रविवार, 15 जून 2025

उसका अधूरा प्यार, एक अजनबी की कलम से।

 किस्से आर्ट कॉलेज के...


    यह जो कहानी है, या यूँ कह सकते हैं कि जिस लड़की की कहानी है। उस पर तो पूरी उपन्यास लिखी✍🏻 जा सकती है। फिलहाल एक छोटा सा सारांश यहां प्रस्तुत कर रहे हैं बाकी उपन्यास पर भी कार्य बहुत जल्द प्रारंभ करेंगे। इस कहानी को मेरे सामने लाने में उस अजनबी का बहुत योगदान है जो कि खुद इस कहानी का मुख्य पात्र तो नहीं लेकिन मुख्य पात्र के आस-पास हमेशा रहा है। एक बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास है केशव प्रसाद मिश्र के द्वारा लिखित "कोहबर की शर्त" मैं अपनी इस कहानी के पात्रो के नाम उसी उपन्यास से ले रहा हूं जैसे - गुंजा, चंदन, और ओंकार। बाकी किरदार और हैं जो की कुछ-कुछ समय के लिए उपन्यास में आते रहेंगे उनके नाम मैंने यूं ही रख लिये हैं।

    ओंकार का कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना का पहला दिन, जैसे हर किसी के मन में नई जगह को जानने को लेकर उत्सुकता रहती है वैसे ही एक विशेष उत्सुकता ओंकार के मन में थी। वैसे वह आया तो था गांव से लेकिन शहर से उसका लगाव था क्योंकि उसका घर जो था वो गांव में होते हुए भी किसी शहर से कम नहीं था। ओंकार थोड़ा सा शर्मिला लड़का था, लेकिन जिससे उसकी बातें हो जाती या जो उसके पहचान का होता उससे खूब बाते करता। उस दिन क्लास में सारे नए चेहरे थे इसलिए वह चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ था। आपस में कुछ छात्र बात कर रहे थे कुछ चुप-चाप बैठे थे। अचानक से एक हवा का झोका आया ओंकार की नजरें दरवाजे पर टिक गई। एक खूबसूरत चेहरा हल्की मुस्कान के साथ क्लास में प्रवेश किया। पूरी क्लास की नजर उसी पर टिक गई, टिके भी क्यों ना!!! वह थी ही इतनी खुबसूरत। उसने एक बार पुरे क्लास को देखा और कुछ कहां, उसने क्या बोला ये ओंकार सुन नही पाया क्योंकि तभी से वो एकटक उसे ही देखे जा रहा था। उसने दोबारा बोला - मेरा नाम ना गुंजा हैं। अबकी बार पुरा क्लास गुंजयमान हो गया। वह थोड़ी सी शरमाई और पुरे क्लास को छोड़कर वह पता नही क्यों ओंकार के पास ही आकर के बैठी। ओंकार के तो दिल की धड़कन तेज होने लगी वह बहुत मुशिकल से अपने आप को सम्हाले बैठा रहा। गुंजा ने ओंकार की ओर देखा और बोली - Hi, कैसे हो ? संभवत: ओंकार पहला लड़का था जिस से गुंजा ने बात करी हो। उसने भी जवाब दिया मैं ठीक हूँ, आप कैसी हो ? गुंजा कुछ बोलती उस से पूर्व क्लास में कुछ सिनियर आ चुके थे उन्होंने एक-एक कर के सभी से नाम पता पूछे और कॉलेज में कैसे आना है ? इसके बारे में बताएं।

कॉलेज में आने का नियम यह था की,

(१) रोज महाविद्यालय में जूता पहन कर एवं प्रोफ़ेसनल कपड़ो में आना हैं।

(२) कोई भी सीनियर कही दिखे उनको गुड मोर्निंग भैया या दीदी बोलना है।

(३) महाविद्यालय में आने के उपरांत क्लास में जाना है और वापस सीधे पटना जंक्शन जाना है स्केचिंग के लिये।

(४) परिसर में इधर उधर कही नही घुमना हैं।

     इन सभी के अलावे और भी कई नियम थे जो की लगातार उनके द्वारा बताये जा रहे थे लेकिन ओंकार का ध्यान तो गुंजा पर ही टिका रहा। उन सभी सीनियरो में एक राजु भैया भी थे उन्होंने गुंजा को अपने पास बुलाया, ओंकार को अच्छा नही लगा की गुंजा क्यों जा रही है लेकिन सीनियर का आदेश था मानना पड़ा। राजु भैया ने गुंजा को अपने सामने बैठाया बोर्ड पर एक बेहतरीन तस्वीर बनाई। हम सभी तो आश्चय से देखते रह गए। गुंजा का तो ख़ुशी का ठिकाना नही रहा क्योंकि उसी की तस्वीर बोर्ड पर बनी थी। ओंकार सोचने लगा की काश मुझे भी तस्वीर बनाने आती तो ठीक इसी तरह गुंजा भी खुश हुई रहती। जब सभी सीनियर जाने लगे तब ओंकार ने देखा गुंजा भी राजु भैया के साथ बाहर तक गई और कुछ बाते करने लगी। ओंकार को तो गुस्सा बहुत आ रहा था लेकिन उसने इन्तजार किया और एकदम से गुंजा के सामने चला तो गया लेकिन कुछ बोल नही पाया। राजु भैया ने कहां - ठीक है गुंजा कल सुबह में मिलते हैं, वाटर कलर हम साथ में करेंगे।

       ओंकार बेली रोड के जगदेव पथ के पास रहता था, फिर भी अगले दिन वह 07:00 बजे तक महाविद्यालय परिसर में आ गया यह सोचकर कि वाटर कलर हम भी साथ करेंगे लेकिन वह क्या देख रहा हैं की गुंजा तो राजू भैया के साथ वाटर कलर करके परिसर से बाहर निकल रही है वह तो उसका नसीब अच्छा था कि गेट पर ही मुलाकात हो गई। उसने सबसे पहले गुड मॉर्निंग गुंजा कहां और उसके कार्य की तारीफ करते हुये कहां - बहुत अच्छा वाटर कलर की हो... वह अपनी बात पूरी करता इससे पहले गुंजा बोल उठी - इन्होंने सिखाया है।

ओंकार भूल गया था कि पास में राजू भैया भी खड़े हैं उसने तुरंत गुड मॉर्निंग भैया कहा। लेकिन राजू भैया ने एकदम से उसे डांट दिया। वह इस बात को लेकर गुस्सा हो रहे थे कि उसने उन्हें सबसे पहले गुड मॉर्निंग क्यों नहीं कहा। राजू और गुंजा तो चले गए लेकिन ओंकार के कानों में बस यही ध्वनि सुनाई दे रही थी "इन्होंने सिखाया है" अब इस "इन्होंने" का मतलब ओंकार नहीं समझ पा रहा था। उस दिन क्लास में ओंकार ने कई बार गुंजा से बात करने की कोशिश की लेकिन वह कर नहीं पाया क्योंकि अधिकतर समय वह राजू के आसपास ही रहती। वह गुंजा के एकतरफा प्यार में एकदम से खो चुका था। एक दिन उसने हिम्मत करके गुंजा का पीछा किया और यह पता लगाया कि वह मंदिरी के किस मोहल्ले एवं मकान में रहती है। संयोग कहिए या इत्तेफाक उसके घर के ठीक सामने वाले मकान में रूम खाली था उसने जब मकान मालिक से बात की तो यह भी मालूम चला कि इस फ्लैट में सबसे ऊपरी मंजिल पर आर्ट कॉलेज के ही दो छात्र रहते हैं उसने सोचा कि जब आए हैं तो मिलकर देख लेते हैं कि कौन रहता है। जब वह छत पर गया तो देखा कि उसका ही एक बैचमेंट और एक राजु भैया का बैचमेंट उस रूम में रहते हैं। उसका बैचमेंट जिसका नाम विजय था उसने कहा कि ओंकार रूम देखने आए हो ? 

ओंकार ने कहां - हाँ 

विजय ने कहा - यदि तुम चाहो तो इस रूम में भी रह सकते हो, यहां हम दो लोग रहते हैं कोई दिक्कत नहीं होगा।

ओंकार ने सोचा, बढ़िया है यही रह लेते हैं क्योंकि किराया भी कम लगेगा और जब राजू भैया के बैचमेट रहते हैं तो उनसे भी मुलाकात होती रहेगी। वह चाहता था कि राजू से मिलकर के यह जानने का प्रयास करें की गूंजा उसे क्यों पसंद करती है ?

अगले ही दिन ओंकार ने अपना सारा सामान यहां पर लाकर के सेट कर दिया। अब उसके मन में पड़ोसन फ़िल्म का यह गाना चलने लगा -

 मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है...

अगले दिन उस चांद के टुकड़े का दीदार करने के लिए सुबह में वह जल्दी उठ गया तो देखा कि विजय अपने बेड पर नहीं है। जब छत पर गया तो क्या देख रहा है कि विजय, गुंजा के दीदार के लिये खड़ा हैं। गुंजा का जो रूम था वह एक फ्लोर नीचे था और ओंकार ने जो रूम लिया था वह ठीक एक फ्लोर ऊपर था। उन दोनों रूम की खासियत यह थी कि पूरे खुले छत पर एक रूम था और बगल में बाथरूम। दोनो के कमरों की सरंचना एक जैसी ही थी बस अंतर इतना था की गुंजा का बिल्डिंग 3rd फ्लोर तक था और ओंकार एवं विजय का 04th. 

ओंकार ने जब विजय को वहां देखा तो पहले वह थोड़ा सा असहज हुआ और फिर गुडमॉर्निंग के साथ बाते शुरू की।

ओंकार - आरे!!! विजय, आज बड़ी जल्दी उठ गए हो?

विजय - हम रोज़ 05:00 बजे यहां आ जाते हैं, गुंजा 05:30 में उठती हैं, फिर फ्रेश होने के उपरांत 06:00 बजे ब्रश करके राजु भैया के साथ वाटर कलर करने जाती हैं 07:30 तक आ कर के खाना बनाती हैं और फिर स्नान कर के 09:30 तक कॉलेज के लिये निकल जाती हैं, फिर वापस...

ओंकार ने उसे बीच में रोकते हुये कहां की भाई - बस!!! बस!!! तुमने तो गुंजा की पुरी कुंडली ही खंगाल ली हैं।

विजय - आरे क्या बात करते हो, गुंजा को हम पसंद करते हैं ना एवं आज उसे प्रपोज़ भी करना हैं।

ओंकार को तो मानो काटो तो खून नहीं क्योंकि जिसके लिये वो यहां रूम लेकर शिफ्ट हुआ था उसमें उसका रूम पार्टनर ही बाधा बन रहा था फिर भी उसने कहां - गुंजा तुमको क्यों पसंद करेंगी वो तो अभी राजु भैया के साथ खुश हैं।

तब विजय ने कहां - राजु भैया पटना छोड़कर जा रहे हैं उनका किसी और आर्ट कॉलेज में नामांकन हो गया हैं।

ओंकार - ये बाते गुंजा को पता हैं ?

विजय - शायद पता हो, लेकिन मुझे उससे क्या!!! हम तो आज उसे प्रपोज़ करेंगे।

अबकी बार ओंकार को गुस्सा आ गया, उसने एकदम से चीखते हुये कहां - अपनी शक्ल आईने में देखों हो? तुमको गुंजा क्यों पसंद करेंगी वह तो बस मेरी हैं मेरी।

पहली बार ओंकार ने अपने दिल की बात किसी के सामने कही थी, अब विजय भी चौका की ओंकार भी गुंजा को पसंद करता हैं लेकिन उसने जो उसकी शक्ल वाली बात कही थी वह विजय को चुभ गई उसने ओंकार को धक्का देते हुए कहा - तु मेरे शक्ल को देखेगा। विजय ऐसे SC समुदाय से आता था तो ऐसे उसके लिये लड़ाई झगड़ा करना आम बात थी लेकिन ओंकार इन सभी से अनभिज्ञ था लेकिन उसने भी पलटवार किया और एक थप्पड़ विजय को जड़ दिया फिर विजय और ओंकार में जबरदस्त हाथापाई होने लगी। ये पुरी घटनाक्रम गुंजा देख रही थी जब ओंकार ने उसे देखा तो जल्दी से छत के किनारे से अंदर आ गया। जब वो रूम में पहुंचा तो उसे महसूस हुआ कि उसके सर से खून निकल रहा है, वह जल्दी से सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा जब नीचे पहुंचा तो देखा की गूंजा आ रही है, उसने अपने एक हाथ से सर को पकड़े हुये था खून से उसका हाथ भींग गया था। सीढ़ियों से जल्दी नीचे आने के कारण उसे चक्कर भी आने लगा वह वहीं बैठ गया। गुंजा ने उसको देखा और बोली आरे ये क्या हुआ??? ओंकार कुछ नहीं बोला बस अपने सर को पकड़े बैठा रहा। गुंजा तुरंत वहां से दौड़ कर गई और पास ही खड़े रिक्शा वाले को बुलाकर लाई ओंकार के सर से लगातार खून बहे जा रहा था। गुंजा ने अपने दुप्पटे से उसके सर को बांधा अब खून बहना बंद हो गया था। फिर उसने एवं रिक्शा वाले ने सहारा देकर रिक्शा पर उसे बैठाये और फिर पास के मेडिसिन शॉप में ले गए। विजय छत पर से ही पूरी घटनाक्रम को देख रहा था लेकिन वह नीचे नहीं आया। 

 ट्रीटमेंट कराने के बाद फिर दोनों उसी रिक्शे से वापस आए, रास्ते में गुंजा ने पूछा कि यह सब कैसे हो गया? ओंकार ने धीरे से कहा - छत पर गिर गए थे। गुंजा ने कहा - झूठ क्यों बोल रहे हो, विजय ने तुम्हारा सर फोड़ा है, वह है ही ऐसा। 02-03 दिनों से वह मुझे भी परेशान कर रहा है ऐसे तुम यहां क्यों आए हो ? सुना है कि रूम शिफ्ट कर लिए हो ? तुमको यहां नहीं आना चाहिए था खास करके विजय के साथ नहीं रहना चाहिए था।

गुंजा की एक खासियत यह थी कि वह बोलती कुछ ज्यादा थी और सामने वाले को सुने बिना ही अपनी राय रख देती थी। खैर!!! ओंकार उस दिन गुंजा को बस सुनता रहा और उसका रूम आ गया। रिक्शा से उतरने के बाद ओंकार खून से सने उस दुपट्टे को अपने साथ लेकर जाना चाहता था लेकिन गुंजा ने उसे अपने साथ लेकर चली गई। डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिए कहा था इसीलिए ओंकार उस दिन महाविद्यालय नहीं गया लेकिन उस दिन महाविद्यालय में जो कुछ हुआ वह उसके लिये बहुत अच्छा था। दरअसल हुआ यह की विजय ने गुंजा को प्रपोज़ किया और उसने उसे एक थपड़ जड़ दिया और गुस्से में बोली आज के बाद अपना चेहरा मुझे मत दिखाना। और दूसरी घटना यह हुई की राजू भैया ने गुंजा को बोल दिया कि वह कॉलेज से जा रहे हैं अब वह उसे भूल जायें। शाम में विजय और गुंजा दोनों ही उदास बैठे थे वजह जो भी रही हो सर में भयंकर दर्द के बावजूद भी उस दिन सबसे ज्यादा खुश ओंकार था।

 इस घटना के बाद विजय भले ही ओंकार का रूममेट था लेकिन उससे कई दिनों तक बात नहीं किया और ऐसे भी वह गुंजा के द्वारा ठुकराए जाने के बाद थोड़ा सा उदास था। इधर ओंकार और गूंजा कुछ ज्यादा नजदीक आने लगे। राजू की कमी जो गूंजा को खल रही थी उसे ओंकार ने पूरा कर दिया था लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं चली क्योंकि गूंजा की जिंदगी में उसका प्रवेश हुआ जो की उसके लिये एकदम परफेक्ट था, ऐसा उस समय गुंजा को लगा क्योंकि एक तो वह सीनियर उपर से हर एक कार्य में परफेक्ट। चाहे मूर्ति बनाना हो, चित्र बनाना हो, स्केचिंग करना हो, गीत गाना हो, शायद ही ऐसा कोई कार्य होगा जो वो नहीं करते थे, नाम था उनका - चंदन। ऐसे गुंजा भी कम नहीं थी उसको भी हर एक कार्य में महारत हासिल थी। खाना बनाने से लेकर के कपड़ा सिलने तक, डांस करने से लेकर चित्र बनाने तक गूंजा किसी भी मामले में कम नहीं थी। यानी यूं कह सकते हैं की गुंजा और चंदन की जोड़ी बहुत जम रही थी। ओंकार और गुंजा में बस एक ही समानता थी कि वह दोनों एक ही कास्ट के थे संभवत: यही वजह थी की ओंकार हमेशा से गूंजा के प्रति झुकाव रखा उसे उम्मीद था कि एक दिन गूंजा उसे जरूर मिलेगी। ऐसे उसने अपने स्किल को सुधारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्केचिंग और पेंटिंग पर उसने इतना ध्यान दिया कि 01 साल के अंदर ही उसे पूरे बिहार में पेंटिंग का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिला। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी गुंजा और चंदन की जोड़ी बहुत आगे बढ़ गई थी।

   गुंजा भी ओंकार को दोस्त से ज्यादा मानती थी और उसके और चंदन के बीच क्या-क्या चल रहा है हर एक बातें शेयर करती। जैसे चंदन ने आज यह कहा!!! चंदन ने आज वह कहा!!! ओंकार बस सुनता रहता कुछ कहता नहीं क्योंकि वह चाहता था की गूंजा हमेशा खुश रहे। पटना में उस समय एक कंपनी खुली  थी जो कि कलाकारों से पेंटिंग बनवाती थी और उसे बाहर बेचती थी। ओंकार को कंप्यूटर पर कार्य करना बहुत अच्छे से आता था तो उसने अपना गुंजा एवं चंदन का ऑनलाइन फॉर्म फिल किया। एग्जाम वगैरह देने के बाद इत्तेफाक से तीनों का उस कंपनी में सिलेक्शन हो गया। अब क्या था दिनभर कॉलेज करने के बाद शाम में कंपनी में जाते और देर रात तक वहां पेंटिंग बनाते रहते थे। इन तीनों के अलावा आर्ट कॉलेज के और भी कई छात्र थे जो कि वहां पर जॉब कर रहे थे। एक दिन मौसम खराब था और हल्की बारिश भी हो रही थी, उस दिन कंपनी के ऑनर भी नहीं थे केवल एक स्टॉफ था। ओंकार, गूंजा और चन्दन बैठकर अपनी-अपनी पेंटिंग बना रहे थे। चंदन एवं गुंजा को गाना गाने का भी बहुत शौक था। उस दिन मोबाइल पर "नदिया के पार" का गाना "कवने दिशा में लेके चलो रे बटोहिया" चल रहा था और चंदन और गुंजा एक साथ गुनगुना भी रहे थे। ओंकार तो बस गुंजा की आवाज में खोया हुआ था। गाने में एक अंतरा आता है - "कितनी दूर... अभी कितनी दूर है... ये चंदन तोरा गांव रे..." इस अंतरा पर गुंजा रुक गई और चंदन की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली - राउर गाँव जी... ओंकार से अब वहां रहना बर्दाश नहीं हुआ और वह उठकर बाहर छत पर चला गया। उसके जाते ही बारिश की बूंदे तेज हो गई यानी अब वह अपने आंसुओं को आसानी से छुपा सकता था। लगभग आधे घंटे तक वह यूं ही बारिश में रोता रहा और उसके एक वाक्य का जवाब ढूंढते रहा वह वाक्य था  - राउर गाँव जी... यानी आपका गांव कहां है? अमूमन शादी के बाद लड़कियां अपने पति का नाम नहीं लेती है लेकिन गूंजा ने अभी चंदन का नाम नहीं लिया था तो क्या दोनों ने शादी कर ली है या फिर करने वाले हैं? इसके बारे में उसने कभी भी जिक्र नहीं किया? ऐसे ही सवाल उसके मन में आ रहे थे तभी बिजली चमकी और उसने उसकी रोशनी देखा कि सामने गुंजा खड़ी है। बारिश में भीगने की वजह से उसके कपड़े उसके बदन से चिपक गए थे ओंकार गुंजा को इस रूप में पहली बार देख रहा था उसे होशो-हवास नहीं रहा बस इच्छा यह हो रही थी कि एक बार गुंजा को गले से लगा ले और उसके दिल में जो भी भावनाये है उसे व्यक्त कर दे और उसने ऐसा करने की कोशिश भी की, वहां से उठकर के गुंजा के पास पहुंचा ही था कि तभी उसने जोर से बोला - आरे!!! ई का कर रहा है ?

ओंकार अपनी लड़खड़ाती ज़बान में बोला - गुंजा, मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं।

गुंजा - हँसते हुये, ओंकार तबीयत ठीक है ना!!! लगता है बारिश में भीगने की वजह से तुम्हें बुखार हो गया कुछ भी बके जा रहे हो।

ओंकार - नहीं... नहीं... गुंजा मैं बिल्कुल ठीक हूं। यह कहते हुए ओंकार जैसे आगे बढ़ा उसे एक गमले में ठोकर लगी और धराम से छत पर गिर पड़ा। आवाज सुनकर अंदर पेंटिंग बना रहे चंदन भैया भी दौड़ कर बाहर आये लेकिन फिर रुक गए क्योंकि बारिश उस समय तक और तेज हो गई थी। फिर वह अंदर जाकर छाता ढूंढने लगे तब तक गुंजा ने ओंकार को उठाया और सहारा देकर धीरे-धीरे कमरे के अंदर ले कर आई। गुंजा ने देखा कि ओंकार के पैर के अंगूठे से खून निकल रहा है उसका नाखून उखड़ गया था और गिरने की वजह से होंठ भी कट गए थे। ऑफिस स्टाफ की मदद से उसने पहले ज़ख्म को पोछा और फिर मरहम पट्टी की चंदन भैया दूर से खड़े होकर यह सब चीज देख रहे थे।

     इस घटना के दो-तीन दिन तक ओंकार ना तो ऑफिस गया और ना हीं कॉलेज। उस समय तक उसके विजय से रिश्ते सही हो गए थे। गुंजा से तिरस्कृत होने के बाद विजय ने कॉलेज में किसी लड़की को देखना तो दुर किसी से बात तक नहीं की थी वह बस कॉलेज जाता और अपने स्केचिंग पर विशेष ध्यान देता। उसकी स्केचिंग इतनी अच्छी हो गई थी कि यदि वह सपना में भी लाइन खींचना तो वह परफेक्ट ही बनता। जबकि ओंकार की स्केचिंग इतनी बढ़िया नहीं थी जीतना की विजय की। इन तीन दिनों में ओंकार ने तीन (03) 20"x 30" आकार की मधुबनी पेंटिंग पूरी कर दी वह दिन भर बैठकर पेंटिंग ही बनाता रहता। इन तीनों पेंटिंगों में बस वह राम सीता के विवाह के दृश्य ही बनाए थे। 03 दिन तक ना वह किसी से मिला और ना ही बातचीत किया। उसके साथ जो सीनियर भैया रहते थे एक दिन शाम में बोले - चलो आज तुम्हें काठपुल की मलाई वाली चाय☕ पिलाते हैं, कई दिन से देख रहे हैं तुम लगातार पेंटिंग बनाये जा रहे हो। काठपुल, मंदिरी की जो यह मलाई वाली चाय थी यह हम सभी कलाकारों के लिए एक वरदान से कम नहीं थी, चाहे किसी गम को मिटाना हो या खुशी को सेलिब्रेट करना हो बस यह चाय ही सहारा था और यदि किसी सीनियर के द्वारा चाय ऑफर की जाए तो यह जूनियर के लिए बहुत बड़ी बात होती थी। ओंकार ने अपने सीनियर की बात मानी और विजय के साथ चाय पीने चल दिया। अभी उसने चाय की पहली ही चुस्की ली थी कि सामने उसे गुंजा दिखाई दे दी। हमेशा से खुश मिजाज रहने वाली गुंजा उस दिन बहुत उदास लग रही थी। उसने चाय से भरी ग्लास को जमीन पर रखा और उठ करके सीधे गुंजा के पास चला गया। जाते ही उसका पहला प्रश्न था - गुंजा क्या हुआ ? कैसी हो ? गुंजा ने कुछ नहीं कहा बस उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ओंकार ने गौर से देखा उसके चेहरे पर हाथ की उंगलियों के निशान थे यानी किसी ने उसे ज़ोर से थप्पड़ मारा था। ओंकार के मुंह से अनायास ही निकल गया - चंदन भैया..

गुंजा ने कुछ नहीं कहा बस रोते हुए चली गई।

ओंकार, चंदन भैया का रूम देखा था तुरंत उनके रूम की ओर बढ़ चला। उस समय आर्ट कॉलेज में किसी सीनियर के रूम पर बिना उसकी अनुमति के जाना किसी जूनियर के लिए सबसे बड़ा अपराध माना जाता था और वह यह अपराध करने चल दिया था। दूसरी गलती उसने यह करी कि रूम को नॉक भी नहीं किया और ना हीं अनुमति ली सीधे कमरे में प्रवेश कर गया। उस समय तीन-चार सीनियर छात्र बैठकर के स्केचिंग कर रहे थे उसमें वह भैया भी थे जिनके साथ वह रहता था। जब उसने उसे वहां देखा तो सबसे पहले बोले - का रे!!! तू सीनियर का रेस्पेक्ट नहीं करता है ? फिर बाकियों की तरफ देखते हुए बोले बताओ हम इसके काम से खुश होकर इसे मलाई चाय पिलाने लाए थे और यह चाय को बीच में छोड़कर भाग गया।

मैं भागा नहीं था भैया, ओंकार ने धीरे से कहा और फिर चंदन की तरफ घूरते हुए देखकर बोला - आप गुंजा को क्यों मारे ?

चंदन भैया भी तपाक से जवाब दिए - अरे वह मेरी पत्नी है, हम कुछ भी करें तुम कौन होता है हमें ज्ञान देने वाला ?

हम उसके बैचमेट हैं...ओंकार अपनी बात पूरी करता उससे पहले एक झनातेदार थप्पड़ उसके गालो पर, पड़ चुका था। वह गिरते गिरते बचा और रोते हुए कहा - मुझे क्यों मार रहे हैं ?

थप्पड़ जो एक तीसरे सीनियर ने मारी थी उसने कहा सीनियर के रूम पर आकर के हमसे जबान लड़ा रहा है चलो कपड़े उतारो हम तुम्हारा न्यूड स्टडी करेंगे।

ओंकार रोते-रोते बोला - नहीं भैया यह गलत है हम शिकायत करेंगे।

आरे!!! हम तुम्हारा रेप थोड़े कर रहे हैं जो शिकायत करोगे न्यूड स्टडी इस अ पार्ट ऑफ़ आवर करिकुलम। न्यूड (चित्रा) मूवी नहीं देखें हो ?

ओंकार - नहीं भैया  

...तो कलाकार बनने काहे आ गए हो ? आज हम सभी तुम्हारा स्टडी करेंगे और कल तुम फ़िल्म देखकर उसका रिव्यू बताओगे।

ओंकार अपनी इच्छा के विरुद्ध उस दिन हर एक कार्य किया जो अभी तक उसने नहीं किया था, आर्ट कॉलेज की असली रैगिंग उसने उस दिन महसूस की।

अगले दिन ओंकार से मेरी महाविद्यालय में मुलाकात हुई, वह बोला कि भाई हम आर्ट कॉलेज छोड़ रहे हैं ?

मैंने बोला - भाई क्या हो गया ?

उसने कहा - जिसको चाहा वह मिली नहीं, यहां मेरी कोई इज्जत नहीं।

मैंने कहां - भाई क्या बात करते हो, तुम्हें बिहार के CM से पुरस्कार मिला है। इतनी अच्छी पेंटिंग बनाते हो। दुनिया में क्या चल रहा है उस पर ध्यान मत दो आप अपने कार्य पर फोकस करो सफलता जरूर मिलेगी। और हां देखना एक दिन बहुत बड़े पद पर रहोगे और हमारी इच्छा है कि आर्ट कॉलेज के प्रिंसिपल भी बनो।

इस बात पर उसने हंस दी और हंसते हुए कहा - प्रिंसिपल बनेंगे तो सबसे पहले रैगिंग को समाप्त करेंगे।

रैगिंग यह एक ऐसा शब्द था या कार्य जिससे सभी जूनियर दो-चार हुए थे इसलिए इस शब्द के बाद एक गहरी खामोशी छा जाती।

 वह दोनों अभी बातें ही कर रहे थे तभी गुंजा सामने से आती दिखी। ओंकार दौड़ते हुए गुंजा के पास गया और सबसे पहला सवाल यही पूछा - तुमने चंदन से शादी कर ली है ?

 गुंजा ने तपाक से कहा - रेस्पेक्ट से बात करो।

ओंकार - अरे!!! मैं रिस्पेक्ट से ही बात कर रहा हूं, तुमने शादी कब की?  आई मीन क्यों की।

गुंजा - तुम मुझे बहुत पसंद करते हो ना, एक अनुरोध है स्वीकार करोगे।

ओंकार - हां, हां क्यों नहीं।

गुंजा - यह बातें बहुत कम लोगो को पता है और कोशिश करना किसी को पता ना चले। आज घर से मेरे मम्मी-पापा आ रहे हैं उन्हें पटना घूमना है। क्या तुम उन्हें पटना घूमा सकते हो क्योंकि थोड़ा सा हम आज व्यस्त हैं। ओंकार ना चाहते हुए भी इनकार नहीं कर सका और उसने स्वीकृति दे दी। महाविद्यालय की कक्षाओं को छोड़कर वह दिन भर गुंजा के पापा-मम्मी जो की गाँव से आये थे उनको पटना घूमाते रहा। इस दरम्यान उसने उसके पापा मम्मी से अच्छी बॉन्डिंग कर ली और उसके पापा-मम्मी का नंबर भी लिया। कभी-कभी वो उनसे बाते भी कर लेता। एक दिन गुंजा का फोन आया और बोली - ओंकार तुमने मुझे फोन किया था?

ओंकार - नहीं मैंने तो फोन नहीं किया था।

गुंजा - अच्छा, तुमने नहीं किया था। तब उनका आया होगा।

ओंकार को उस दिन यह बात समझ आई कि चंदन भैया उसके नाम पर गुंजा से बात करते हैं जब वह घर पर रहती है। वह सोचने लगा की हम आखिर क्या कर रहे हैं ? धीरे-धीरे उसका मन चित्रकला एवं स्केचिंग से उबने लगा। वह कही खोया-खोया सा रहने लगा। उसने अपना रूम भी चेंज कर लिया और एकांत में रहने की सोची। प्रकाश की जगह अब उसे अंधेरा पसंद आने लगा था। अधिकतर समय उसके कमरे की लाइटे बंद ही मिलती। कॉलेज जाना एवं दोस्तों से बात-चीत भी कम हो गई थी। उसी समय महाविद्यालय में फाऊंडेशन डे की तैयारी चल रही थी। गुंजा एवं चन्दन की कहानी तब तक पुरे महाविद्यालय में फैल चुकी थी गुमनाम केवल ओंकार ही था। उसे मालूम चला कि चंदन एवं गुंजा एक कपल डांस भी प्रस्तुत करेंगे। इस बार वो फाऊंडेशन डे से पुरी तरह कटा रहा ना ही कोई वर्क डिस्प्ले किया और ना ही किसी एक्टिविटी में भाग लिया। लेकिन फाऊंडेशन डे के दिन वह गया और सबसे ज्यादा तालियां गुंजा के परफॉरमेंस पर उसने ही बजाई। यह फाऊंडेशन डे आर्ट कॉलेज के लिए बहुत ही ज्यादा यादगार रहा क्योंकि उस दिन महाविद्यालय को परमानेंट नए प्रोफेसर मिले थे। कॉलेज में एक नया उमंग छा गया था जो फोटोग्राफी लैब सदियों से बंद था वह खुल गया। कभी कला इतिहास की पढ़ाई ना होती थी उसकी भी क्लास शुरू हो गई। आप यूं कह सकते हैं कि आर्ट कॉलेज में एक नया दौर आ चुका था। ओंकार भी उस दौड़ का भरपूर फायदा उठाया और अपने जीवन में आ चुके अंधकार को फोटोग्राफी के प्रकाश से दुर किया। कल तलक ओंकार को लोग चित्रकार समझते थे आज उसे एक फोटोग्राफर के तौर पर पुरे बिहार में पहचान मिल रही थी मिले भी क्यों ना!!! राज्य स्तरीय से लेकर के राष्ट्रीय स्तर तक के पुरस्कार जो उसे मिल चुके थे। 

         गुंजा और चंदन की कहानी यूँ ही चलती रही ओंकार भी अब उनके बीच कम ही आता। एक दिन गुंजा ओंकार के पास आई और बोली की - मेरी शादी में फोटोग्राफी तुम ही करोगें।

ओंकार - शादी!!! गुंजा तुम फिर से शादी करोगी ?

गुंजा - हां, इस बार सभी को बताकर और हां जानते हो उनकी ना सरकारी नौकरी लग गई है। पापा-मम्मी को मैंने मना लिया है। कल सभी लोग उनके घर जा रहे है शादी की तिथि रखने।

ओंकार - गुंजा, एक बार सोच लो...

ओंकार अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही गुंजा बोल उठी, आरे !!! सोचना क्या है ? उनसे बात हो चुकी है हम शादी के बाद पटना में ही रहेंगे। लेकिन हमारी शादी की फोटो तुम ही खींचना। अबकी बार गुंजा ने थोड़ा अपनापन दिखाते हुए कहा था। 

ओंकार कुछ देर शांत रहा फिर बोला - हम ही क्यों ?

गुंजा ने एकदम से चहकते हुए कहा - अरे तुम नेशनल अवार्ड लिये हुये फोटोग्राफर हो तुमसे बढ़िया कौन क्लिक करेगा।

ओंकार ने शादी में आने की हामी भर दी और उदास मन से वहां से चल दिया। रास्ते में वह गुनगुनाते जा रहा था।

 तुम अपनी शादी में बुलाई हो तो मैं आऊंगा जरूर।

 तुम्हारी इच्छा है फोटोग्राफी कराने की तो मैं करूंगा जरूर।।

लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था इसे गुंजा का बदनसीबी कहे या फिर ओंकार का खुशनसीबी। गुंजा और चंदन की जोड़ी आगे नहीं बढ़ी और उनकी शादी नहीं हो पाई। वजह एक नहीं कई थे जैसे की,

1. चंदन का सरकारी नौकरी होना।

2. चंदन के द्वारा गुंजा को पटना छोड़कर गांव में रहने की नसीहत देना।

3. दोनों की जाति (Caste) का नहीं मिलना, इत्यादि।

     गुंजा एकदम से टूट गई थी, 03 साल के रिश्ते का यूं टुटना और उसे संभालना हर किसी के लिए आसान नहीं होता है चुंकि गुंजा थी तो बहुत सख्त लेकिन फिर भी वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। उसके दर्द को उसके अलावा यदि कोई और समझ रहा था तो वह था ओंकार। उसने गुंजा के खालीपन को दूर करने का हर संभव प्रयास किया और यही वह समय था जब वह अपने आप को उसके दिल में स्थापित कर पाया। किसी समय गुंजा, चंदन के लिए जो कार्य किया करती थी अब वह ओंकार गुंजा के लिए करने लगा जैसे - खाना बनाना, उसकी जरूरतो को पूरा करना, हर सप्ताह फिल्म देखने जाना। ऐसे ओंकार को चाय☕ और गुंजा को मैग्गी🍝 बहुत पसंद था। अक्सर दोपहर में या रविवार को मैगी और चाय की पार्टियां चलने लगी। गुंजा अपने साथ मैग्गी लेकर आती, ओंकार चाय बनाता फिर घंटो बातें होती। बातचीत के दौरान ही गुंजा ने कहा कि उसे न कॉलेज में गोल्ड मेडलिस्ट🥇 बनना है तुम मुझे गोल्ड दिला पाओगे ? ओंकार ने सुना तो पहले हंसा फिर बोला कि गोल्ड ऐसे थोड़े मिलता है उसके लिए कठिन मेहनत करनी पड़ती है।

गुंजा - कर तो रहे हैं हम कठिन मेहनत और ऐसे भी पूरे महाविद्यालय में आपसे बढ़िया काम किसका है, चाहे फोटोग्राफी हो, पेंटिंग हो, या फिर कला इतिहास हो आपकी बराबरी कौन कर सकता है।

गुंजा ने पहली बार ओंकार को आप कह कर संबोधित किया था। उसे तुरंत याद आ गया की कैसे गुंजा उन सभी को आप बोलने लगती है जिनको वह अपने दिल में जगह देती है। उसे यह भी महसूस हुआ की गुंजा को गोल्ड मेडलिस्ट बनना है और उसके रास्ते में हम रोड़ा बन चुके है। पहले तो उसने सोचा कि हम ही हट जाते हैं लेकिन पुन: ध्यान आया कि इसकी क्या गारंटी है कि मेरे हटने से किसी और को भी तो मेडल मिल सकता है। फिर उसने सोचा कि ऐसा क्या किया जाए की गुंजा ही गोल्ड मेडलिस्ट🥇 हो। गुंजा एवं ओंकार का कॉलेज में अंतिम वर्ष था। उसने  गुंजा का सारा कॉलेज असाइनमेंट पूरा किया, उसे कला इतिहास की कक्षाएं देने लगा, फोटोग्राफी के लिए उसे अपने साथ ले जाता। इस दरम्यान उसने अपने घर पर गुंजा को ले गया और सबसे परिचय करवाया। गुंजा के घर वाले ओंकार को जानते ही थे यानी कि दोनों परिवार उन दोनों को पहचान लिए थे। जैसा उन दोनों ने प्लान किया था ठीक वैसा ही हुआ, गुंजा गोल्ड मेडिलिस्ट हुई और ओंकार 2nd टॉपर। उसके सेकंड टॉपर होने से सभी शिक्षक विशेष करके उसके फोटोग्राफी के गुरु बहुत नाराज थे उनकी इच्छा थी की वो टॉपर रहे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

...आगे की पढ़ाई के लिए ओंकार बिहार से बाहर चला गया लेकिन गुंजा पटना में ही रही। अब उन दोनों के बीच मुलाकातें तो लगभग बंद ही हो गई और बातें भी धीरे कम होने लगी। लेकिन ओंकार हर छुट्टियों में पटना जरूर आता यहां तक की उसने अपना इंटर्नशिप भी पटना में ही किया। वहां वह गोल्ड मेडिलिस्ट🥇रहा। पटना आ कर के उसने ये सूचना सबसे पहले गुंजा को देने की सोची लेकिन जब वह उसके पास आई तो वह बहुत उदास थी।

हमेशा खुश रहने वाली आज उदास क्यों हो ??? ओंकार ने मजाकिया लहजे में पूछा। तब तक वह रोने लगी।

ओंकार - आरे!!! आरे!!! क्या हुआ ? क्यों रो रही हो, देखो मै तो आ गया हूँ  और मेरा...

ओंकार अपनी बात पुरी करता इससे पूर्व गुंजा बोल उठी - मेरी शादी फिक्स हो गई हैं।

ओंकार - क्या!!!! फिर अपने आप को संभालते हुए - किससे, और क्यों ? गुंजा क्यों ? इतना कहते - कहते ओंकार धराम से नीचे बैठ गया और फिर रोने लगा।

गुंजा धीरे से उठी और ओंकार के पास बैठते हुये बोली - पापा-मम्मी ने तय किया हैं और चंदन वाले किस्से के बाद मैं कुछ बोल नहीं सकती थी लेकिन ओंकार तुम खुश रहना और हां, मेरी शादी में फोटो तुम्हें ही खींचनी है। जानते हो, वो ना डॉक्टर है और पटना के अलावे भी कई जगह अपना घर हैं।

ओंकार बस सुने जा रहा था, उसके आंसुओं के आगे गुंजा के आंसू कम पड़ गए थे। उसने महसूस किया की आज गुंजा ने उसके अलावे चन्दन का भी नाम लिया था और "आप" शब्द उसके लिये प्रयोग किया था जो अब उसकी जिंदगी में आ रहा था और इस बार भी फोटोग्राफी का कार्य उसे ही मिला था। ओंकार ने एक अच्छे दोस्त की भांति उसकी शादी के हर एक भाग को बहुत अच्छे से क्लिक किया। विदाई के समय उसने गुंजा से कहां - तुम एक नई दुनियां में प्रवेश करने जा रही हो कृपया पुराने सभी यादों की मिटा देना दिल के साथ-साथ कंप्यूटर मेमोरी से भी। लेकिन शायद गुंजा ने इस बात को सीरियसली नहीं लिया और शादी के कुछ दिनों के उपरांत उसने अपनी कहानी अपने डाक्टर पतिदेव को यह सोच कर बता दी की यदि इन्हें भविष्य में कुछ पता चलता हैं तो शायद प्रॉब्लम हो जायेगी। लेकिन गुंजा की ज़िन्दगी में शायद ख़ुशी थी ही नहीं यानी वो जिस किसी के पास ख़ुशी ढ़ूढ़ने गई वहाँ उसे निराशा ही हाथ लगी। धीरे - धीरे उसकी शादी-शुदा ज़िन्दगी में दरारे आने लगी और मामला इतना बढ़ गया की तलाक तक की नौबत आ गई। मामला तब और बिगड़ा जब उसके पति के हाथ कुछ ऐसी तस्वीरें लग गई जो की गुंजा हमेशा से छुपा कर रखना चाहती थी। दोनो एक साथ होकर भी एक साथ नहीं थे। उधर ओंकार विरह की आग❤‍🔥 में जलता जा रहा था उसने अब फोटोग्राफी भी छोड़ दी और गुंजा की यादों में खोया कुछ-कुछ लिख़ते रहता यानी यूं कह सकते हैं की टुटा आशिक शायर✍🏻 बन चुका था, आज भी वह दोपहर में चाय और मैग्गी बनाता उसे निहारता शायद मैग्गी में गुंजा की तस्वीरें उसे दिख जाये। वह हमेशा सोचता की एक मध्यम वर्गीय लड़के को प्यार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसके पास था ही क्या जो की गुंजा को वह दे सके या जिसे देख कर वह उसके पास आये। ख़ैर!!! उसने उसी को अपना नसीब बना एक प्राइवेट जॉब पकड़ ली अब वो अपने छात्रों के बीच ज्यादा रहता कॉलेज की हर एक गतिविधि में बहुत बढ़कर हिस्सा लेता अपने आप को हमेशा व्यस्त रखता ताकि गुंजा की यादें उसे परेशान ना करें लेकिन फिर भी गाहे-विगाहे उसे उसकी याद आ ही जाती। एक दिन यूं ही वह महाविद्यालय की छत पर बैठा आकाश को निहार रहा था। मौसम सुहाना था, आकाश में बादल अठखेलिया कर रहे थे। उसकी कलम अनायास ही चलने लगी।✍🏻

 काश!!! तुमसे शादी हो पाती,

 मैं तुम्हें बताता जिंदगी भर...

 एक लड़की से बेहिसाब प्यार कैसे करते हैं।

 काश!!! तुम मेरी किस्मत में होती,

 मैं और मेरी तन्हाई अक्सर यह बातें करते हैं।

 तुम होती तो कैसा होता

 तुम इस बात पर कितना हंसती, तुम उस बात का कितना हंसती, 

 तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता।

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर यह बातें करते हैं।


     अभी वह अपनी कविता में ही उलझा हुआ था की तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी, गुंजा की मम्मी का फोन था। गुंजा की शादी के बाद उसने, उससे कभी बात नहीं की थी लेकिन कभी-कभी उसके पापा-मम्मी से बात हो जाती और उन्हीं से उसका हाल-चाल ले लेता की गुंजा कैसी हैं। कुछ दिन पूर्व के बात-चीत से उसे मालूम चला था की वो प्रेग्नेंट हैं, आज उसने पहला सवाल यही पूछ लिया - "आंटी जी आप नानी बन गए।" गुंजा की मम्मी को ओंकार बहुत अच्छे से जानता था वह हमेशा बोल्ड और निर्भीक बात किया करती थी लेकिन उस दिन उनकी आवाज में कुछ भारीपन लगा शायद वह अपने आंसुओं को छुपा रही थी। बस इतना कहा - गुंजा यहां पर आई है, एक बार बात कर लो बेटा। पुरे एक साल बाद वह फिर से उसी आवाज को सुनने वाला था जिसे कभी सुने बिना उसका एक दिन भी नहीं गुजरता था। गुंजा ने बस इतना पूछा - कैसे हो ओंकार ?

ओंकार - मैं ठीक हूँ, और आंटी जी नानी कब बन रही हैं ? उसने वही प्रश्न गुंजा से पूछा जो कि उसकी मम्मी से पूछा था।

इस बार भी ख़ामोशी छा गई, फिर थोड़ी देर बाद गुंजा बोली - हम वहां से अपने घर आ गए हैं एवं वापस कभी नहीं जाएंगे। और हां दोबारा यह प्रश्न मत पूछना।

ओंकार कुछ समझ नहीं पा रहा था कि यह सब हो क्या रहा है? लेकिन उसने दोबारा कोई प्रश्न नहीं किया और कुछ देर दोनों तरफ खामोशी रही और फिर फोन अपने आप कट गया। लेकिन उसे और अधिक जानने की उत्सुकता थी तुरंत उसने गुंजा के पापा को फोन किया। नॉर्मल बातचीत के बाद वह गुंजा के बारे में ही पूछ बैठा। उसके पापा मेडिकल फील्ड से थे उन्होंने सब कुछ बताया और उन्होंने जो बताया वह ओंकार के लिए अविश्वसनीय था। उसे मालूम चला की गुंजा का तलाक हो गया हैं ऐसे कोर्ट से नहीं लेकिन मौखिक सब कुछ क्लियर है। उसका जो बच्चा होने वाला था वह भी किसी कारणवश नहीं हो सका और गर्भपात कराना पड़ा। अब वहां से वह स्थाई रूप से आ चुकी है कभी नहीं जाएगी। इन सभी के उपरांत अंकल ने एक बात कही जिसका अर्थ ओंकार समझ नहीं पाया - बेटा, तुम लोग ही अब हो, इसका ध्यान रखना। उसके उपरांत हर एक-दो दिन के बाद कभी गुंजा की मम्मी या उसके पापा का फोन आ जाता। एक दो बार उसकी गुंजा से भी बात हुई। ओंकार समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करें? फिर एक दिन उसने निर्णय ले लिया कि वह गुंजा को हमेशा खुश रखेगा, जिस कॉलेज में वह जॉब करता था वहां से रिजाइन देकर के पटना आ गया और पटना में ही नई नौकरी शुरू की। वापस वह पटना एक लंबे अंतराल के बाद आया था फिर भी सभी चीजे उसके लिए पुरानी थी। उसने सोचा की गुंजा को बताने से पूर्व पूरा सेटअप तैयार कर लेते हैं ताकि जब गुंजा उसकी ज़िन्दगी में प्रवेश करें तो उसे कोई दिक्कत ना हो। जिस दिन वह उसके पापा-मम्मी से बात करने वाला था उसी दिन विजय उसके रूम पर आया। (मैं यहां आपको बता दूं की विजय वही है जो कभी ओंकार का रूममेट था और जिसे गुंजा ने प्रपोज़ करने पर थप्पड़ मारा था।) विजय ने उसे बताया की उसने गुंजा से बात कर ली हैं वह दोनो शादी करने जा रहे हैं, मुझे पता हैं तुम भी उसे पसंद करते थे तो क्या हमारी शादी से तुम्हें कोई दिक्क़त तो नहीं हैं ना ??? ऐसे गुंजा ने कहां है की हमारी शादी में तुम ही फोटोग्राफी करोगे। आओगे ना??? हम ये शादी बहुत ही गुपचुप तरीके से कर रहे हैं तो बहुत ज्यादा लोगों को नहीं बुलाया है और ना ही इसकी फोटो कहीं सोशल मीडिया पर पोस्ट करनी है क्योंकि गुंजा का भी तलाक नहीं हुआ है।

ओंकार बस चुपचाप सारी बाते सुनता रहा और धीरे से बोला - गुंजा की क्या इच्छा हैं, क्या वो भी तुम्हें....

वो अपनी बात पूरी करता उससे पूर्व विजय बोल उठा - आरे!!! गुंजा ने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है, भाई!!! बस डेट याद रखना और आना जरूर।

ओंकार कुछ नहीं बोला और विजय उसे वहीं छोड़कर चल दिया। अभी वह कुछ दूर ही गया होगा तभी अचानक से ओंकार उठा और जोर से चिल्लाया - विजय 

विजय रुका और मुड़ते हुये कहां - कोई फायदा नहीं ओंकार, वह अब मेरी हो चुकी हैं।

ओंकार - मैं तुमसे बस यही कहना चाहता हूं तुम उसे हमेशा खुश रखना...

ओंकार अपनी बात पूरी करता उससे पहले विजय जा चुका था, तय तिथी के दिन ओंकार ने गुंजा और विजय की शादी की फोटोग्राफी की और पुन: उन दोनो को हमेशा खुश रहने के लिये कहां। उस दिन, उसने महसूस किया की गुंजा के मम्मी-पापा इस शादी से बहुत ज्यादा खुश नहीं थे क्योंकि उन्होंने मन ही मन ओंकार को उसके लिए सोच रखा था लेकिन गुंजा के आगे वो भी विवश थे। उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत इंटर कास्ट मैरिज था। गुंजा के पापा ने ओंकार से कहा - गुंजा, विजय और तुम तीनो बैचमेट थे ना?

ओंकार - जी, अंकल जी। विजय तो मेरा रूममेट भी था।

उन दोनों के बीच और बातचीत होती तब तक किसी विधि के लिए उसके पापा का बुलावा आ गया और वह चले गए। ओंकार बैठे-बैठे सोचने लगा।

 जब उसके पास कोई नहीं होता🥹

 तब याद आता हूं मैं 💔

 और मैं भी इतना पागल यह सोचता हूं कि 

 उसने वक्त निकाला मेरे लिए।😭

तभी एक आवाज उसके कानो में सुनाई दी, अरे!!! फोटोग्राफर कहां रह गया ? उसे पहचानने में देर नहीं लगा कि वह आवाज तो गुंजा की थी, उस दिन यानी आर्ट कॉलेज का पहला दिन जैसे ही क्लास में गुंजा का आवाज गूंजयमान हुआ था आज भी ठीक वैसा ही हुआ लेकिन अंतर बस इतना रहा कि उस दिन ओंकार खो गया था लेकिन आज सिहर गया। उसने चुप-चाप से अपना कैमरा लिया और फोटोग्राफी पुरी शिद्द्त के साथ की। शायद पहली बार ऐसा हो रहा था की किसी शादी के विदाई के समय फोटोग्राफर रो 😢 रहा था जबकी दुल्हन हँसते हुये विदा हुई। ओंकार बस यह समझ नहीं पाया की गुंजा ने विजय को क्यों चुना।

अब आप सोच रहे होंगे की ये कहानी यही खत्म हो गई गुंजा को अपना पुराना आशिक मिल गया और ओंकार फिर से अपनी दिनचर्या में लग गया लेकिन कई बार कुछ चीजे हमारी सोच के अनुसार नहीं होती है, यह बात तो सही रही की गुंजा शादी के बाद बहुत खुश रही और उसे एक बेटा भी हुआ लेकिन ओंकार का एक साल कैसे बिता यह जानने की कोशिश किसी ने भी नहीं की। वह पटना में होते हुए भी पटना में नहीं था। आर्ट कॉलेज से दूर भीखना पहाड़ी के एक लॉज में छठे मंजिल पर 10x10 का एक कमरा लिया और सरकारी एग्जाम की तैयारी करने लगा। कहां भी जाता है ना कि बिहार में जब किसी का दिल टूटता है तो उसका यूपीएससी निकलता है ओंकार का UPSC तो नहीं लेकिन BPSC के साथ 02 और सेंट्रल लेवल के एग्जाम क्वालीफाई हो गये। एक दिन मेरी ओंकार से बात हो रही थी मैंने यूं ही मजाक में कहां की भाई किसी का एक एग्जाम नहीं निकलता है तुम तीन-तीन निकाल के बैठे हो? 

ओंकार ने हँसते हुये कहां - सब खिचड़ी एवं खान सर का कमाल हैं।

खान सर तो मैं समझ गया लेकिन खिचड़ी का मतलब समझ नहीं पाया था, मैंने आश्चर्य पूछा खिचड़ी 

तब ओंकार ने समझाते हुये कहां - दरअसल बात यह है ना की खिचड़ी जल्दी बन जाता है और जब मैं जॉब के लिये तैयारी कर रहा था तो केवल खिचड़ी ही सुबह में बनाता था और सुबह, दोपहर और रात केवल खिचड़ी ही खाता। रूम से बाहर भी बस बाथरूम एवं बर्तन धोने के लिये निकलता। सप्ताह में एक बार सिक्स फ्लोर से नीचे आता ताकि खिचड़ी बनाने के सारे आइटम एक बार में खरीद कर वापस आ सके। और पता हैं हमारे पड़ोसी जो लड़के थे ना वो मुझे कुछ दिन पूर्व देखें हैं वो भी तब जब मैंने मिठाई दिया और बताया की मेरा सिलेक्शन हो गया हैं।

मैंने उससे गुंजा के बारे में पूछने की कोशिश की तो उन्होंने बस इतना कहां -

 कुछ रिश्ते यादों के लिए ही बनते हैं... भविष्य के लिए नहीं💖❣️ 

ओंकार ने आखिर बहुत सोच विचार करके पटना में ज्वाइन करना ही बेहतर समझा। अब उसकी दिनचर्या बिल्कुल अलग हो गई थी या यूं कह सकते हैं कि व्यवस्थित हो गई थी। सुबह 04:00 बजे उठना खाना बनाना, जिम💪🏻 जाना  फिर शाम में कार्यालय से घर आना रात का खाना बनाना और फिर अपनी दिनचर्या को डायरी में लिखना। यह दिनचर्या कई महीनो तक चलती रही इस दरम्यान उसने कभी भी गुंजा से बात करने की कोशिश नहीं की जबकि वह भी पटना में ही थी। एक दिन गुंजा के पापा का कॉल आया वह एकदम से घबराए हुए थे। उसने कहां की बेटा गुंजा हॉस्पिटल में एडमिट हैं, हम लोग गांव से चल दिए हैं पटना आने में थोड़ा समय लगेगा। एक बार जाकर के देख लेते। ओंकार उसने हॉस्पिटल का एड्रेस लिया और फटाफट अपने कार्यालय से छुट्टी लेकर वहां पहुंचा। जब उसने गुंजा को देखा तो यकीन ही नहीं हुआ कि वह इतनी बदल चुकी है। हमेशा मुस्कुराने वाली आज गहरी ख़ामोशी में खोई हुई हैं। चेहरे एवं पुरे बदन पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे। नाक एवं सर से खून बह कर के चेहरे पर जम गया था, वह दर्द से कराह रही थी। चुंकि वह बहुत छोटा हॉस्पिटल था इसलिए प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं हो पा रहा था। उसने तुरंत उसे वहां से एक बड़े निजी अस्पताल में उसे एडमिट कराया और फिर उसके पापा को इन्फॉर्म किया कि इस अस्पताल में हम लोग है। लगभग आधे घंटे बाद गुंजा के पापा एवं मम्मी हॉस्पिटल में थे। डॉक्टर ने बताया की थोड़ी कमजोरी हैं और पूरे शरीर पर कई जगह चोट के निशान है। एक दिन एडमिट करना पड़ेगा कल आप लोग लेकर जा सकते हैं। सभी ने गुंजा से मुलाक़ात की, वह ओंकार को देखते ही फुट-फुट कर रोने लगी। तभी नर्स ने कहां - आरे रोना नहीं हैं, सर में टांका पड़ा हैं। ओंकार यह दृश्य देख नहीं सका और कमरे से बाहर आ गया। कुछ देर उपरांत उसके पापा बाहर आये, उनके आँखों में भी आशु थे। वह ओंकार के पास बैठे और उसने जो कहानी बताई उसको सुनकर ओंकार को यकीन ही नहीं हुआ की विजय गुंजा के साथ ऐसा कैसे कर सकता है। उसने कहां - लेकिन अंकल जी दोनों ने तो अपनी मर्जी से शादी की थी फिर विजय ऐसा कैसे और क्यों करता है ? गुंजा के पापा कुछ बोलते उससे पहले उसकी मम्मी रूम से बाहर आई और बोली - बेटा तुम्हें गुंजा बुला रही है। ओंकार ने अपने आंसू पोछे और कमरे के अंदर गया। कुछ देर दोनों एकदम मौन बैठे रहे फिर धीरे से गुंजा ने कहां - मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मैं विजय को समझ नहीं पाई।

ओंकार बस सुने जा रहा था कुछ बोला नहीं। गुंजा लगातार बोले जा रही थी। उसने कहा था की शादी के बाद तुम पटना में ही रहना, हमारी जाति को बहुत आरक्षण है हमें तुरंत सरकारी नौकरी लग जाएगी, कभी हम तुम्हें अपने गांव पर चलकर रहने की जिद नहीं करेंगे तुम जैसा कहोगी वैसा ही करेंगे लेकिन अब... गुंजा फिर से रोने लगी थी।

तुम्हारी यह हालत किसने की ? ओंकार ने पहली बार बोला।

गुंजा - विजय ने।

ओंकार - क्यों ?

गुंजा - शादी के एक साल तक तो सब सही रहा लेकिन इधर कुछ दिनों से वह हमेशा छोटी-छोटी बातों पर हमसे लड़ते रहता है। हमारे बीच कई बार मारपीट हुई है। एक दिन वह बोल रहा था कि तुमसे बदला लेने के लिए हम शादी किए हैं।

ओंकार - बदला!!! कैसा बदला ?

गुंजा - कॉलेज में उसने जब मुझे प्रपोज किया था और मैंने उसे थप्पड़ मार दिया था उसी का बदला वह हमसे शादी कर के एवं मारपीट से ले रहा है।

ओंकार - आज के बाद वह तुमसे कभी झगड़ा नहीं करेगा।

इतना कहकर ओंकार वहां से उठा और दरवाजे की ओर बढ़ चला, गुंजा ने आवाज लगाई - ओंकार विजय को कुछ मत करना।

ओंकार - मैं उसे कुछ नहीं करूंगा लेकिन तुम्हें भी दु:खी नहीं देख सकता। इतना कह कर वह दरवाजे से बाहर आ गया और गुंजा के पापा मम्मी से मिलकर बोला - अब आगे से विजय गुंजा को परेशान नहीं करेगा मैं उस से जरा मिलकर आता हूं और हां हॉस्पिटल का मैंने सारा बिल दे दिया है आप लोग आराम से कल गुंजा को घर लेकर जाइयेगा।

 ओंकार और विजय दोनों रूममेट रह चुके थे तो दोनों के बीच कभी-कभी बातचीत होती रहती थी उस दिन भी विजय ने बहुत ही आराम से बातचीत किया और ओंकार को मिलने के लिए बुलाया। ओंकार जब विजय के रूम पर पहुंचा तो देखा तो उसके सर पर पट्टी बंधी हुई थी। उसने पूछा तुम्हारे सर पर पट्टी क्यों बंधी हैं ?

विजय - वह सुबह थोड़ा सा सीढ़ी से गिर गये थे।

ओंकार - आज से 10 साल पहले हम भी छत पर गिरे थे एवं सर फूटा था, हम गुंजा से मिलकर आ रहे हैं।

विजय ने जैसे ही यह वाक्य सुना हुआ एकदम से सन्न रह गया। उसने लड़खराते हुए कहां - गुंजा ने भी मेरा सर....

विजय अपनी बात पूरी करता हूं उससे पहले ओंकार ने उसे डांटते हुये कहां - चुप रहो!!! जानते हो हम अभी किस पद पर हैं ?

विजय खामोश रहा ओंकार बोलता रहा।

हम भारत सरकार के अंतर्गत एक सर्वोच्च पद पर है, हमारा एक कॉल और गुंजा का एक बयान तुम्हें क्या तुम्हारे पूरे परिवार को हमेशा के लिये सलाखों के पीछे कर सकता है। लेकिन हम ऐसा नहीं चाहते हैं हम बस यही चाहते हैं कि आज के बाद हमें यह सब चीजें नहीं सुनाई देनी चाहिए और तुमने जो हमसे वादा किया था की गुंजा को हमेशा खुश रखेंगे उस पर अभी से कार्य प्रारंभ करना शुरू दो। और हां यह लो अस्पताल का एड्रेस और उसके पापा-मम्मी से माफी मांगो और गुंजा के साथ रहो।

विजय - ओंकार लेकिन मेरी बात भी तो सुन लो।

ओंकार - तुम भाग्यशाली हो कि इतना कुछ देखने के बाद भी हम यहां पर अकेले आए हैं। क्योंकि गुंजा ने कहां था की विजय को कुछ नहीं होना चाहिए और दूसरी बात की हम दोनों ने एक ही थाली में खाना खाया है और हम यह भी नहीं चाहते हैं कि हमारी पुरानी दोस्ती में कुछ दरार आएं। बाकी तुम बहुत समझदार हो बस कोशिश यह करना हम अगली बार ऐसे नहीं मिले।

 ओंकार वहां से चला गया उसके उपरांत विजय और गुंजा की जिंदगी बहुत सकारात्मक हो गई क्योंकि उस घटना के बाद विजय ने भी अपने आप में बदलाव किया एवं गुंजा ने भी। 

 एक दिन ओंकार से मेरी मुलाकात बाजार में हुई, वह एक बड़े से गिफ्ट को पैक करवा रहा था। मैंने पूछा यह गिफ़्ट 🎁किसके लिए तो उसने कहा कि आज गुंजा के लड़के का बर्थडे है वह एक साल का हो गया हैं। उसने हम सभी बैचमेंट को अपने रूम पर बुलाया है फिर उसने कहां कि "एक अजनबी की कलम से" ही आप इस कहानी को दुनिया के सामने लाइएगा। मेरे मुख से अचानक निकल गया लेकिन आपके साथ अच्छा नहीं हुआ!!! तब उसने मुस्कुराते हुए कहा -

 जरूरी तो नहीं यार की जो हमें ना मिले उसे हम भुला दे, अरे!!! कुछ रिश्ते बिना शादी के भी बहुत पवित्र होते हैं। ...और मैं move on नहीं कर सकता, क्योंकि मैं किसी रिश्ते में थोड़ी ना था। अरे मैं तो प्यार🥰 में था। ऐसा प्यार जो कभी दोबारा नहीं हो सकता.... और वह मेरे पास नहीं हैं तो क्या हुआ उसके अलावा अब किसी से मुझे प्यार नहीं हो सकता।

     इतना कहते कहते ओंकार की आंखें भर आई थी, मैंने उसे ढाढ़स देने की कोशिश तो की लेकिन वह लगातार रोए😭 जा रहा था। उसने मुझे जॉन औलिया साहब का एक शेर सुनाया -

 सोचूं तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई,

 देखु तो एक शख्स भी मेरा नहीं हुआ।


      भैया आपका गिफ्ट🎁 पैक हो गया, दुकानदार ने गिफ्ट पैक कर दिया था। ओंकार ने उसे बहुत सावधानी से पकड़ा और फिर दुकान से बाहर निकल गया। मैं उसे जाते हुये देखता रहा।

बुधवार, 4 जून 2025

खोइँछा (खोंइचा)


        शादी के बाद दीदी की विदाई हो रही थी। रोती हुई दीदी ने अपना आंचल आगे फैलाया और मां ने उसमें मुट्ठी भर चावल, हल्दी का एक टुकड़ा, सिंदूर की पुड़िया और थोड़े से पैसे बांध दिए। शादी के बाद दीदी के साथ कई-कई बक्से भर कर सामान जा रहा था। ढेर सारे कपड़े, गहने, बर्तन, बिस्तर और भी बहुत कुछ। फिर मां ने ये एक मुट्ठी चावल दीदी के आंचल में क्यों बांध दिए ? दीदी एक मुट्ठी चावल का क्या करेगी? इतने में तो वो अपने लिए भात भी नहीं बना पाएगी। अगर मां चाहती है कि दीदी जब ससुराल जाए, तो वहां एक दिन खिचड़ी बना कर खा ले, तो फिर चावल और हल्दी ही क्यों?  

सभी रो रहे थे। दीदी मां के गले से लगी थी। ऐसे में मां का संजू बेटा चाह कर भी किसी से नहीं पूछ पाया कि मां इतना सा चावल क्यों? दीदी विदा हो कर चली गई थी। कई दिनों बाद एक दिन संजय सिन्हा ने मां से पूछ लिया कि मां, उस दिन आपने दीदी के आंचल मे मुट्ठी भर चावल क्यों बांधा था? 

मां मुझे समझाने लगी, “बेटा, इसे खोइँछा (खोंइचा) कहते हैं। लड़कियां जब मां का घर छोड़ कर जाती हैं तो मांएं उनका खोंइचा भरती हैं। इस एक मुट्ठी चावल में मां का प्यार भरा होता है।“

“तो फिर लड़कों को भी शादी के बाद प्यार का खोंइचा मिलेगा ?”

मां समझ गई कि उनका लाडला संजू इतने से नहीं मानने वाला। उसे खोंइचे का पूरा अर्थ जानना है।

मां ने कहना शुरू किया, “बेटी लक्ष्मी होती है। जब वो मां के घर से पति के घर जाती है तो मां उसके आंचल में चावल इसलिए बांधती है, ताकि उसका घर धन-धान्य से भरा रहे। इस एक मुट्ठी चावल को तुम्हारी दीदी अपने घर के भंडारे में रख देगी, तो उसके घर कभी अन्न की कमी नहीं होगी। और मैंने आंचल में डाल कर थोड़ा चावल जो निकाल लिया है न, वो इसलिए ताकि उसके जाने के बाद यहां भी किसी चीज़ की कमी न हो। 

एक बेटी दो-दो घरों को उजाला करती है।“

“फिर हल्दी और पैसे क्यों?”

“हल्दी शुभ का संकेत है। हल्दी सौ बीमारियों से बचाने वाली औषधि है। एक हल्दी की गांठ के साथ उसे और उसके पूरे परिवार को सदा निरोगी रहने का आशीर्वाद मांएं देती हैं। और पैसा इसलिए ताकि उसके घर कभी नकदी की कमी न हो। मांएं बेटियों के खोंइचे को इसलिए भरती हैं ताकि वो और उसका पूरा परिवार स्वस्थ रहे, कभी खाने-पीने की कमी न हो और धन धान्य से पूरा घर भरा रहे। और सिंदूर इसलिए ताकि उसका सुहाग हमेशा बना रहे।”

“समझ गया मां।”

शुक्रवार, 30 मई 2025

कविता (Poetry)



तुम्हारी गैर मौजूदगी में अक्सर मैंने लिखें हैं।

तुम्हारी मौजूदगी की कविता।

तुम्हारे ना होने पर भी,

तुम्हारी उपस्थिती की कविता।


डायरी का हर एक पन्ना गवाह हैं,

मेरे दिल में उठे तुम्हारे दर्द की कविता।


अक्सर खो जाता हूँ,

तुम्हारे ख्यालों में।

मेरे लिये भी सही हैं, क्योंकि!!

उसी से बनती हैं मेरी भावनाओं की कविता।


देखो प्रिय!!!

कुछ भी असंभव नहीं है इस जहां में,

तुमसे प्रेम💖 करना भी हो तो 

फिर से लिख लेता✍🏻 हूँ मैं कोई कविता।


कविता ही कविता,

मेरे जीवन का अब सार हैं कविता।

बिना इसके अब तो लगता हैं,

बेमानी है मेरे जीवन की गाथा।


कविता के अर्थ को भावार्थ देने,

तुम किसी दिन आओ।

शायद उसी दिन मुक़्क़मल होगी,

मेरी यह कविता।


तुम्हारी गैर मौजूदगी में अक्सर मैंने लिखें हैं।

तुम्हारी मौजूदगी की कविता।

तुम्हारे ना होने पर भी,

तुम्हारी उपस्थिती की कविता।


विश्वजीत कुमार ✍🏻


रविवार, 25 मई 2025

तुम्हारे बिना...




गीत-गजलें लिखूंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

दिल के हाल को व्यक्त करूँगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

छोड़ कर जाते हुए तुमने सोचा नही...

गुनगुनाऊंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!


वो बचपन की बाते वो मस्तीयों के दिन,

याद आते रहेंगे अब, तुम्हारे बिना!!!

एक बार मुड़ कर देख भी लेते...

उसी के सहारे मैं जी लेता, तुम्हारे बिना!!!


कहते थे तुम साथ हमेशा रहोगे।

बताओं अब मैं कैसे रहूँ, तुम्हारे बिना!!!

चाँद भी मुझसे अब पूछता है...

अकेले छत पर क्या कर रहे हो, उसके बिना!!!


नदियां विरान है, बगीचे गुमनाम है।

फूलों में अब वो खुश्बू नही हैं, तुम्हारे बिना!!!

चाहता तो मैं तुम्हे रोक सकता था।

लेकिन जिस्म का करता भी क्या, तुम्हारे रूह के बिना!!!


  गीत-गजलें लिखूंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

दिल के हाल को व्यक्त करूँगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

छोड़ कर जाते हुए तुमने सोचा नही...

गुनगुनाऊंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!


विश्वजीत कुमार✍️

गुरुवार, 22 मई 2025

एक कलाकार थी वह मेरे सपनों की...

एक कलाकार थी वह मेरे सपनों की,

 उसने एक प्यारी सी मेरी तस्वीर बनाई थी।

 शायद!!! दुनिया की भीड़ में मैं कहीं खो ना जाऊं,

 इसलिए अपने दिल में उसने मुझे बंदी बनाई थी।


 शायद वह CBSE से पढ़ी थी,

लेकिन Hi, How are You के बाद हिंदी लगाई थी।

 पहले तो ठीक-ठाक रहता था मैं,

लेकिन उस दिन बिखर गया।


जिस दिन उसने भारतीय परिधान पहना, 

और फिर बिंदी लगाई थी।

 सोचिये🤔 क्या हुआ होगा उस दिन मेरा ?

 जब वह दूर से देखकर मुझे मुस्कुराई☺️ थी।


उस वक्त मैंने नजरे झुकाई, 

और अपने दिल को थाम ली थी।

 वो भी बहुत समझदार थी,

मुझसे नजरें हटाई एवं किसी और से नजरें मिलाई थी।


मैं कैसा था? यह तो पूछो ही मत,

उसकी याद में मैंने रातभर दिल को जलाई❤️‍🔥 थी।

हर कोई मेरा हाल पूछता था,

बार-बार उसका नाम पूछता था।


 मैं भी अपनी निगाहों पर पाबंदी लगा बैठा था,

 बंद करके उसे दिल के किसी कोने में ताला लगा बैठा था।

 वो नहीं चाहती थी उसका नाम जहां में आएं,

 और मुझको ऐसा करने पर उसने पाबंदी लगाई थी।


एक कलाकार थी वह मेरे सपनों की,

 उसने मेरी एक प्यारी सी तस्वीर बनाई थी।

 शायद दुनिया की भीड़ में मैं कहीं खो ना जाऊं,

 इसलिए अपने दिल में मुझे बंदी बनाई थी।


विश्वजीत कुमार✍️


रविवार, 18 मई 2025

मुंगेर की वो अनोखी शादी।

      19 जनवरी 2025 की सुबह 09 बजकर 05 मिनट पर व्हाट्सएप की घंटी बजी, जब मोबाईल देखा तो पता चला की शादी का निमंत्रण कार्ड आया हैं। वो निमंत्रण हमारे प्रशिक्षु (स्टूडेंट) का था। उसने निमंत्रण कार्ड के साथ लिखा था आपकी उपस्थिति अति आवश्यक है। इस अति आवश्यक को हम समझ नहीं पा रहे थे। जब उससे फोन पर वार्तालाप हुई तो मालूम चला कि किसी क्लास के दरम्यान मैंने कभी उससे कहा था कि आपकी शादी में हम आएंगे। संभवतः चर्चा मुंगेर पर चल रही थी और वह भी मुंगेर का ही था, तब उन्होंने कहा था कि सर, आप मुंगेर आइयेगा कभी!!! ...और शायद यह उचित समय था मुंगेर जाने का, लेकिन उचित रहा नहीं।

आप सभी सोच रहे होंगे - क्यों ?

अब इस क्यों का जवाब पाने के लिए तो आपको पूरा आर्टिकल पढ़ना होगा तो चलिए शुरू करते हैं...

     19 का मूलांक 01 और उसके स्वामी सूर्य☀️, मेरा भी मूलांक एक ही होता है तो पहली बार में ही जाने का प्लान बन गया और दुसरा समय यानी 09 बजकर 05 मिनट तो इसका मूलांक हुआ 05. वो ऐसे की 09+05 = 14, and 1+4 = 5. जो कि मेरा लकी नंबर है और जैसे मूलांक 05 वाले लोगो को यात्रा करना, नई चीजें सीखना और दूसरों की मदद करना पसंद होता हैं, ऐसा ही कुछ गुण मेरे अंदर भी समाहित है। चुंकि मुंगेर हम पहली बार जा रहे थे इसलिए अपने महाविद्यालय से एक सप्ताह की छुट्टी ले लिए और उसे बता दिए कि हम आपकी शादी के बाद मुंगेर को एक्सप्लोर करेंगे और वापस रविवार को आएंगे। आने एवं जाने का टिकट भी उसे व्हाट्सएप पर शेयर कर दिये ताकि उसे पता रहे कि हम कंफर्म आ रहे हैं। 


    पटना से हमारी ट्रेन 13402, भागलपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस थी। उसने मुझे बताया कि मुंगेर में ट्रेन नहीं जाती है हमें जमालपुर में उतर करके आना होगा। ट्रेन अच्छी थी वह मुझे रात्री में 09:00 बजे तक जमालपुर स्टेशन पहुंचा दी थी। जमालपुर एक छोटा सा स्टेशन है तो बाहर ज्यादा भीड़-भाड़ एवं चहल पहल नहीं था। जमालपुर से मुंगेर के लिए हमें आसानी से ऑटो मिल गया। ट्रेन से उतरने के बाद हम अपने उस प्रशिक्षु को लगातार फोन कियें जा रहे थे लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। संभवतः शादी के विधि-विधान में व्यस्त होगा। जमालपुर से मुंगेर के लिए ऑटो रात्री के 09:30 में भी आसानी से मिल गई। 10:00 बजे तक हम मुंगेर में थे। मुंगेर पहुंचने के बाद भी उससे बात नहीं हो पाई जबकि 01 घंटे से उसको हम कॉल किये जा रहे थे। हम सोच रहे थे कि जब हम उसको अपनी पूरी यात्रा विवरणी यहां तक की आने एवं जाने का ट्रेन का टिकट भी भेज दिए हैं तो आदमी को इतना तो sincere होना चाहिए। खैर!!! मेरे पास जब कोई ऑप्शन नहीं बचा तो शादी के कार्ड पर लिखें पते पर पहुंचने का प्रयास किये। उस समय तक रात के 10:30 हो चुके थे और लगभग सारी सड़के सुनसान हो गई थी। मुंगेर को सिटी ऑफ़ गन🔫 भी कहा जाता हैं, आज पहली बार अनुभव कर रहे थे। वह तो भला हो गूगल मैप का वरना वहां तो कोई पता बताने वाला भी नहीं था। मुंगेर से उसके घर की दूरी लगभग ढाई से 03 किलोमीटर रही होगी। दोनों तरफ वीरान खेत, कही-कही एकाध घर वह भी अंधेरे में डूबे हुए। बीच सड़क पर हम इकलौते चल रहे थे। मेरे पास एक बड़ा सा गिफ्ट🎁, एक बैग जिसमें मिरर लेस कैमरा, लैपटॉप, कुछ कपड़े, एवं कुछ कैश भी थे जो किसी भी व्यकित के अंदर डर को पैदा कर सकता है, जब आप ऐसे सड़कों से रात में गुजरो। चुंकि रात का समय था इसलिए हमारे कदम थोड़े तेज चल रहे थे। 03 किलोमीटर की दूरी को कम करने के लिए मैंने ब्लूटूथ से मोबाइल को कनेक्ट कर गाना बजा लिया था।

गाने के धुन थे,

जिंदगी एक सफर है सुहाना,

यहां कल क्या हो किसने जाना ?

      कल का तो नहीं पता लेकिन उस समय मेरे साथ क्या होगा यह भी मुझे नहीं मालूम था। हम गाना सुनते हुये चले जा रहे थे तभी मुझे एहसास हुआ की मेरे पीछे से कोई बाइक आ रही है जो की मुंगेर से चली आ रही थी। मै बीच सड़क से किनारे हो गया, वो भी ठीक मेरे पास यानी बगल में रुके। उस बाइक पर दो लोग सवार थे। मै भी निडर हो कर के उन्हें देखा वो कुछ बोलते उससे पहले मैंने ही पूछा - भाई मुझे आगे उस गाँव तक छोड़ दोगे ? वहां हम अपने एक स्टूडेंट की शादी में जा रहे है। दोनों एक साथ बोले - कहां से आये हो ?

मैंने कहां - पटना से।

उनमे से एक ने पूछा - आपने उस छात्र को कॉल नही किया ?

मैंने कुछ जवाब नही दिया बस अपने मोबाईल का स्क्रीन दिखा दिया, 30+ कॉल थे वो भी एकाध घंटे में।

फिर एक ने पूछा - कौन से गाँव जाना है ?

मैंने शादी के कार्ड में लिखें गाँव का नाम दिखाया।

वो बोले की हम तो उस तरफ नहीं जा रहे हैं लेकिन आप को कुछ दुर तक छोड़ देंगे।

      उस अनजान जगह में दो अजनबी मेरी मदद को तैयार थे लेकिन अभी तक उसने मेरा कॉल रिसीव नहीं किया था और ना ही कॉल बैक। खैर!!! हम कुछ देर में उसके शादी के हॉल में थे। मुंगेर से 03 किलोमीटर दूर होने के बाद भी हॉल अच्छा था, डेकोरेशन भी बहुत अच्छे से किया गया था जगह-जगह पर लड़का एवं लड़की की फोटो लगाई गई थी। वहां की खूबसूरती देखकर अपनी हम सारी थकावट को भूल गए। मालूम चला की बारात अभी तक नहीं आई है उस समय रात के 11:00 बज चुके थे, यह भी बात पता चली की बरात एक किलोमीटर से ही आ रही हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के पास बहुत ही खूबसूरत गणपति जी की प्रतिमा स्थापित की गई थी उसी के बगल में एक सज्जन से व्यक्ति बैठे हुए थे जो आने वाले सभी मेहमानों के नाम लिख रहे थे और उन सभी के द्वारा क्या-क्या गिफ्ट लाया गया है उसका भी ब्यौरा दर्ज कर रहे थे। मैंने भी अपना गिफ्ट🎁 उन्हें दिया और नाम लिखवाया - विश्वजीत कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर निफ़्ट पटना। जैसे उन्होंने पटना सुना तुरंत पूछा - आप (दूल्हे का नाम लेते हुए) उसके मित्र है क्या ? आप ही के साथ ना वो पटना में बिजनेस शुरू किया था...

वह आगे कुछ बोलते हैं उसे पूर्व ही हमने कहा - नहीं, नहीं वह हमारे छात्र हैं, हम ना उनको बरबीघा साईं कॉलेज में पढ़ाए हैं।

उन्होंने हल्की सांस लेते हुए कहा - अच्छा!!! अच्छा!!!

उनका अगला प्रश्न मुझे बहुत अजीब लगा क्योंकि उसने पूछा था - वापस कब जाना है ?

मैंने कहा - रविवार को, तीन-चार दिन मुंगेर में ही रुकना है।

उन्होंने फिर पूछा - रुके कहां है ?

मैंने कहा - अभी तो बस ट्रेन से उतर कर के आप ही के पास आ रहे हैं...

मैं और कुछ बोलता है इससे पूर्व अंकल जी वहां से जा चुके थे।

मैंने गणपति जी के पास अपना बैग रखा और वहां की खूबसूरती को अपने कैमरे में उतारने लगा। लोग वहां आ रहे थे गिफ्ट🎁 दे रहे थे और खाना खाकर जा रहे थे। क्योंकि मुझे वहां कोई जानता नहीं था तो बस यूं ही आसपास के दृश्यों को अपने कैमरे में उतारने लगे। तभी एक व्यक्ति आया और बोला कि आप किसके तरफ के कैमरा 📷 वाले हैं लड़की वाले या लड़का वाले।

मैंने पूछा - काम क्या है ?

उन्होंने कहा - कुछ फोटो खिंचवानी थी।

मैंने कहा - खिंचवा लो, दिक्कत क्या है।

फिर उन्होंने अपने सभी दोस्तों को बुलाया और स्टेज पर जहां पर जयमाला होने वाला था बैठकर कई सारी तस्वीरें खींचवाई।

उन सभी में एक चेहरा मुझे जाना पहचाना सा लगा। मैंने उससे बोला कि आप (लड़के का नाम लेकर) उसके भाई हो क्या ?

उसने कहा - जी

फिर मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि शायद आपको याद हो मैंने आपसे 2021 और 22 में अपना ITR Fill करवाया था।

उसने कहा - हां, हां याद आया फिर बोला कि आप यहां तक कैसे आए फोन कर लेते।

मैंने कहा - बस आ गए, तुम्हारा नंबर मेरे पास नहीं था और तुम्हारे भैया को कई बार फोन किये वो जवाब ही नहीं दे रहे। फिर मैंने बात को घुमाते हुए पूछा की बारात कब आएगी ?

वह बोला - सभी लोग घर से चल दिए हैं, 05-10 मिनट में पहुंच जाएंगे। इतना बोलकर वह वहां से चला गया। मैंने कैमरा को बैग में रखा और दो-चार तस्वीरें उसके व्हाट्सएप पर (जिसकी शादी में हम गए थे) भेज दिए। मुझे बहुत आश्चर्य लगा की फोटो भेजने के साथ ही 02 मिनट के अंदर ही फोटो Seen हो गया और उसका रिप्लाई आया।

Sir
कुछ pic or send kr dijiye 

      मैंने उसकी आज्ञा मानते हुए और भी कई सारी तस्वीर भेजी। उस समय तक लगभग लोग खाना खाकर जा चुके थे, 12:00 बजने वाला था, हम पटना से शाम में ही चले थे तो भूख भी लग रही थी। जैसे ही प्लेट में हल्का खाना लेकर, खाना शुरू किये तब तक बारात आ गई। फटाफट खाना कंप्लीट करके स्टेज के पास पहुंचे। वह दूल्हे की ड्रेस में बहुत ही प्यारा👌🏻 लग रहा था। मैंने उसे शादी की बधाई💐 दी एवं साथ में दो-चार फोटो खिंचवाई। एक शिक्षक होने के नाते मेरा इतना तो हक बनता था कि उससे प्रश्न पूछ सकते थे। मैंने उससे पूछा कि फोन क्यों नहीं उठा रहा था ?

उसने सिंपल सा जवाब दिया कि सर फोन साइलेंट में था, फिर आगे बोला कि आप व्हाट्सएप्प कॉल कर लेते।

मैंने मन ही मन सोचा कि फोन तो तुम उठा नहीं रहा था व्हाट्सएप कॉल क्या उठाता ? फिर मैंने उससे बोला कि आप व्हाट्सएप पर रिप्लाई तो बराबर दे रहे थे, बस हमारा मिस कॉल नहीं देख पाए।

वह इधर-उधर के वातावरण को देखते हुये बोला - सर हम लोगो की इच्छा थी की शादी मुंगेर में हो लेकिन लड़की वाले नहीं माने इसीलिए यहां पर करना पड़ रहा है। और इसीलिए किसी को नहीं बुलायें क्योंकि यहां आने में सभी को परेशानी होती।

मैंने बोला यह जगह भी तो अच्छी ही है, हॉल भी बहुत बढ़िया है केवल रास्ते में थोड़ा दिक्कत है।

उसने बोला की - हां रास्ते में थोड़ा बहुत लूटपाट की घटनाएं भी होती है, इसलिए आप देख रहे होंगे बहुत कम लोग आए हैं। तभी अचानक से उसे ध्यान आया और बोला कि आप कैसे आएं ?

मैंने कहा - बस आ गए, एक सुझाव भी उसको दिये की किसी को बुलाओ तो कम से कम फोन उठा लिया करो।

वह कुछ नहीं बोला हम स्टेज से उतर करके सामने कुर्सी पर बैठ गए। जयमाला का कार्यक्रम लगभग रात्री 01:00 बजे तक समाप्त हो गया। जयमाला के बाद वह कहीं चला गया संभवत: अपने रूम में। उस हॉल में केवल तीन लोग थे। एक मैं, एक वीडियोग्राफर और एक फोटोग्राफर। मैंने उस फोटोग्राफर से पूछा कि अब आगे का क्या कार्यक्रम है ? फोटोग्राफर जम्हाई लेते हुए बोला कि अब आगे का क्या, आराम कीजिए। सभी लोग नाश्ता, खाना खाएंगे जो बारात के साथ आए हैं फिर शादी के लिए इसी मंडप में आएंगे। और वह दो कुर्सी को जोड़ करके बैग को किनारे रखा और सो गया। मुझे अपने पुराने फोटोग्राफी के दिन याद आ गए। कई बार नई जगह पर, जब कभी थोड़ा समय मिले सो जाते थे। मैंने उसे जगाया और पूछा कि भाई यहां आस-पास कोई होटल मिलेगा ? बोला कि यहां तो नहीं लेकिन मुंगेर में मिल जाएगा। फिर अपने आप बोला की बाइक से जाना इतनी रात को सही नहीं रहेगा। मैंने उससे कहा कि मेरे पास बाइक नहीं है और अपना बैग लेकर वहां से निकल गए। वहां से निकलने से पूर्व कई बार पुन: कॉल किया इस बार मैंने व्हाट्सएप्प कॉल भी किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। हमने सोचा कि जैसे आए थे वैसे चले जाएंगे लेकिन वैसा हुआ नहीं। कुछ दूर ही आगे बढ़े थे की तभी पुलिस की एक गाड़ी हमारे पास आकर रुकी। पुलिस ने अपनी ही आवाज में पूछा - ऐ कहां जा रहा है ?
मैंने उन लोगों को सारी बातें बता दी एवं कहां की यहां हम एक शादी में आए थे और वापस मुंगेर जा रहे हैं। पुलिस वालो को मेरी सच्चाई पर यकीन नहीं हुआ उन्होंने एकदम से डांटते हुए बोला - रात को 01:30 बजे तुम शादी से आ रहा है। अब उन्हें हम क्या समझाते की हम बिल्कुल सही बोल रहे हैं। उन्हें समझाने से बेहतर यह लगा कि उन्हें अपना परिचय दे। सबसे पहले मैंने अपने कॉलेज का आई-कार्ड (I-Card) उन्हें दिखाया और बोले हम नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ़्ट) में प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने जब भारत सरकार का राष्ट्रीय प्रतिक चिन्ह देखा, तुरंत उनकी भाषा ही बदल गई अभी तलक जो तल्ख़ियाँ (Bitterness) थी वो सिफारिशे में बदल गई। उन्होंने कहा - सर हम आपको कहां तक छोड़ दें, आपकी ट्रेन कितने बजे है। मैंने उन्हें कहां - हमारी ट्रेन तो तीन दिन बाद है, फिलहाल आप मुझे किसी होटल के पास छोड़ दीजिए ताकि तीन दिन हम वहां रह सके। उन्होंने मुझे स्टेशन के पास एक होटल में रुकवां दिया। ऐसे जब हम उनके साथ आ रहे थे तो उन्होंने पूछा - सर, आप यहां किसकी शादी में आये थे। मैंने कहां - अपने एक छात्र की शादी में। 
"इसके बात के वार्तालाप को हम यहां नहीं लिख रहे हैं, पाठकगण स्वयं से अनुमान लगाएं की हमारे बीच क्या वार्तालाप हुई होगी।"

होटल लेकर शिफ्ट होते-होते रात के 03:00 बज गए थे, सुबह 05:00 बजे का अलार्म सेट किये और सोये। सुबह उठने के साथ ही फ्रेश हो कर के होटल से निकले। मुंगेर के ही एक और प्रक्षिक्षु (इसके और जिसकी शादी में गए थे उसके बीच कॉलेज टाइम में दोनों के बीच बहुत अच्छी बॉन्डिंग थी लेकिन वर्तमान में तल्ख़ियां बढ़ गई थी, इस वजह से उसने उसे शादी में नहीं बुलाया था) से मैंने 02 दिन पूर्व ही बात करके एवं मुंगेर में हम कहां-कहां घूम सकते हैं उसकी पूरी प्लानिंग बना ली थी, उन्होंने बकायदा टाइपिंग करके मुझे व्हाट्सअप पर भेजा था, जो की निम्न हैं -👇🏻

Hostel - raj place / raj hans

Khana khane ke liye

-Vaisali hotel

Chat - model school ke samne

Chhole bhature - raj place ke samne

Ghumne bala jagh

Sbse phle nahane ke liye jana hai morning

1) kastharni ghat

2) chandika asthand

3) bari durga mahrani sadipur

4) company gadan

5) machhli talab

6) sita khund

8)krishan vatika

9)sojhi ghat

10) Oxford library (konrak mor ke pas

Jamalpur me mithayi khana hai

1) jai bangla me


Jamalpur me

1)Kali pahar

2) Jamalpur rel karkhana

3)rishi khud (Jamalpur se subh jakar wanha naha skte hai. Locel train chalti)

होटल की व्यवस्था तो हो चुकी थी अब घूमना था, उपरोक्त सारणी के अनुसार मुझे सबसे पहले कष्टहरनी घाट पर नहाना था, हम भी सोच रहे थे की चलो जो भी मुंगेर में कष्ट हुआ वो कष्टहरनी में नहाने से दूर हो जाएगा। कष्टहरिणी में नहाने के उपरांत सबसे पहले मुंगेर का किला एवं उसके आसपास कई जगहो का भ्रमण किये। जिस प्लेस का नाम उपरोक्त लिस्ट में था उसके अलावा भी बहुत सारी जगह का हम दिनभर भ्रमण करते रहे। रात में 10:00 बजे तक होटल पहुंचे। मुंगेर घूमने की कुछ तस्वीरें मैंने सोशल मीडिया पर डाली।

      पूरे 24 घंटे के बाद उसने मेरे स्टेटस पर रात के 11:23 में कमेंट किया जो कि हम सुबह में 05:10 में देखें और रिप्लाई दिया।

       मुंगेर में तीन-चार दिन मेरे लिये बहुत ही यादगार रहा, इस दरमियान कभी मेरी उससे बात नहीं हुई ना हीं मैंने कॉल किया और ना ही उसने। पटना पहुंचने के बाद मैंने उसकी सारी फोटोग्राफी जो की जयमाला के दरमियान खींची थी उसे भेज दी और साथ में यह लिखा भी...

..........की यात्रा मेरे लिए बहुत यादगार रही,.. I will never forget this trip in my entire life.



पटना में एक प्रोफेसर है डॉक्टर राजीव कुमार उनकी शादी भी मुंगेर में ही हुई है, एक दिन बातचीत में यूं ही मुंगेर का जिक्र आ गया। जब मैंने उपरोक्त कहानी उन्हें बताई तो उन्होंने कहा - सर आप मुंगेर पहली बार गए थे क्या ?

मैंने कहा - हां और शायद दूसरी बार जाने से पहले सोचूंगा।🤔

तब उन्होंने कहा - मुंगेर में ऐसा ही होता है, कुछ नया नहीं है। अरे!!! वहां आप किसी के यहां जाइयेगा तो सबसे पहले यही पूछते हैं कि जाना कब है ?

मैंने कहा - यह सब बातें तो मुझे नहीं मालूम थी लेकिन मुंगेर का अनुभव बहुत अच्छा रहा। फिर मुंगेर में मैंने जहां-जहां, जो-जो चीजे देखी थी उसके बारे में उनसे देर तक परिचर्चा चलती रही।

विश्वजीत कुमार✍🏻


शनिवार, 10 मई 2025

बरबीघा, शेखपुरा की वो न भूलने वाली यात्रा।

        उस दिन सोमवार था और हम अपने कॉलेज परिसर में 08:40 AM तक पहुंच गए थे उस समय तक कोई भी नहीं आया था, अमूमन लोगो को लॉन्ग वीकेंड के बाद आने में थोड़ी सी देर हो ही जाती है। आने के उपरांत कुछ जरूरी कार्यों को निपटाकर दोपहर में 01:00 बजे जब परिसर से निकलने लगे तो हमारे सहकर्मियों ने पूछा कि सर कहां जा रहे हैं ?

मैंने उन्हें बताया कि अपने एक प्रशिक्षु (छात्र) की शादी में बरबीघा जा रहे हैं।

उन्होंने थोड़ा हंसते हुए कहा कि - अब आपके स्टूडेंट भी शादी करने लगे हैं।

उनका इशारा कहीं और था जो कि हम बखूबी समझ रहे थे, मैंने उन्हें बताया कि सर B.Ed एवं D.El.Ed में हमसे बड़े-बड़े हमारे छात्र हुआ करते थे।

तब वह विषय वस्तु को बदलते हुए अपने अनुरोध को हमारे सामने रखते हुये कहां - सर, बरबीघा से कुछ लेते आइएगा।

मेरे मन में आया कि बोले कि - सर वहां तो बस गम😥 ही मिलता है, कहियेगा तो लेते आएंगे लेकिन पुन: यह सोचकर नहीं बोले कि वह तो बस मेरे ही हिस्से आया था। फिर सोचने लगे की बरबीघा में ऐसा क्या है जो लेकर जा सकते हैं। तभी अचानक मेरे स्वयं की रचित रचना ऐ बरबीघा मेरी पहचान हो तुम। यह पंक्तियां याद आने लगी।

रामस्वरूप के गर्मा गर्म, 

रसगुल्ले का रसदार हो तुम।

तो वही थाना चौक के पास स्थित, 

गोलगप्पे का स्वाद हो तुम।

 ऐ बरबीघा मेरी पहचान हो तुम।। -२

मैंने कहां - सर, वहां पर रामस्वरूप का रसगुल्ला मिलता हैं जो की बहुत फेमस हैं। मै आप सभी के लिये उसे लेते आऊंगा। यहां पर भले ही कई लोगों को शुगर हो लेकिन रसगुल्ला के नाम पर सभी राजी हो गए।

     ओला बाइक की मदद से हम पाटलिपुत्र बस स्टैंड चले गए, वहां पर बरबीघा, शेख़पुरा की बस में बैठने से पूर्व सेल्फी ले लिये और उसे इस कोट्स के साथ शेयर किये।


वर्तमान कार्यस्थल से भूतपूर्व कार्यस्थल की ओर...😊

जिन्दगी में यात्रायें🚆 इतना कीजिये की लोग...

"कैसे हो" से पहले "कहां हो" पूछे। 😀

#यात्रा #yatra2025 #yatra #travel #Barbigha #बरबीघा

        बस में बैठे - बैठे ही अपने कुछ प्रशिक्षुओ को Msg किये की हम बरबीघा आ रहे हैं, बरबीघा की खासियत यह रही हैं की वहां के कुछ लोगो का व्यवहार इतना अच्छा रहा और कुछ का इतना बुरा की किसी भी परिस्थिति में हम कभी भी बरबीघा को भूल नहीं पाए। कुछ प्रशिक्षु इतने उत्साहित हो गए की हमसे पूर्व ही वो हटिया मोड़ पर आ गए थे। हमने सभी को रामस्वरूप के रसगुल्ले की दुकान के पास रुकने को बोले। ऐसे भी बरबीघा में रहने के दरम्यान सबसे ज्यादा मुझे कोई चीज पसंद था तो वह डोवाडीह का पेड़ा के बाद रामस्वरूप का रसगुल्ला ही था। सभी से भेंट मुलाकात के बाद जब रसगुल्ले की पैकिंग कराने लगे तो दुकानदार ने पूछा कि - सर, पुरे बरबीघा में बांटना है क्या? मैंने कहां - पूरे बरबीघा में तो नहीं लेकिन कुछ में जरूर।☺️ उसके उपरांत जितने भी प्रशिक्षु आए थे सभी को एक-एक पैकेट दिया तो वह मना करने लगे। मैंने उनसे कहा कि रख लीजिए ऐसे भी 03 साल बाद बरबीघा में आए हैं अब पता नहीं, कब दोबारा आने का मौका मिले और आप सभी से मुलाकात हो और ऐसे भी आप में से कोई भी, कभी भी पटना आइयेगा तो हमारे यहां स्वागत💐 है उस समय हिसाब-चुकता कर दीजियेगा, इसमें क्या है। सभी को विदा करने के उपरांत फिर राकेश सर को कॉल किये। राकेश सर और सर्वेश सर भी बरबीघा में ही रहते है। दुबारा पुन: रामस्वरूप के रसगुल्ले की दूकान में गये, इस बार उसने पूछा - अब क्या हुआ सर ? मैंने मुस्कुराते हुए कहां - 02 पैकेट और पैक कर दीजिये। उसने पूछा - 500 - 500 ग्राम ही ना ? 

मैंने कहां - हां, हां उतना ही जितना पहले किये थे।

अबकी बार उसने मुझे ऐसे देखा की जैसे पूछ रहा हो भाई !!! इतना स्वीट कौन पैक कराता है।

मैंने भी उसे जवाब दिया - बिक्री आप ही की बढ़ रही है ना!!!

       हटिया मोड़ से फिर राकेश सर के यहां गए उन्होंने भी भव्य स्वागत💐 किया, आखिरकार सिवान के जो ठहरे!!! उन्हें पता है कि सिवान वालों का स्वागत कैसे किया जाता है। "काश !!! बरबीघा में भी कुछ लोगो को ये बात पता होती।" राकेश सर से घंटो बातचीत हुई, सीवान से शेखपुरा पर वार्तालाप हुई। तभी अचानक से ध्यान आया की शेखपुरा के ही एक प्रशिक्षु ने बस में ही Msg किया था की उन्हें Ph.D से रिलेटेड कुछ इनफार्मेशन चाहिए ? मैंने उन्हें तुरंत कॉल किया और बोला की - आप हटिया मोड़ से थोड़ा सा आगे राकेश सर के रूम पर आइये हम यही है। 20-25 मिनट में वो मेरे सामने थे, सबसे पहले तो हम उन्हें शिक्षक बनने के लिए बधाई💐 दिये और उसके उपरांत Ph.D, सेमीनार, पेपर प्रेजेंटेशन पर भी बाते हुई। चूँकि ये बाते और लम्बी चलती लेकिन मुझे सर्वेश सर के यहाँ भी जाना था इसीलिये मैंने ये कहते हुये विदा लिया की आप कभी पटना आइये या फिर हम अक्टूबर में आ रहे है तब इस विषय पर बात करेंगे। जैसे ही हम राकेश सर के रूम से निकले तो देखा की सर्वेश सर सामने से बाइक🏍️ से आ रहे है। सर्वेश सर के यहां भी एकाध घंटा रुके उस समय तक 07:00 बजने वाला था। हमने एवं राकेश सर ने प्लान बनाया था की 08:00 बजे के बाद ही तिलक फलदान में चलेंगे क्योंकि बरबीघा के रीती-रिवाजों से मेरे साथ-साथ वह भी वाफ़िफ थे। ऐसे भी हमने हमेशा से कोशिश यही की है की मगध के एरिया में होने वाले शादी समारोहों में सम्मिलित न हो क्योंकि अभी तक मैंने जितना भी फंक्शन अटेंड किया है सभी का अनुभव बहुत खराब😢 रहा है। अभी कुछ दिन पहले मुंगेर गए थे, अपने एक प्रशिक्षु के शादी में उसका अनुभव ऐसा रहा की उस पर पूरी एक लम्बी सी कहानी लिखी जा सकती है। मैंने वो अनुभव अपने एक मित्र जिनका ससुराल मुंगेर ही है जब उनसे साझा किया तो वो बोले की सर, मुंगेर में वैसा ही होता है। आप को अजीब लगा होगा क्योंकि आप उसके अभ्य्यस्त नही है। खैर, हम अपने पुराने बरबीघा वाले अनुभव से डरे हुए थे अपने इस प्रशिक्षु का जब शादी का कार्ड प्राप्त हुआ तो संक्षेप में उसे मुंगेर वाली कहानी बताये तो उसने कहां की सर यहां ऐसा कुछ नही होगा। मैंने कहां - मुझे ऐसे कुछ दिक्कत नही है लेकिन कुछ समय के लिए लगता है हम क्यों ही आ गए।

खैर !!!

यहां का अनुभव कैसा रहा ये तो आप को आगे पता चल ही जायेगा लेकिन ऐसा समझिये की मेरा जो पूर्वानुमान था वो सही रहा।

यहां, मै एक चीज स्पष्ट करना चाहता हूँ की एक कलाकार होने के नाते मैं सभी की संस्कृती एवं उनके विश्वास की बहुत आदर करता हूँ लेकिन एक कलमकार होने के नाते मेरा फर्ज बनता है की उन सभी बातो को लिखूं जो की मानवता के नाते मुझे अच्छी नही लगी। ये हो सकता है की वो किसी के अपने रीती-रिवाज हो लेकिन फिर भी...

 सर्वेश सर के रूम से 8:00 PM में निकले और पुन: रामस्वरूप के दुकान पर गए। वहां पर मेरा परिचय कराते हुए सर्वेश सर ने कहा - यह निफ़्ट के प्रोफेसर हैं, पटना से आये हैं और यें आपकी मिठाई निफ़्ट के प्रोफेसर लोग खाएंगे। पहले तो वो अपना कार्य बहुत आराम से कर रहा था लेकिन जैसे ही सुना "निफ़्ट के प्रोफेसर" उसके कान खड़े हो गए। वो दुकानदार जो शाम से मुझे मिठाई लेते देख रहा था उस समय ऐसे देखा कि जैसे उसे विश्वास ही ना हो और उसे विश्वास दिलाने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। फिर उसने पूछा 500 ग्राम ही पैक कर दें ना? मैंने कहा - नहीं नहीं आधा किलो नहीं, कम से कम 02 किलो, क्योंकि पटना लेकर जाना है। वह  मन-ही-मन सोचने लगा की काश ऐसे कस्टमर रोज मिलते। फिर मुझसे बोला - सर यदि आपको दुबारा आना हो ना तो पहले कॉल कर दीजियेगा हम पैक कर के रखेंगे। हमने कहां - हाँ, हाँ जरूर 👍🏻 और आगे कहां कि अच्छी चीजे बरबीघा को हमेशा प्राप्त नहीं होती है लेकिन आप अपना व्यवहार सही रखिए तो वक्त-बेवक प्राप्त होती रहेगी। वहां से पुन: हम राकेश सर के यहां गए।

      08:30 में राकेश सर के साथ उनके स्कूटी से निकले मैंने किसी असुविधा से बचने के लिए पहले ही लोकेशन मंगा लिया था क्योंकि मुंगेर में मुझे बहुत परेशानी हुई थी, ट्रेन से उतरने के बाद कोई कॉल ही नही उठा रहा था और ना ही उसने मुझे किसी और का नम्बर दिया था बड़ी मुश्किल से पता पूछते-पूछते रात के 11:00 बजे पहुंचे थे। मेरे पास Mirror Less कैमरा, बैग, सबकुछ था और जमालपुर की वो सुनसान गालियां जिसमे ऑटो वाले ने भी जाने से मना कर दिया था। मुंगेर को City of Gun🔫कहते है ऐसा सूना था उस दिन अनुभव भी किया। खैर!!! यहां पहुँचने में दिक्कत नही हुई। मुझे लग रहा था की तिलक होगा तो बहुत भीड़-भाड़ होगी और बहुत से साईं कॉलेज के लोग एवं प्रशिक्षु होंगे लेकिन मैं गलत था, यहां तो उतने लोग भी नही थे जितना की हमारे यहां केवल रिश्तेदार हो जाते है। मुझे लगा की लोग कम है तो शायद व्यवस्था अच्छी होगी क्योंकि ज्यादा लोगो में आप अच्छी व्यवस्था नही कर पाते। हम जब द्वार पर पहुंचे तब तिलक चढ़ाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी। सामने कुर्सी पर कुछ लोग बैठे हुये थे संभवत: सभी लड़की पक्ष वाले थे उनके स्वागत की प्रक्रिया चल रही थी मुझे यह देख कर अजीब लग रहा था की एक व्यकित उन कुछ लोगो में भी कुछेक की पहचान कर रहा था जो की लड़की पक्ष वाले थे और उन्हें लड़के पक्ष की तरफ से आए लोग उन्हें नाश्ता करा रहे थे। चूँकि हमे और राकेश सर को तो कोई पहचान नही रहा था इसीलिये वो नाश्ते की टोकरी हमारी कुर्सी के पास आई तो सही लेकिन रुकी नही। मैंने राकेश सर को बोला - अजीब लोग है सर, इन्हें सोचना चाहिए कोई भी यहां आया है तो ऐसे थोड़े आया है। राकेश सर ने कहां - सर, आपको हम क्या बोल रहे थे ? वो किस्सा याद नही है जब हम लोग अपने एक स्टाफ के सिस्टर की शादी में गये हुए थे ये तो फिर भी प्रशिक्षु है और ऊपर से वो यहां नही है। 

मैंने कहां - बात तो सही हैं।

राकेश सर ने कहां - सर चलते है।

मैंने कहां - उतनी दूर से आए है तो एक बार चेहरा दिखा कर और गिफ्ट🎁 जो लाये है उसे देकर के चलते है। फिर मैंने मंच के पास जा कर के उस प्रशिक्षु से मिले तो उसने कहां की - सर कुछ देर रुकिये ना!!!

फिर हम एवं राकेश सर उसके गाँव का परिभ्रमण किये। मुझे गाँव घूमना बहुत पसंद है बरबीघा का यह गाँव भी अच्छा लगा। एकाध घंटे बाद पुन: हम वापस पहुंचे क्योंकि गिफ्ट🎁 मेरे पास ही था वो उस समय लिया नही था। जैसे ही हम दुबारा वहां पहुंचे एक छात्र ने आकर बोला - आप विश्वजीत सर है ??? 

मैंने कहां - हां

तब उसने पहले उत्साह से हाथ मिलाया फिर सॉरी-सॉरी बोलते हुए पैर छूने की कोशिश की तो मैंने मना किया और बोला की सॉरी मै आप को पहचान नही पाया। तब उसने कहां की, सर हम आप से ऑनलाइन पढ़े थे, कोविड के समय जब क्लास ऑनलाइन चलता था। उसने आगे बताया की वो अभी बिहार सरकार में शिक्षक है। मैंने उसे बधाई 💐 एवं शुभकामनाएं दी। मालुम चला की वो भी इसी तिलक में आया है। मुझे अच्छा लगा की चलो कोई तो मिला। मैंने सामने देखा की सभी लोग निचे जमीन पर बैठ कर खाना खा रहे हैं। ये मेरे लिये अजीब नही था, अजीब इस बात के लिए लगा की वो लोग ऐसे ही बैठे थे यानी की कुछ बिछाया नही गया था कुछ लोग अपना चप्पल उतार कर उस पर बैठे तो कुछ चुका-मुका बैठे थे। मुझे लगा की भाई किसी को खाना तो अच्छे से खिलाते। तभी वो प्रशिक्षु जिसका तिलक था वो दिखा मैंने उसे रोककर वो गिफ्ट🎁 दिया जिसे 02 घंटे से लेकर घुम रहे थे। एक फोटो क्लिक करवाई और बोले की ठीक है हम निकल रहे है। वो फिर बोला - सर कुछ देर रुकिये ना!!! मैंने कहां - आरे!!! दो घंटे से रुके हुये है, तुम्हारा पूरा गाँव घुम लिए, अब कितना रुके। तब वह बोला - आप नाश्ता भी नही किये। मैंने मुस्कुराते हुये कहां - कोई बात नही, आप के तिलक में शामिल हो गए, ये काफ़ी है मेरे लिए। फिर वो किसी को बुलाया और उसे कुछ समझा कर फिर हमें बोला - सर आप खाना खा लीजिये। मैंने सामने देखा अभी भी लोग उसी तरह खा रहे थे। लेकिन वो मुझे दूसरी तरफ ले गए जहां दो जगह अलग-अलग व्यवस्था की गई थी। एक उनके लिए जो तिलक ले कर के आए थे और दुसरा संभवतः हमारे जैसे लोगो के लिये। और मेरा ये अनुमान बिल्कुल सही था। पत्तल में पुड़ी, एक सब्जी और रसगुल्ला आया। मुझे लगा और कुछ होगा या आ रहा होगा लेकिन लोगो ने खाना शुरू कर दिया, बाकियों को देखकर मैंने भी। चूँकि पूड़ी बहुत हार्ड हो गया था तो मैंने पूछा की चावल भी हैं ? किसी ने कोई जवाब नही दिया और फिर पुड़ी ही लेकर के आया। मैंने बोला की भाई पूड़ी नही चाहिए तब वो पुन: रसगुल्ला लाया। मुझे ये माजरा समझ में नहीं आ रहा था। फिर राजेश सर ने मुझे इशारों में बताया की यहां के लोग शादीयों में रसगुल्ला खाने ही आते है आरे!!! शादी छोड़ दीजिये किसी के यहां यदि दाह-संस्कार में भी जाते है तो सब रसगुल्ला ही खाते है। ये बात तो मुझे मालुम थी क्योंकि जब साईं कॉलेज के उप निदेशक के पिता जी की मृत्यु हुई थी तो उन्होंने बहुत ज्यादा रसगुल्ला ले कर के गये थे। ये वहां के कल्चर में शामिल है लेकिन मुझे उस समय अजीब लगा था और आज भी लगता हैं। तभी अचानक वह प्रशिक्षु वहां आ गया जिसके तिलक में हम आयें थे वो भी निफ्ट से छुट्टी लेकर के। हम सोच रहे थे अपना कोई कार्य रहता है तो हम जल्दी छुट्टी नही लेते खैर!!! यहां आ गए तो आ गए। जब उसने देखा की मेरी थाली खाली है वो माजरा समझ गया फिर आस पास खड़े लोग जो हमे खाना खिला रहे थे उनसे बात किया और चला गया। कुछ देर उपरांत दो लोग पुलाव और दाल ले कर के आए उस समय तक सभी लोग लगभग खाना समाप्त कर चुके थे मेरे मना करने के वावजूद भी उसने मेरी थाली में रख दिया फिर बाकियों के भी जो मेरे टेबल पर थे उन्हें दिया और वापस चला गया। मेरे आस-पास के टेबल को उसने देखा तक नही। अब मुझे पूरी कहानी समझ में आ चुकी थी। दरअसल बात यह था की वहां तीन लेवल की व्यवस्था थी और हम दुसरे लेवल में थें। (इस बात को हम कन्फर्म नहीं कर रहे हैं लेकिन हमें ऐसा महसूस हुआ, शायद हम गलत भी हो सकते हैं।)

      उसके उपरांत, अब हमें वहां रुकना अच्छा नही लगा और राकेश सर के साथ निकल गए तभी उसी प्रशिक्षु का कॉल आया। मैंने कॉल उठाया और उनका नाम लेते हुए बोला - जी बोलिए ? उधर से आवाज आई - हैल्लो हम ना, उनके भगीना बोल रहे है मामा बोले है पूछने के लिए की आप कहां है ?

मैंने उससे कहां - अपने मामा को बोल दीजियेगा की हम बरबीघा जा रहे है टेंशन ना ले, सुबह में मेरी बस हैं। बरबीघा रात के 11:30 तक आ चुके थे। फ्रेश होने के उपरांत राकेश जी ने बेड वगैरा सेट कर दिया और बोले की सर आप आराम कीजिये तब तक हम मच्छरदानी ले कर के आ रहे है। उस समय मौसम एकदम सदाबहार था और राकेश जी के रूम में उपलब्ध खिडकियों से बहुत अच्छी हवा आ रही थी। मेरा मन तो ये गाना गुनगुनाने लगा -


आज मौसम बड़ा बेईमान है 

बड़ा बेईमान है आज मौसम 

आने वाला कोई तुफान है 

तूफान है आज मौसम 

 

 मेरा यह गीत सुन के तुफान🌊 तो बाद में आया उससे पूर्व मच्छरो🦟 का झुण्ड आ पहुंचा मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की बरबीघा में किसी ने हमारा पूरे दिल💝 से स्वागत किया तो वह थे वहां के मच्छर 🦟. पंखा के चलने के बावजूद भी वह हमसे आ-आ कर ऐसे चिपक रहे थे जैसे की मानो कोई वर्षो पुराना कुम्भ में बिछड़ा मित्र उन्हें मिल गया हो। ऐसे राकेश जी ने सेवा सत्कार में कोई कमी नहीं की। हम बस यूं ही सोच रहे थे यह सब तो उसे करना चाहिए जिसके बुलावे पर हम आज बरबीघा आए हुये हैं। खैर!!! बरबीघा मेरी कर्म भूमि तो अवश्य रही है लेकिन इसने जितना हो सके उससे भी ज्यादा परेशान करने की कोशिश की हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हम बहुत बड़े सौभाग्यशाली हैं कि मुझे ऐसा कर्म भूमि मिला ताकि जिंदगी में आने वाले किसी भी मुसीबत या बुरे समय को हम यह सोचकर बिता सके की जो भी हो बरबीघा से तो अच्छा ही है।

 राकेश जी ने उन मच्छरों के हमलों से बचने के लिए मच्छरदानी लगा दिया था लेकिन फिर भी कुछ मच्छर अवैध रूप से प्रवेश कर ही गए थे। और रह-रह करके अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। मैं ने भी सर्जिकल स्ट्राइक कर कर के सभी को खत्म किया। लेकिन कहानी अभी यहां खत्म नहीं हुई थी हमारे गाने का जो दूसरा अंतरा था यानी कि आने वाला कोई तूफान है वह तो अभी बाकी था। उस रात बरबीघा में रात के लगभग लगभग 12:00 बजे  बहुत तेज हवाएं चलने लगी और बारिश भी हुई। मुझे अपनी कविता की एक पंक्ति याद आने लगी।


तुम्हारी ये जुल्फें👰🏻‍♀ अगर खुल गईं तो।

गिरेगी कहीं बर्फ☃️ तो कही बरसात🌧️ होगी।।


चुराओ न मुझसे नज़र इस तरह से।

मुहब्बत💗 की बदनाम ये जात होगी।।

 अभी कुछ देर पहले जो खिड़कियों हमें सुकून दे रही थी अब वही परेशान करने लगी क्योंकि उसमें दरवाजे नहीं थे और बारिश की बूंदे मेरे तन-मन को सराबोर कर रही थी। गनीमत यह रही की बारिश ज्यादा देर नहीं हुई या यूं कह सकते हैं की हल्की हुई। जिस वजह से लगभग 12:40 तक मुझे नींद लग गया। ठीक 01:00 मेरे फोन की घंटी बजी, चुंकि मैं सुबह 04:00 बजे का अलार्म लगाया था तो लगा कि इतनी जल्दी सुबह हो गई क्या??? फोन देखा तो मालूम चला कि कॉल उसी प्रशिक्षु का आ रहा है जिसके तिलक, फलदान में हम आए हुए थे। फोन उठाते ही उसने सबसे पहले सॉरी सर😞 तीन बार बोला। मैंने पूछा कि - क्या हुआ ? 
जो हुआ उसके लिए सॉरी, आप खाना नहीं खा पाएं, आप नाश्ता नहीं कर पाएं
मैंने उससे कहा कि - हम खाना नाश्ता के लिए थोड़े आए थे, बस आप सभी से मुलाकात करनी थी। It's enough, No worry.
...कुछ देर उससे बात करने के उपरांत फिर फोन रख दिए। मुझे यह देखकर अच्छा लगा एक कम से कम इसे 03-04 घंटे में ही Realise हो गया और उसने Apologize के लिए Call भी कर दिया, मुंगेर के प्रशिक्षु ने तो 24 घंटे के बाद कॉल किया था वह भी तब जब उसने मेरा स्टेटस देखा कि मैं मुंगेर के विभिन्न जगहों का भ्रमण कर रहा हूं। जबकि मैंने उसे पहले ही बताया था कि मैं तीन दिन मुंगेर में रहने के बाद वापस आऊंगा। सुबह में 04:00 बजे उठ गए थे, फ्रेश वगैरा होने के उपरांत हम हटिया मोड़ पर आयें। सामने कुल्हड़ के चाय की दुकान दिखी। मुझे पुन: अपनी कविता की यह पंक्तियां याद आने लगी।

लड्डू की कुल्हड़ की चाय हो,
झंडा चौक के पास स्थित पनीर की दुकान हो तुम।
ऐ बरबीघा मेरी पहचान हो तुम।। -२

 बिना विलम्ब किए सबसे पहले चाय☕ का स्वाद😋 लिये। और उसके उपरांत पटना के लिए बस का इंतजार करने लगे। बरबीघा में कोई चीज यदि समय पर आती है तो वह है वहां की बस 🚌

On lighter🔦 Note,

झूठी खाई थी कसम वो निभाई नाही,
सैलरी तो आज तक कभी समय पर आई नाहीं।😀

कटती रही जवानी बस इंतजार में,

तेरी इस ख़ुबी को आज तक मैंने किसी को बताई नाहीं।


     शेखपुरा से ही वह पूरी बस भर करके आई थी, यानी बरबीघा जाने का सफर जितना रोमांचकारी और आनंदपूर्वक रहा आने का उतना ही कष्टदायक। ऐसे भी यें मेरा पुराना अनुभव हैं तो मुझे इसका बुरा नहीं लगा। ...और बस में सबसे अंतिम सीट पर बैठे उछलते-कुदते, गिरते-पड़ते आख़िरकार पटना पहुंचे। रूम पहुंचने के उपरांत 09:00 बजे तक अपने कॉलेज भी चले गए थे। नींद तो बहुत आ रही थी लेकिन उसे त्याग कर इस आर्टिकल को पूरा✍🏻 करते रहे।