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बुधवार, 30 अप्रैल 2025
प्रियतम तुम्हें पिलाने को लेकर आया मधुबला।
सोमवार, 21 अप्रैल 2025
असंभव है।
तुमसे मिलना भी असंभव है,
ना मिलना भी असंभव है।
तुम्हें यादों में बुलाकर,
गुफ्तगू करना भी असंभव है।
हमें याद हैं वो पल,
जिसमे तुम कहती थी।
सनम आपसे दुर हो के,
एक पल जीना भी असंभव हैं।
तुमसे मिलना भी असंभव...
हम इस मोड़ पर आकर खड़े हुए हैं जानम!!!
तुम्हें पास बुलाना भी असंभव हैं।
तुमसे दुर रहना भी असंभव हैं।
असंभव ही असंभव हैं,
अब प्रत्येक कार्य असंभव हैं।
जो तुम नहीं हो जीवन में,
जीना/मरना भी असंभव हैं।
तुमसे मिलना भी असंभव...
एक कार्य तो तुम कर ही सकती हो,
असंभव से इस कार्य को अब संभव कर ही सकती हो।
मुझे तो यक़ीन हैं अब भी,
इस नामुमकिन को मुमकिन कर ही सकती हो।
लेकिन हमें लगता है यह सब है व्यर्थ की बातें,
व्यर्थ की चिंता व्यर्थ की जज्बाते।
होना है जो वही तो होगा,
फिर हम क्यों करें बेतकल्लुफ की बातें।
लेकिन असंभव को हम त्याग नहीं सकते,
इसे संभव करने को करते रहते हैं।
दिन-रात हम फरियादें,
किसी दिन मुकम्मल होगी हमारी ये सारी जज्बातें।
उस दिन तुमसे मिलना भी संभव होगा,
पास आना भी संभव होगा।
तुम्हें यादों में बुलाकर,
गुफ्तगू करना भी संभव होगा।
विश्वजीत कुमार✍️