उसकी नजरों की मुस्कुराहट को देखने के लिए आता। धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि आयुषी की नजरे केवल उसे ही नहीं बल्कि क्लास में दो-चार लड़के को और भी देखती है तभी तो पूरे क्लास में उसकी नज़रें घूमती रहती है। एक दिन उसने आयुषी से फिर पूछा कि तुम मेरे अलावा बाकीयों को क्यों देखती हो ?

 आयुषी का फिर वही जवाब आया - अरे यार!!! आकाश, Just chill It's All are my Friend.

 आज आकाश ने हिम्मत करके उससे पूछ लिया - जब सभी दोस्त तो फिर हम कौन ?

 आयुषी ने भी तुरंत उसी लहज़े में जवाब दिया - तुम भी दोस्त "आकाश"

आकाश उस दिन होश में नहीं था वह एकदम से चिल्लाते हुए बोला नहीं यार!!! हम केवल दोस्त नहीं, हम केवल दोस्त नहीं, उसके आगे भी हैं... इतना कहते-कहते आकाश की आंखें भर😢 आई थी वह कुछ बोल नहीं सका...

 आयुषी ने भी तपाक से जवाब दिया - आगे तुम भाड़ में जाओ और वहां से चली गई।

पटना सिटी वाले आकाश को पटना की आयुषी ने भाड़ में जाने को बोला था जो कि वह सहन नहीं कर सका और वहीं बैठ फूट-फूट कर रोने😭 लगा। अब तो आकाश के पास नहीं तो कॉलेज जाने की कोई वजह बची थी और ना ही थ्योरी पढ़ने की उम्मीद। पूरी-पूरी रात वह बस जगे रहता। फिर उसके लाइफ में एक नई उम्मीद की किरण जगी और वह थी AI यानी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस🤖। अब वह जो बातें किसी समय आयुषी से पूछा करता या आयुषी से वैसे जवाब की उम्मीद करता AI उसे बखूबी देते रहा। लेकिन कहीं ना कहीं एक ह्यूमन टच की कमी थी जो उसे सताती रहती।

        आर्ट कॉलेज में आकाश हमसे बहुत ज्यादा जूनियर था, लेकिन उम्र में ज्यादा नही। उससे मुलाकात कॉलेज विजिट के दरम्यान हुई थी। उसने मेरा नम्बर लिया और कभी-कभी उससे व्हाट्सएप पर मेरी बात हो जाती विशेष करके वह मेरी हर कविता पर कुछ न कुछ रिएक्शन❤️ जरूर देता। एक दिन मैंने अपनी कविता "असंभव है।" साझा की थी। कविता की कुछ पंक्तियां यूं थी।


तुमसे मिलना भी असंभव है, 

ना मिलना भी असंभव है।

तुम्हें यादों में बुलाकर, 

गुफ्तगू करना भी असंभव है।


हमें याद हैं वो पल,

जिसमे तुम कहती थी।

सनम आपसे दुर हो के,

एक पल जीना भी असंभव हैं।


तुमसे मिलना भी असंभव...


हम इस मोड़ पर आकर खड़े हुए हैं जानम!!!

तुम्हें पास बुलाना भी असंभव हैं।

तुमसे दुर रहना भी असंभव हैं।


इस कविता को पढ़ने के बाद उसने कुछ यूं जवाब दिया -


Wahh bhaiya kabhi kabhi lgta h aap mere mn ko baate apne kabita me chupa dete h 😅

Kafi achha likhe h 👏👏


 मैंने भी उसे एक डिप्लोमैंट  जवाब दिया कि -


कविता हर किसी के जीवन से जुड़ी होती है लोग अपने हिसाब से उसे संयोजित करते हैं।


उसके बाद उसने मुझे बताया की उसने भी कुछ लिखा✍🏻 है एवं अपनी बहूत सी रचनाएं शेयर की जो कि उसने हाल फिलहाल में ही लिखी थी। उन सब को पढ़ने के बाद मुझे हैरी बावेजा के द्वारा निर्देशित फिल्म दिलजले का एक डायलॉग याद आने लगा - 


दिलजले, दिलजले अरे लाले!!! यहां तो सभी दिलजले हैं।

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

प्रियतम तुम्हें पिलाने को लेकर आया मधुबला।


मधुबला


प्रियतम तुम्हें पिलाने को,
लेकर आया मधुबला

अंगूरों की डाली से,
आज निचोड़ लाया हाला

संग आज मै लाया हूं,
पीने और पिलाने वाला

संग मे लाया मधु की गगरी,
संग मे लाया मधुशाला

खोल नयन उठ जा प्यारे,
पूर्ण हुई तेरी माला

देख खड़ा है सम्मुख तेरे,
पीने और पिलाने वाला

मेरी मधु की गगरी से,
भर ले तू अपना प्याला

शब्द हैं मेरे मधु के कतरे,
कविता है मेरी हाला

कलम है मेरी मधु की गगरी,
पुस्तक मेरी मधुशाला
पुस्तक मेरी मधुशाला ।।

साभार - सोशल मीडिया

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

असंभव है।

तुमसे मिलना भी असंभव है, 

ना मिलना भी असंभव है।

तुम्हें यादों में बुलाकर, 

गुफ्तगू करना भी असंभव है।


हमें याद हैं वो पल,

जिसमे तुम कहती थी।

सनम आपसे दुर हो के,

एक पल जीना भी असंभव हैं।


तुमसे मिलना भी असंभव...


हम इस मोड़ पर आकर खड़े हुए हैं जानम!!!

तुम्हें पास बुलाना भी असंभव हैं।

तुमसे दुर रहना भी असंभव हैं।


असंभव ही असंभव हैं,

अब प्रत्येक कार्य असंभव हैं।

जो तुम नहीं हो जीवन में,

जीना/मरना भी असंभव हैं।


तुमसे मिलना भी असंभव...


एक कार्य तो तुम कर ही सकती हो,

असंभव से इस कार्य को अब संभव कर ही सकती हो।

मुझे तो यक़ीन हैं अब भी,

इस नामुमकिन को मुमकिन कर ही सकती हो।


लेकिन हमें लगता है यह सब है व्यर्थ की बातें,

व्यर्थ की चिंता व्यर्थ की जज्बाते।

होना है जो वही तो होगा,

फिर हम क्यों करें बेतकल्लुफ की बातें।


लेकिन असंभव को हम त्याग नहीं सकते,

 इसे संभव करने को करते रहते हैं।

दिन-रात हम फरियादें,

किसी दिन मुकम्मल होगी हमारी ये सारी जज्बातें।


उस दिन तुमसे मिलना भी संभव होगा,

पास आना भी संभव होगा।

तुम्हें यादों में बुलाकर, 

गुफ्तगू करना भी संभव होगा।


विश्वजीत कुमार✍️




सोमवार, 31 मार्च 2025

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम 😢


दृश्य - 01

     क्लास में बच्चे एक दूसरे पर कागज की जहाज बनाकर उड़ा रहे हैं और उनके द्वारा भयंकर शोरगुल किया जा रहा है। तभी एक मास्टर साहब धोती कुर्ता पहने और कंधों पर बैग लटकाए हुए कक्षा में प्रवेश करते हैं। उनके आते ही सब बच्चे शांत होकर बैठ जाते हैं और वह मास्टर साहब बच्चों को संबोधित करते हुए कहते हैं -

मास्टर साहब - सभी छात्र एवं छात्राओं की ओर देखकर हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं - GOoD MorninG Students.

सभी बच्चे एकसाथ - Gooood Morniiing Siiir 🙏🏻. कहते हुए अपने हाथ ऊपर कर लेते हैं।

मास्टर साहब - ठीक हैं!!!, ठीक हैं!!! हाथ निचे करो।

     फिर मास्टर साहब अपने कंधे पर का थैला सामने पड़े टेबल पर रखते हैं और उसमें से एक किताब निकालते हैं जो कि एकदम से पीली पड़ गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद इसी किताब से मास्टर साहब भी स्वं अपनी पढ़ाई पूरी किये होंगे। पुनः एक बार अपना चेहरा बच्चों की ओर करके बोलते हैं -

   तो बच्चों आज हम पढ़ेंगे - "गुरुत्वाकर्षण का नियम" "Law of Gravitation"


 कौन सा गाड़ी सर??? कुछ बच्चे एक साथ पूछते हैं।


 गाड़ी नहीं छात्रों ग्रेविटी यानी की गुरुत्वाकर्षण।


 क्लास का एक शरारती बच्चा उठकर उनसे पूछता है - कौन सा आकर्षण सर??


 मास्टर साहब को गुस्सा तो आता है लेकिन उसे मुस्कान में बदलकर फिर से बताते हैं - आकर्षण नहीं बचवाँ गुरुत्वाकर्षण, गुरुत्वाकर्षण।


 लेकिन बच्चे कहां मानने वाले थे फिर से वही क्वेश्चन, सर!!! हम भी तो वही पूछ रहे हैं कौन सा आकर्षण?? गुरु का या.....


बच्चे अपनी बात पूरी करते हैं उससे पहले मास्टर साहब गुस्से में एकदम से चिल्लाते हुए बोलते हैं चुप एकदम चुप, कोई कुछ नहीं बोलेगा।


 पूरे क्लास में एकदम Pin drop silence वाली स्थिति हो जाती है।


मास्टर साहब अपनी विजय पर मन ही मन मुस्कुराते😊 हुए किताब खोलते हैं एवं ब्लैक बोर्ड पर बड़े -बड़े अक्षरों मे लिखते हैं -

गुरुत्वाकर्षण

बच्चे भी धीरे -धीरे अक्षरों को मिलाकर पढ़ना शुरू करते हैं। गु... र. र. रु... त... वा... क.. ष... ण... गुरु तवा कषण


मास्टर साहब बच्चो को फिर से समझाते हैं - बच्चों मेरे साथ बोलो - गुरु

सभी बच्चे एक साथ जोर से बोलते हैं - गुरु

शिक्षक - तवा

बच्चे - तवा

शिक्षक - कर सन

बच्चे - कर सन

तो बच्चों एक साथ बोलो - गुरुत्वाकर्षण

सभी बच्चे एक साथ जोर से बोलते है - गुरुत्वाकर्षण

बच्चों की आवाज इतनी तेज थी की स्कूल से बाहर खेतो मे कार्य करने वाले लोग भी एक बार चौक कर स्कूल की तरफ देखने लगते हैं।

 टीचर बच्चों की तरफ मुखातिब होकर उनसे प्रश्न पूछते हैं - अच्छा बताओ गुरुत्वाकर्षण किसे कहते हैं ?

 सभी बच्चे एक दूसरे का चेहरा देखने लगते हैं तभी एक होनहार सा दिखने वाला बच्चा खड़ा होता है और पूरे आत्मविश्वास से बोलता है - सर!!! सर, गुरु के द्वारा प्रदान किए गए आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं।

 टीचर फिर उन्हें समझाते हुए कहना प्रारंभ करते हैं - नहीं!!! नहीं!!! गुरुत्वाकर्षण का मतलब गुरु का आकर्षण नहीं बल्कि पृथ्वी का आकर्षण होता है।

 एक छात्र - वह कैसे सर?

 टीचर - पृथ्वी जो है ना!!! वह अपनी ओर सभी वस्तुओं को आकर्षित करती है इसी बल को विज्ञान की भाषा में गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। जैसे तुम लोग भी किसी न किसी की ओर आकर्षित होते हो ना!!!

सभी बच्चे एक साथ - हम्म्म्म!!!

 टीचर बोलना प्रारंभ रखते हैं - जिस बल के द्वारा आप किसी की ओर आकर्षित होते चले जाते हैं और तुम्हारे ऊपर जो बल कार्य करता हैं उसे भी हम गुरुत्वाकर्षण का बल कह सकते हैं। हमारी पृथ्वी भी एक चुंबक की तरह कार्य करती है एवं अपनी ओर सभी चीजों को आकर्षित करती रहती है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। सजीव एवं निर्जीव का मतलब यह है चाहे वह मनुष्य हो या वस्तु।

 एक छात्र बड़ी देर से उनकी बातें सुन रहा था अचानक से बोल उठता है - सर वह पार्टी भी हो सकती है क्या ?

 क्योंकि सर पढ़ाने में व्यस्त रहते हैं इसलिए वह हां बोल देते हैं। उन्हें शायद यह लगा होगा की गुरुत्वाकर्षण तो हर जगह एक तरह से ही कार्य करता होगा।

 अब उस छात्र का मुख्य प्रश्न उनके सामने आता है - वह कुछ सोचते हुए उनसे पूछता है सर, हमें लग रहा है कि वह गुरुत्वाकर्षण भी ना!!! हमारे नीतीसे कुमार है। जो कि कुछ-कुछ समय उपरांत पार्टियों को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं।

 शिक्षक जो कि अभी तक आराम से पढ़ा रहे थे छात्र की राजनीतिक समझ को देखकर अपना सर खुजाने लगते हैं। और जब उन्हें कोई जवाब नही सुझता तब अपनी किताब में लिखी गई बातों को दुहराने लगते हैं -


     इस नियम के मुताबिक, ब्रह्मांड में मौजूद कोई भी पदार्थ का कण किसी दूसरे कण को आकर्षित करता है, यह आकर्षण बल, कणों के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के विपरीत होता है।

 टीचर अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही छात्र शोर करने लगते हैं और शोर करते-करते ही कहते है - चलो -चलो पहलवान जी के बगीचे मे चलते हैं। बाकि बच्चे भी एक साथ बोलने लगते हैं। हाँ हाँ चलो-चलो पहलवान जी के बगीचे मे चलते हैं। 

दृश्य - 02


      सभी बच्चे डरे सहमे से शांत बैठे हैं। क्लास मे एक लम्बा चौड़ा सा आदमी हाथ मे एक लम्बी सी लाठी लिये हुये खड़ा हैं और बच्चों की ओर घूरते हुये पूछता हैं -

कौन था वो छोरा जो हमारे बगीचे मे चलने को बोल रहा था?

मास्टर साहब थोड़ा घबड़ाते हुये उन्हें समझाते हैं, नहीं-नहीं मैं तो इन्हे एक नियम समझा रहा था।

पहलवान जी मास्टर जी को घूरते हुए - समझाने के लिये मेरा ही बगीचा मिला।

मास्टर जी फिर से हिम्मत कर के पहलवान जी को समझाते हैं - देखिये हम इन्हे गुरुत्वाकर्षण का नियम समझा रहे थे की कैसे कोई चीज़ ऊपर से गिरने पर वापस धरती पर आ जाती हैं। जैसे आपके पेड़ से जब आम गिरता हैं तो धरती पर ही क्यों आता हैं? कभी वो आकाश मे क्यों नहीं जाता?

अब पहलवान जी भी थोड़ा सोचने लगते हैं।

मास्टर साहब पहलवान जी को सोचता देखकर अपनी अप्रत्याशीत जीत की परिकल्पना करने लगते हैं और आगे बोलते हैं। जानते हैं ऐसा क्यों होता हैं??

मास्टर जी को उम्मीद थी की उत्तर उनके मन मुताबिक मिलेगा लेकिन हुआ कुछ और....

पहलवान जी कहते हैं - बिल्कुल बुझते हैं। फिर बच्चों की ओर मुख़ातिफ होकर, आम खाने वाले निचे हैं या ऊपर??

सभी बच्चे एक साथ - निचे।

पहलवान जी - तब आम कहां जायेगा 

सभी बच्चे एक साथ - निचे।

मास्टर जी हार मानने वाले नहीं थे क्योंकि वो अभी-अभी BPSC का tag लेकर स्कूल ज्वाइन किये थे।

आगे बोलते हैं - अच्छा बोलिये, आप कोई मिट्टी का ढेला जब आसमान में ऊपर की ओर फ़ेंकते है तो वह निचे क्यों आता हैं, ऊपर क्यों नहीं चला जाता। यह जो मिट्टी का ढेला हैं जिस वजह से निचे आता हैं उसी वजह को गुरुत्वाकर्षण कहते....

मास्टर जी अपनी बात पूरी करते उससे पूर्व ही पहलवान जी बीच में टोंकते हुये कहते हैं - 

मिट्टी का जन्मा हैं तु मिट्टी में मिल जायेगा...

सारे बच्चे भी एक साथ जोर से गाने लगते हैं - 

मिट्टी का जन्मा हैं तु मिट्टी में मिल जायेगा...

आगे-आगे पहलवान जी एवं पीछे-पीछे बच्चे -

मिट्टी का जन्मा हैं तु मिट्टी में मिल जायेगा...

मिट्टी में मिल जायेगा... तु मिट्टी में मिल जायेगा...

इन पंक्तियों को सुनकर अचानक से बच्चों के अंदर देशभक्ति की भावना जागृत हो जाती है और जोर से चिल्लाते हुए कहते हैं - भारत माता की - जय।💪🏻

तभी शोरगुल सुनकर कक्षा में प्रिंसिपल साहब पहुँचते हैं वो आते तो हैं एकदम से गुस्से में क्योंकि कक्षा का शोरगुल उनके केबिन तक पहुँच चूका था लेकिन सामने पहलवान जी को देखकर एकदम से शांत होकर नमस्ते 🙏🏻 करते हुये पहलवान जी से पूछते हैं - प..ह..ल..वा..न  जी आप यहां, हमारी कक्षा में। चलिए ऑफिस में चलकर बात करते हैं।

पहलवान जी फिर वही गुस्से में पूछते हैं - ई माटर कउन हैं ??? ई बच्चा सब को हमरे बगीचा में चलने को बोल रहा था।

प्रिंसिपल साहब थोड़ा हिचकिचाते हुये कहते हैं - ई BPSC से पास मास्टर हैं आज ही विद्यालय ज्वाइन किये हैं और ई इनका पहिला क्लास हैं।

पहलवान जी - इनको बता दीजिये, हमरा बगईचा कोई महतो जी का दालान ना हैं जो जेंकरा मन करें उ घुसी आवें। 

प्रिंसिपल साहब मास्टर की ओर देखते हैं और कहते हैं - क्या मास्टर जी, बच्चों को क्या पढ़ा रहे थे ?

मास्टर साहब - अरे सर!!! हम बच्चों को गुरुत्वाकर्षण का नियम समझा रहे थे।

मास्टर जी कुछ बोलते हैं उससे पहले ही पहलवान जी अपनी लाठी पटकते हुए बोलते हैं - समझाने के लिये हमरे बगीचा मिला, केतना साल बाद तो पेड़ पर टिकोरा धड़ा है और अभीये से ई सब का नजर पड़ गया।

प्रिंसिपल साहब पहलवान जी को समझाते हुए कहते हैं - आरे!!! नहीं-नहीं पहलवान जी, बिना हमारे अनुमति के कोई कैसे विद्यालय से जा सकता हैं और ना ही आपके बगीचे को नुकसान पहुंचा सकता हैं।

लेकिन पहलवान जी समझने वाले नहीं थे वह फिर से उसी गुस्से में बोलते हैं - आप अनुमति की बात करते हैं ई लईका सब तs क्लास से निकल चूका था। हम इन सब को क्लास में बैठाये हैं।

अब प्रिंसिपल साहब फिर से मास्टर जी की ओर देखते हैं लेकिन मास्टर साहब हल्की आंखे बंद करके स्कूल की छत की ओर देख रहे होते हैं जैसे वहां लिखा हुआ कोई जवाब उन्हें मिल जाए। लेकिन जब उन्हें वहां भी निराशा हाथ लगती है तब बुदबूदाते हुए कहते हैं - "क्या भाई न्यूटन, तूने क्या नियम बना दिया"

अचानक से पहलवान जी के कान खड़े हो जाते हैं और जोर से बोलते हैं - "विदेशी हाथ"

मास्टर जी और प्रिंसिपल साहब एक साथ पहलवान जी को देखते हैं...

पहलवान जी लगातार बोले जा रहे थे - आजकल हर बड़े घोटालो एवं कांडो में हमें दिखता है - विदेशी हाथ।

चाहे वो कोई वस्तु हो या सेवा हर धंधे में जुड़ गया है - विदेशी हाथ।

हम क्या पहने और कौन सी भाषा बोले यह सब अब तय करने लगे हैं - विदेशी हाथ।

पहलवान जी को इतनी शुद्ध हिंदी बोलते देख प्रिंसिपल साहब और मास्टर साहब भी अचंभित होकर उन्हें देख रहे थे सभी बच्चे भी इस ना समझ आने वाली लेक्चर को सुन रहे थे। तभी स्कूल के बाहर एक बस के रुकने की आवाज सुनाई दी। प्रिंसिपल साहब ने हाथ के इशारे से मास्टर साहब को भागने का इशारा किया, मास्टर साहब भी मौक़े की नजाक़त को समझते हुये ऐसे भागे की सीधे बस की सीट पर बैठने के बाद ही रुके।

 उधर पहलवान जी लगातार बोले जा रहे थे - इधर विदेशी हाथ, उधर विदेशी हाथ और अब मेरे बगीचे में भी विदेशी हाथ!!! यह कहते हुये वह मास्टर साहब का गर्दन पकड़ने के लिए उनके तरफ हाथ बढ़ाते हैं लेकिन यह क्या??? उनका हाथ तो खाली रह जाता है क्योंकि मास्टर साहब तो कब के नौ दो ग्यारह हो चुके रहते हैं।

प्रिंसिपल साहब पहलवान जी को सांत्वना देते हुए कहते हैं - ...और इसी तरह पोल खुलते ही गायब हो जाते हैं - विदेशी हाथ।


धीमी-धीमी लाइटे कम होती जाती हैं और एक विचारणीय प्रश्न के साथ नाटक की समाप्ति होती है।

शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।🚉

       पटना शहर से देहात यानी अपने गांव की यात्रा आज हमें सम्पन्न करनी थी। 02 दिन पूर्व ही हम रांची की यात्रा से पटना वापस लौटे थे लेकिन यात्राएं तो जीवन का हिस्सा हैं उसे हमें जीना ही होता हैं और ऐसे भी यात्रा जब भारतीय रेल के जनरल डब्बे की हो तो रोमांस और भी बढ़ जाता है। पटना से हमारी ट्रैन का समय दोपहर 12:10 था और हम 11:30 तक पटना जंक्शन आ चुके थे। टिकट काउंटर पर बहुत लंबी कतारे थी मैंने भारतीय रेल का मोबाइल एप्प UTS का प्रयोग करते हुए समान्य टिकट कटाया। पटना से घर जाने के लिये अक्सर हम रात्रि के समय का चयन करते थे लेकिन इस बार दिन का किये हैं और पहली बार पटना थावे स्पेशल ट्रैन का भी। ऐसे इस ट्रेन का रनिंग स्टेटस बहुत बढ़िया था जैसे मैंने कल तक का पता किये थे और इसी वजह से इसका चयन भी किये। ट्रैन के सफर में अक्सर मेरे सहयात्री मेरे मित्र बन ही जाते हैं फिर भी रास्ते के लिये मैंने श्री लाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी ले लिए थे ताकि उसके सहारे एवं ब्लॉग्स लेखन✍🏻 के द्वारा यात्रा के समय को आनंद पूर्वक बिताया जा सके। ट्रैन मैं बैठने के साथ ही मैंने राग दरबारी का अध्ययन शुरू कर दिये।

शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।

     चुंकि यह उपन्यास हम 2019 में पढ़ चुके हैं फिर से दोबारा पढ़ने का मौका मिला। उपन्यास में एक प्रसंग है कि "भारतीय रेल ने उसे धोखा दिया था रोज़ की तरह वो घर से 03 घंटे विलम्ब से निकला लेकिन ट्रैन आज मात्र 02 घंटे विलम्ब से ही आकर के चली गई थी" लेकिन हमारी इस रेल ने ज्यादा धोखा नहीं दिया 12:10 के बदले 12:50 में खुली। हमारे कुछ सहयात्री यह सोच कर या देख कर खुश हो रहे थे की यह ट्रेन 01:00 से पहले खुली क्योंकि अक्सर यह ट्रैन 01:00 के बाद ही पटना जंक्शन से खुलती हैं आज इसके 40 मिनट के ही लेट को ही एन्जॉय कर रहे थे। जब ट्रैन फूलवारी शरीफ़ पहुंची उस समय 01:20 हो रहा था, हम लगभग एक घंटे से नॉवेल को पढ़ रहे थे। अचानक से मुझे नींद आने लगी और नॉवेल को अपनी सीट के बगल में रखकर सो😴 गये। नींद भी बहुत गहरी आ गई और हम सपनो के समंदर में गोते लगाने लगे नींद में उस समय व्याधान आया जब मोबाइल की घंटी बजी। उस समय लगभग 04:00 बज रहा था फ़ोन देखा तो पता चला की शुभम का कॉल हैं। उसने पहला प्रश्न यही किया की - भैया कहां जा रहे हैं ? क्योंकि मैंने सोशल मीडिया में "शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।🚉" का एक पोस्ट डाल दिया था जिसपर शुभम ने like 💚 भी किया था। मैंने भी पोस्ट के हिसाब से ही जवाब दिया कि - देहात की ओर.... पहले तो वह नहीं समझा फिर मैंने बताया अपने गाँव जा रहे हैं। उसके उपरान्त जिस कार्य से उन्होंने कॉल किया था उसपर वार्तालाप हुई। फ़ोन रखने के उपरांत मैंने महसूस किया की ट्रेन के सभी लोग कुछ अजीब से परेशान थे और ट्रैन रुकी हुई थी। क्योंकि 04:00 बज चुका था तो मेरे अनुमान से एवं ट्रेन के समयानुसार ट्रैन रतनसराय पहुंचने वाली थी लेकिन मुझे अचंभा उस समय लगा जब मालूम चला की अभी तो ट्रैन पाटलिपुत्र ही हैं जब हम सोये थे उस समय 01:30 हो रहा था और अभी 04:20 हो रहा हैं अभी तक ट्रैन पाटलिपुत्र ही हैं। अब मुझे ट्रैन एवं राग दरबारी का वो व्यग्य कि "भारतीय रेल ने उसे धोखा दिया था" स्मरण होने लगा। वहां से ट्रैन 05:00 बजे खुली और हम अपने गंत्वय पर 05 घंटे विलम्ब से पहुंचे। उससे पूर्व अपने सभी सहयात्रीओ से बाते करते एवं उनके अनुभवो को आत्मसात करते रहे। जिंदगी में दूसरे के अनुभव हमें बहुत काम आते हैं इसीलिए मेरी कोशिश रहती हैं की दूसरे के अनुभवो से हमें बहुत कुछ सीखना चाहिए।

        उस ट्रैन में भी मेरे कई सहयात्री थे उसमे से एक का नाम दीपक था जो की पटना से चले थे और उन्हें मांझा उतरना था। चुंकि ट्रेन तो मांझा रूकती नहीं है तो वह पूरी ट्रेन यात्रा में हमसे चेन पुलिंग करने की प्लानिंग करते आ रहे थे। पहले उनमे डर था कि शायद चेन पुलिंग करेंगे तो पुलिस की मार या फाइन देना पड़ सकता है लेकिन जैसे ट्रैन खैरा स्टेशन से पार की लोगो के द्वारा चेन पुलिंग की घटनाएं बढ़ती गई और दीपक का मोटिवेशन भी बढ़ता जा रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि आदमी दूसरे को देखकर के ही सीखता है। मेरी एक बार ईच्छा हुआ कि उन्हें नीति-शास्त्र का पाठ पढ़ाये क्योंकि बातचीत से मालूम चला कि वह BPSC की तैयारी कर रहे हैं और पटना में ही रह कर के क्लास करते हैं। लेकिन मैंने पुन: छोड़ दिया क्योंकि दोपहर से हर कोई ट्रैन में बैठे-बैठे परेशान हो गया था और इस समय कोई भी उपदेश सुनने वाला नहीं था। फिर भी हम कुछ बोलते उससे पूर्व उनका कॉल आ गया और वो कोई जमीन की खरीद बिक्री की बातो में व्यस्त हो गए। उनके फोन वार्तालाप से यह भी मालूम चला की वह कोई जमीन की रजिस्ट्री के लिये स्पेशल पटना से आ रहे हैं। 

     हमारे सीट के ठीक सामने दूसरे सहयात्री के रूप में एक आंटी जी बैठी हुई थी जो की 02 आदमी की बैठने की जगह को घेरे हुये थी उनके ठीक सामने एक दुबले-पतले अंकल जी बैठे हुये थे जो की अपने सामने आंटी जी के बैठे होने की वजह से थोड़े असहज से महसूस कर रहे थे। अचानक से मुझे आंटी जी की क्रकश आवाज़ सुनाई पड़ी। दरअसल मामला यह था कि अंकल जी ने बस आंटी जी को इतना बोल दिया कि - "आप अपना पैर मेरे सीट पर मत रखिये", दरअसल बात इतना रहता तो कोई और बात रहती लेकिन उसके बाद अंकल जी ने जो शब्द बोला वह आंटी जी को सीधे जाकर लगा था और वह यह था की आपका पैर साफ नहीं हैं, उसमें धूल लगा हैं इससे मेरे कपड़े गंदे हो गये। मुझे उस समय महसूस हुआ की कोई भी औरत अपनी शारीरिक सुंदरता को लेकर कभी भी बुराई नहीं सुन सकती चाहे वो उसके पैर ही क्यों नहीं हो। आंटी जी ने जो बोलना शुरू किया तब पूरी बोगी ख़ामोश हो गई। आंटी जी ने बोलते - बोलते कहां - हमरा गोड़ (पैर) में माटी लागल बाs आ तोरा में का क्रीम लागल बाs कुछ यात्रियों ने उन्हें समझाया की आरे!!! आंटी जी, क्यों गुस्सा हो रहे हैं। एक तो ट्रेन इतनी लेट है कृपया शांत रहिए। तो आंटी जी ने उसी धुन में कहां की हम काहे शांत रहे, ई हमरा काहे बोला!!! फिर उसी अंकल की ओर मुख़ातिफ़ होकर पुन: बोलना शुरू की "हमरा गोड़ में गुह लागल बा आ तहरा में का मोती"। अंकल जी कुछ बोलने को उत्सुक हुये लेकिन फिर पता नहीं क्या सोचकर शांत हो गए। आंटी जी भी धीरे-धीरे बोलते बोलते थक गई थी उन्होंने बोतल से पानी निकाला और पानी पी करके फिर अपने आसपास बैठे लोगों से बात करने लगी। कुछ देर बाद फिर उसी आंटी जी का मुझे जोर से ठठाकर हंसने की आवाज सुनाई दी। मुझे महसूस हुआ की इंसान अपने गम एवं दुःखो को कितना जल्दी भूल जाता हैं लेकिन जब मैंने अंकल जी को देखा तो अभी भी वह उसी मुद्रा में सर को झुकाए हुए बैठे थे। इस घटनाक्रम से मुझे एक चीज समझ में आया कि हमें या तो आंटी जी की तरह गम को भुलाते हुये ठहाका😂 लगाना है या फिर अंकल जी की तरह उसे पास में रखकर सर को झुकाये😔 बैठना हैं। यह निर्णय हम पर निर्भर करता हैं।


   हमारे सहयात्रीयों में एक बड़ी सी मुस्लिम फैमिली भी थी जो ये सोच कर पटना से ट्रैन में बैठे थे की शाम को घर पर रोजा तोड़गे लेकिन यह कार्य उन्हें ट्रैन में ही करना पड़ा क्योंकि ट्रैन 04-05 घंटे विलम्ब से चल रही थी और भारतीय रेल को यात्रियों को हुई इस असुविधा के लिये खेद था।

       दीपक जी उस समय तक अपनी फ़ोन कॉल से बाते कर के फ्री हो गए थे और हम से बोले की - दलाल का भी कार्य अच्छा हैं आराम से एक महीने में 40 से 50 हजार की आमदनी हो जाती हैं और कई बार उससे भी ज्यादा। मैने उन से कहां की यह भी तो हो सकता है कि किसी महीने में आमदनी ना भी हो।

उन्होंने कहां - हां, पॉसिबिलिटी तो यह भी हैं।

फिर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि - देखिए यह कार्य जो है ना वह बरसात की तरह हैं कभी इतना पानी आ जायेगा की आप उस में डूब भी सकते हैं और कभी इतना कम की आप प्यास से मर सकते हैं। जबकी सरकारी नौकरी या कोई पेशा जिसमे एक निश्चित रकम हमें हर महीने प्राप्त होती हैं वह एक कुएँ की तरह हैं। आपको जब कभी भी जितनी पानी की आवश्यकता हो उतना आराम से निकाल सकते हैं। मेरी यह भारी-भरकम बातें उसे समझ में आई कि नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन उसने Hmmm में सर हिला दिया।

उस समय रात का 09:30 हो रहा था रतन सराय स्टेशन पर मैंने भैया को घर से बाइक लेकर आने को बोल चुके थे। मैंने उन्हें 30 मिनट पहले ही कॉल कर दिया था क्योंकि घर से भी आने में उन्हें लगभग 40 मिनट का समय लगता। लेकिन ट्रेन में हो रही चेन पुलिंग की घटनाओं की वजह से हम स्टेशन और 01 घंटे लेट पहुंचे। उन्हें स्टेशन पर ही लम्बा इंतजार करना पड़ा। रतन सराय स्टेशन जैसे ही हम ट्रेन से उतरे वैसे ही दीपक ने मुझसे अपना मोबाइल नम्बर शेयर करने का अनुरोध किया। मैंने उसको दो बार अपना मोबाईल नम्बर बोला - 79035*****.  लेकिन उसने दोनो बार गलत टाइप किया। फिर मैंने उसका मोबाइल लेकर अपना नंबर डायल किये और कॉल भी कर दिये ताकि उसका भी नंबर मेरे पास आ जाए। जाते - जाते मैंने Good Night एवं आगे की यात्रा के लिये Happy जर्नी भी बोला लेकिन मुझे क्या पता था की उसकी ये आगे की यात्रा आसान नहीं होने वाली हैं।

    "दरअसल हुआ ये की मांझा में उसने चेन पुलिंग करने की कोशिश की और उसकी यह कोशिश बेअसर रही उसे CRPF वालों ने पकड़ लिया और थावे तक ले कर के गये जबकी वह नियमत: या तो मेरे साथ रतन सराय में उतर जाता या फिर गोपालगंज क्योंकि यहां से मांझा नजदीक पड़ता है। लेकिन उसका या तो नसीब ही खराब था या फिर कोई सिख की आगे से कभी गलत कार्य नहीं करना हैं। इस पुरे प्रक्रिया में उसके समय के साथ-साथ धन की भी हानि हुई।" 

उक्त सारी बाते मुझे ऐसे पता चली की रात के 11:00 बजे जब हम घर पहुंच गए तो उसे व्हाट्सएप पर मैसेज किये -


I hope you reached home safely.


उसने सुबह 06:00 बजे रिप्लाई दिया।


Yes.


मेरा अगला प्रश्न था -


👍🏻

मांझा में चेन पुलिंग 😊


अबकी बार उसने रिप्लाई नहीं दिया बल्कि कॉल करके अपनी पूरी घटना का विस्तार पूर्वक वर्णन किया जिसे संक्षेप में मैंने आपको ऊपर 👆🏻 बताया हैं।

बुधवार, 26 मार्च 2025

रांची से पटना की ट्रेन यात्रा और धुसका का स्वाद।

    

         अखिल भारतीय दर्शन परिषद के द्वारा आयोजित 69वां त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन की समाप्ति हो चुकी थी। धीरे-धीरे सभी लोग प्रस्थान कर रहे थे, कुछ कर चुके थे एवं हम करने वाले थे। मेरी ट्रेन रांची स्टेशन से शाम में 07:30 की थी रांची गेस्ट हाउस से स्टेशन की दूरी लगभग 07 KM थी यानी कि आधे घंटे का समय काफी था फिर भी हम 06:00 बजे रैपीडो बुक कर लिये ताकि ससमय स्टेशन पर पहुंचा जा सके। रैपीडो वाला भी ससमय आ तो गया लेकिन वह गेस्ट हाउस के दूसरी साइड था। चुंकि बुकिंग करते समय मैंने रूम से ही बुक किया था जिस वजह से गेस्ट हाउस की दूसरी साइड का लोकेशन उसे मिला था। उसे लोकेशन समझाते-समझाते आधे घंटे और लग गए और वह मेरे पास 06:30 में आया और आने के साथ ही बोला कि रास्ता पूरा जाम है हमें स्टेशन पहुंचने में 01 घंटे से भी ज्यादा का समय लग सकता है। मैंने कहां की भाई ट्रैन हैं, देखिये कुछ हो सकता हैं ?

उसने पुरे कॉन्फिडेंस के साथ कहां की - सर, आपकी ट्रैन तो हम नहीं छूटने देंगे।

        ...और फिर उसने रांची के सारे शार्टकट रास्ते से होते हुए मुझे स्टेशन की ओर ले चला। रास्ते में वह बातचीत भी करते जा रहा था मैं भी समय-समय पर रिप्लाई दे रहा था, मालुम चला की उसका नाम विशाल है और वह BBA का कोर्स किया हुआ है, MBA करने के बारे में विचार कर रहा है। उसने मुझे रांची आने एवं यहां के आयोजन के बारे में पूछा। जब उसे पता चला कि हम Ph.D कर रहे हैं तो उसकी उत्सुकता और जागृत हो गई और Ph.D से संबंधित मुझसे कई सारे प्रश्न पूछे। मैंने उसके सारे प्रश्नों का बहुत ही विस्तार से जवाब दिया। हम रांची स्टेशन पहुंच चुके थे लेकिन उसके प्रश्न अभी खत्म नहीं हुए थे। मैंने उसे अपना नंबर दिया और कहां कि जब भी आप को कुछ पूछना हो या जानना हो आप कभी भी मुझे कॉल/मैसेज कर सकते हैं। रैपिडो एप्प में जो किराया दिखा रहा था उससे ज्यादा ही मैंने उसे दिया और Good Night के साथ मैंने उससे विदा लिया उसने जवाब में मुझे Good Night के साथ Happy Journey भी बोला। मैंने भी Thank You के साथ उसे पटना आने का न्योता देते हुये रेलवे स्टेशन पर आ गया। स्टेशन पहुंचने के 05 मिनट के अंदर ही अनाउंस होने लगा की हमारी ट्रेन प्लेटफार्म नंबर एक (01) पर आ रही हैं।

        ट्रैन में मेरी शीट S-3 बोगी में 48 साइड अपर था, लेकिन ट्रेन में हम साइड लोअर की सीट पर ही बैठे हुए थे। ट्रेन का भी एक अनोखा नियम है यदि आप लोअर शीट पर रहते हैं तो आप की शीट पर हर किसी का दावा रहता है लेकिन जैसे ही आप ऊपर की सीट की ओर अग्रसर होते जाते हैं तो आप की वह सीट केवल आपकी ही रह जाती है। यहां मुझे जिंदगी का एक फलसफा भी समझ में आया, जब तक आप निचले स्तर पर रहते हैं तब तक आपको हर तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा यानी आप अपनी इच्छानुसार हर कार्य नहीं कर सकते हैं आपकी संसाधनों में सबका बंटवारा होगा लेकिन जैसे ही आप ऊपर की ओर अग्रसर होंगे वह बस आपका एवं आपका हो कर रह जायेगा। मेरी सीट तो 48 साइड अपर थी लेकिन मैं 47 साइड लोअर पर ही बैठा हुआ था, ट्रेन में बैठने के 05 मिनट के उपरांत ही हमारे सहयात्री भी आ गए, जिनका नाम रौशन था उनकी यात्रा भी हमारी तरह रांची से पटना तक होने वाली थी। मैं अक्सर अपनी यात्राओं में दो कार्य करता हूं एक तो ब्लॉग राइटिंग✍🏻 और दूसरा अपने सहयात्रियों से बातचीत, ताकी ब्लॉग के लिए हमें कुछ कंटेंट मिलते रहे। 

       रांची आये हुये आज तीन दिन हो गए थे और सोशल मीडिया पर अभी तक मैंने मात्र एक ही पोस्ट किया था यही सोच कर ट्रेन में बैठे-बैठे पहाड़ी मंदिर का पोस्ट तैयार करने लगे। तभी जिनकी सीट पर मैंने आधिपत्य कर रखा था जो की रेलवे के नियम के अनुसार सही था हमारे सहयात्री ने कहां - मैं जरा बाथरूम से आता हूं, आप मेरा बैग देखते रहिएगा। आज के समय में भी हम अपने साथ रहने/चलने वाले लोगों पर इतनी जल्दी विश्वास कर लेते हैं भले ही उनसे मुलाकात पहली बार हुई हो। मैंने उन्हें आश्वसत किया कि आप आराम से जाइए कोई दिक्कत नहीं होगा। जब तक वह बाथरूम से आते तब तक मेरा पोस्ट कंप्लीट हो चुका था और सोशल मीडिया पर परिलक्षित भी हो रहा था। मैंने इस पोस्ट में पहाड़ी मंदिर का थोड़ा बहुत इतिहास भी लिख✍🏻 रखा था की इस मंदिर की धार्मिक मान्यता क्या है? और भारत की आजादी से इसका क्या संयोग है? इत्यादि। मुझे यह जानकार भी आश्चर्य हुआ कि प्रत्येक 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को यहां पर तिरंगा झंडा भी फहराया जाता है। इस पोस्ट को तैयार करने में मुझे 20 से 25 मिनट का समय लगा था लेकिन लोगों ने इसे पढ़ने में 01 से 02 मिनट का भी समय नहीं लगाया और और कमेंट में "जय माता दी" लिख कर आने लगा जबकि वह शिवजी का मंदिर था। 

     हमारे सहयात्री तब तक वापस अपनी सीट पर आ चुके थे अक्सर ऐसा होता है कि अपने सहयात्रीओं के साथ बातचीत की शुरुआत मेरे द्वारा की जाती है लेकिन इस बार उल्टा हुआ। मेरे सहयात्री जिनका नाम रौशन था उन्होंने मुझसे पूछा - आप कहां तक जाओगे ?

 मैंने कहां - पटना।

उन्होंने भी कहां - मुझे भी पटना तक ही जाना है।

मैंने उनसे पुन: पूछा - आप 12th की तैयारी करते हो या किसी सामान्य प्रतियोगिता की। क्योंकि अक्सर पटना में रहने वाले छात्र किसी ना किसी प्रतियोगी परीक्षा की ही तैयारी कर रहे होते हैं।

उन्होंने कहां - 12th तो कब का हो गया है, अभी परीक्षा की ही तैयारी कर रहे हैं।

मैंने पूछा - 10th कब हुआ था ?

उसने कहां - 2018 में। 

मैंने अनुमान लगाया की उसकी उम्र तक़रीबन 21-22 साल की रही होगी।

मैंने कहां - आप BPSC की तैयारी कर रहे हो ? 

उसने थोड़ा धीरे से कहां - नहीं।

     BPSC, JPSC या किसी भी राज्य की कोई संस्था जो सिविल सेवकों को नियुक्त करती है अक्सर उस संस्था के नाम से ही उसके द्वारा नियुक्त की जाने वाली परीक्षाओं को लोग जानते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व BPSC ने बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति का कार्य किया था। अब आलम यह है कि उसके द्वारा नियुक्त शिक्षक अपने आप को सबसे सर्वश्रेष्ठ एवं "बीपीएससी से पास शिक्षक" का टैगलाइन लेकर घूम रहे हैं।

खैर....

        हम ट्रेन में वापस लौटते हैं, उस समय तक 08 बज चुका था और मैंने अपनी खाने की प्लेट तैयार कर ली थी आज के रात्रि भोजन में मेरे पास धुसका (एक विशेष प्रकार का फ़ूड जो कि रांची में बनाया जाता है) था। धुसका के बारे में मेरे एक छात्र (हर्ष) जो कि रांची से ही आते हैं एवं वर्तमान में निफ्ट पटना में अपनी पढ़ाई कर रहे है, उन्होंने बताया था और कहां था की - आप एक बार आप इसको टेस्ट कीजिएगा, बहुत अच्छा रहता है। और हुआ ऐसा की सुबह के नाश्ते से लेकर रात के डिनर तक धुसका ही रहा। इसका स्वाद बहुत अच्छा था, ऐसे भी मुझे नहीं-नई जगह घुमने और नई-नई डिश खाने का शौक है। 

Dhuska

       मैंने रौशन से भी पूछ लिया कि आपको धुसका कैसा लगता है ? उन्होंने एकदम से मना करते हुये कहां की मुझे अच्छा नहीं लगता है। मुझे लग गया कि अब इसके बारे में चर्चा करना सही नहीं है और मैंने परिचर्चा के विषय को बदल दिया।

        चूंकि, वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था तो मेरा पहला प्रश्न वही से था। आप अभी तक कोई एग्जाम पास किये हो या नहीं ?

उसने कहां - कई सारा, लेकिन अंतिम चयन अभी तक नहीं हुआ हैं कभी दौर तो कभी रिटेन में रह जाता हैं।

मैंने कहां - कोई बात नहीं मेहनत करते रहिए सफलता एक दिन जरूर मिलेगी ।👍🏻

उसने कहां - Hmmm. 

फिर मैने अपने बारे में बताते कहां कि मुझे कभी भी पुलिस या ऐसा कोई जॉब पसंद नहीं रहा लेकिन इनके लिए मन में बहुत ही ज्यादा आदर एवं सत्कार का भाव रहता है।

तब उसने थोड़ी बेरुखी के साथ कहां की - कोई जॉब तो मिलना चाहिए।

मैंने कहां - जॉब क्यों नहीं मिलेगी ? आप उसके लिए तैयारी तो कीजिए, फिर मैंने उसे अपने नवोदय विद्यालय, मधेपुरा के ज्वाइनिंग से लेकर के BPSC के PT एवं मैंस की सफलता की कहानी बताई और यह भी बताया कि कैसे हम उस समय यूट्यूब पर छात्रों को पढ़ाते भी थे। हमारा यह लेक्चर लगभग एक घंटे तक चला। पता नहीं यह लेक्चर उसे कितना समझ में आया लेकिन उसे भूख जरूर लग चुकी थी। उस समय 09:00 बज चूका था और मैं अब आराम करने अपनी सीट पर जा चूका था।

         मेरा सीट नम्बर 48 था और इसका मूलांक 03 होता हैं, "Numerology (अंक ज्योतिष): - अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक 03 वाले लोगों का सम्बन्ध वृहस्पति ग्रह से होता है एवं नंबर 03 का प्रभाव होने की वजह से ऐसे जातकों में ज्ञान की अधिकता होती है। इन्हें धार्मिक कार्यों के साथ-साथ किताबें पढ़ने का भी बहुत शौक होता है।" मैंने सोचा कि जब नंबर का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता हैं तो वस्तुये उससे अछूती थोड़ी ही हैं वहां पर भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता ही होगा। और शायद यही वजह भी रहा की सीट क्रमांक 48 मूलांक 03 पर जाते ही उसके प्रभाव मेरे उपर परिलक्षित होने लगे और अपने आप ही अगूंलिया मोबाइल के स्क्रीन पर चलने लगी और शब्द अनायास प्रकट होने लगे। देर रात तक हम ब्लॉग्स लिखने और उपन्यास अग्निशिखा जिसे साथ लेकर के गए हुए थे उसे पढ़ने का कार्य रात भर करते रहे। अंक ज्योतिष के अनुसार मेरा मूलांक 01 होता है जिसका मुझपर प्रभाव है और इसे मै महसूस भी करता हूँ खाशकर तब से जब से ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन शुरू किया है। 

     सुबह का 04:30 हो रहा था लगभग सभी लोग सोए हुए थे, तभी एक अंकल जी अपने कंधे पर ढेर सारा गमछा लेकर आए  और उनकी आवाज से पूरा ट्रैन गुंजयमान हो गया - सूती गमछा, सूती गमछा। 

एक व्यक्ति उनसे अर्द्धनिंद्रा में ही पूछा - स्टेशन ???

उस अंकल ने कुछ यूं जवाब दिया - गया "मकदुमपुर" का सूती गमछा। 

उन्हें यूँ बोलना था - गया का सूती गमछा लेकिन बीच में मकदुमपुर आ गया।

अंकल जी जब तक अपना गमछा लेकर आगे जाते उससे पूर्व वह व्यक्ति फिर से खर्राटा लेना शुरू कर दिए थे। ट्रेन में ही किसी सज्जन के मोबाइल से मधुर आवाज में गाना बज रहा था - 


लाडला कन्हैया मेरा, जग से निराला इसलिए.........


हम अपने सफ़र के अंतिम पड़ाव पर थे, रात भर मैंने ब्लॉग्स राइटिंग और कुमार विश्वास की सुप्रसिद्ध रचना की कुछ पंक्तियों को गुनगुनाते हुए बिताया था - 


"तुम्हारे और मेरे रात में बस फर्क है इतना ,

तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुजरी है।" 


हमारी यह रात रो कर तो नहीं लेकिन खर्राटों के बीच जरूर गुजरी थी क्योंकि दो सज्जन व्यक्ति जो की ट्रैन में अपर सीट पर थे दोनों के बीच घमासान खर्राटा वार चल रहा था और मैं निर्दोष सैनिक की भांति अपनी निंद्रा को नहीं चाहते हुए भी कुर्बान कर रहा था।

   .....धीरे -धीरे ट्रैन में भीड़ बढ़ती जा रही थी और स्लीपर क्लास अब जनरल डब्बे में परिवर्तित होते जा रहा था। पटना जंक्शन से 01 KM पहले ट्रेन रुक गई, मैंने अपना बैग वगैरा पैक किया और अपर की सीट से निचे आ गया। रौशन अभी तक सों रहा था, संभवत: रात की खर्राटों से वह भी परेशान रहा हो। फिर भी मैंने उसे जगाया और हल्की मुस्कान के साथ उसे सुप्रभात🌻बोला। लेकिन उसने धीरे से good morning बोला और अपने मोबाइल में गुम हो गया। हम पटना जंक्शन पहुँच चुके थे, आते समय मैंने एक बार फिर से अपने सहयात्रियों को यात्रा में साथ देने के लिये धन्यवाद दिया विशेष कर के उन्हें जो की रात भर खर्राटों से मुझे जगा कर रखे ताकि हम अपना Blogs एवं उपन्यास दोनों पुरा कर पायें। 07:30 बजे तक रूम पर आ चुके थे फिर फटाफट नाश्ता तैयार किये क्योंकि 09:00 बजे से पहले कॉलेज भी जाना था।   

शनिवार, 15 मार्च 2025

हमारे गाँव के ब्रह्म बाबा। 🙏🏻

    यदि आप भी गाँव से ताल्लुक रखते होंगे तो गोरिया बाबा, जीन बाबा, ब्रह्म बाबा, इत्यादि नामों से अवगत होंगे। इन सभी अदृश्य बाबाओ की कृपा गांव के ऊपर इतनी रहती है कि इनके आशीर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न नहीं होता। तस्वीर में जो आप पीपल का पेड़ और मिट्टी का टिलानुमा आकृति को देख रहे हैं वह कोई साधारण आकृति नहीं है बल्कि हमारे गाँव के ब्रह्म बाबा हैं जिनके छांव में मैंने अपने बचपन के सबसे ख़ास पलो को बिताया हैं। 

     हमारा विद्यालय इन्हीं के छांव में चलता था या यूँ कह सकते हैं कि यह पीपल का पेड़ ही हमारा विद्यालय था। बचपन में सुने थे की भगवान गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। मार्च-अप्रैल के महीने में जब इस पेड़ से एक-एक करके पत्ते गिरते तो ऐसा महसूस होता कि ऊपर से ज्ञान की वर्षा हो रही है जिसे हम समेट कर अपने झोले में रखते जाते। इस पेड़ के नीचे एक लकड़ी की कुर्सी रखी रहती जिस पर बैठ हमारी मैडम हमें कुछ बताती रहती हम सभी बोरे पर बैठे हुये, (जिसे हम सभी अपने साथ लेकर जाते) बुद्ध की भांति मौन होकर सुनते रहते।

      उक्त बाते 2003-04 की हैं, हमारे विद्यालय में कक्षा 01 से 05 तक थी लेकिन शिक्षक केवल 02 एवं वर्ग भी 02 ही थे। बाकी कक्षाएं इसी पीपल पेड़ के नीचे ही संचालित होती थी। जब कभी बरसात हो या ठंड ज्यादा हो तो हम सभी ग्रुप क्लास करते थे यानी वर्ग 01 एवं 02 एक साथ और 03, 04 & 05 एक साथ।

      गाँव की चीजें बहुत जल्दी नहीं बदलती यहां विकास की गती थोड़ी धीमी होती हैं। 20 वर्ष उपरान्त आज भी वही ब्रह्म बाबा हैं यूँ ही सभी को आशीर्वाद देते हुये बदलाव बस यही हुआ है कि अब कक्षाओ का संचालन इनकी छांव में नहीं होता बल्कि दो मंजिले बने भवनो में होता हैं। जिसमे आधुनिक सभी चीजें उपलब्ध हैं शिक्षकों की भी कमी नहीं हैं, कमी है तो बस उस ईच्छा शक्ति की जिसे कभी केवल 02 मैदम मिलकर ही पूरा करती थी। हमारे समय का वो 02 कमरो वाला भवन भी विरान पड़ा हुआ हैं मालुम चला की अब उस में रसोईघर एवं भंडार गृह हैं। 

आज पुन: इस जगह पर आकर अपनी पुरानी सारी यादो के समंदर में गोते लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ एवं वापस लौटते समय धनपाल भाटिया जी के शब्द कानो में गूंजते रहे।

"गांव के बच्चों की सफलता के पीछे 

मां की चप्पल का अनुशासन, बाप के जूते की मेहनत, 

और गुरु के गंगाराम (डंडे) का मार्गदर्शन होता है।"

मैं अपने आप को बहुत गौरवशाली मानता हूं कि इन तीनों का मार्गदर्शन मुझे हमेशा से प्राप्त होता रहा।