सोमवार, 7 जुलाई 2025

किस्से आर्ट कॉलेज के...

तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई?


तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई?, तुम्हें नहीं आना चाहिए था, हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते हैं? अभिषेक(बदला हुआ नाम) अचानक से नींद में हीं बड़बड़ाने लगा। मैं कुर्सी पर बैठा अपनी डायरी लिखने✍🏻 में व्यवस्त था अचानक से चौक गया और फिर पूछा - अभिषेक!!! अभिषेक!!! क्या हुआ? अभिषेक ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह नींद में था। अभिषेक हमसे आर्ट कॉलेज में 03 साल जूनियर था लेकिन मेरे ही हम उम्र था क्योंकि वह ग्रेजुएशन करने के बाद यहां नामांकन लिया था। महाविद्यालय के शुरू के दिनों में तो अभिषेक से उतनी बातें नहीं होती थी लेकिन फिर धीरे-धीरे बातें होने लगी क्योंकि उसे भी मेरी तरह यूट्यूब पर वीडियो बनाना, जगह-जगह घूमना और मूवी देखने का बहुत शौक था केवल उसे कविता लिखने✍🏻 का शौक नहीं था लेकिन कविता की बारीकीयों को अच्छे से समझता था। कल सुबह उसने मुझे कॉल किया और बोला- भैया मेरा मन ना!!! आज बहुत विचलित हैं, कुछ करने को मन नहीं कर रहा हैं रात में भोजन भी नहीं किये थे और सोये भी नहीं। उसकी बहुत याद आ रही हैं भैया!😥... और फिर वो रोने लगा। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो लगातार रोते रहा। मैंने उससे कहां - अभिषेक भाई, आप मेरे रूम पर आओ, आज का लंच हम साथ ही करते हैं। रविवार होने की वजह से मेरे कॉलेज की छुट्टी थी और उसकी भी। वो बोला - ठीक हैं भैया, एकाध घंटे में हम आ रहे हैं। हम अमुमन रविवार को चिकन बनाते है लेकिन अभिषेक नॉनवेज नही खाता है इसीलिये उस दिन खीर, पुरी एवं मटर-पनीर बनाये थे। अभिषेक नींद में बड़बड़ाने के बाद पुन: सो गया था। खाना बनाने के उपरांत हम स्नान किये और उसके बाद उसे जगाए की खाना खा लो। उसे खीर बहुत पसंद है मुझे उस दिन मालूम चला। ऐसे उससे कभी बाते ही कहां हुई थी। वो तो इधर एक दो महीनों से मेरी कवितायें पढ़कर उसे लगने लगा था की हम भी प्यार🥰 में धोखा खाये हुये है। तभी इतनी रोमांटिक एवं दर्दभरी कविताएं लिख पा रहे है। ऐसे मुझे अनुभव तो नहीं लेकिन सुना है की जो लोग प्यार में होते है उन्हें हर एक चीज़ ऐसे लगती है जैसे की वो उन्ही के लिये बनाई गई हो। खाना वगैरा खाने के उपरांत वो बोला की भैया चलिए ना!!! मूवी देखने चलते है। मुझे हॉरर, कॉमेडी एवं सस्पेंस टाइप की फिल्में ज्यादा पसंद है और अभिषेक को रोमांटिक टाइप। अब कन्फ्यूजन यह हो रहा था कि कौन सी मूवी देखी जाए, आखिरकार मुंज्या फिल्म पर सहमति बन गई। फिल्म के शुरुआती सीन में ही कुछ लव ट्रेगेल को दिखाते हुए फिल्म की शुरुआत हुई, उसके उपरांत कॉमेडी, हॉरर एवं सस्पेंस पर पूरी तरह बेस्ट यह फिल्म रही।

      फिल्म देखने के उपरांत हमने डिनर बाहर ही किया, चुंकि अभिषेक का रूम सिनेमा हॉल के नजदीकी था तो वह बोला कि भैया आप रात में मेरे यहां ही रुक जाइए ऐसे भी अकेले मुझे रूम में डर लगता है। मैंने उसकी बात मान ली और रात में उसके यहां ही ठहरा। बातचीत में मैंने यूं ही उससे पूछ लिया, अभिषेक तुम दिन में सोते समय कुछ बड़बड़ा रहे थे। जैसे- तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई? और पता नहीं क्या-क्या बोल रहे थे बात क्या है? वह बोला - कुछ नहीं भैया आप नहीं समझोगे!!! ये बहुत गहरी बात है। फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोला- क्या आपने कभी किसी से प्यार🥰 किया है? मेरे लिए इसका जवाब बहुत साधारण था नहीं। लेकिन उस दिन मैंने उसे गलत जवाब दिया क्योंकि मुझे लगा कि इसके मन की कुंठा को खोलने का यही एक उपाय है। लेकिन उसे मेरे जवाब पर यकीन नहीं हुआ। फिर मैंने उसे बताया कि अच्छा बताओ जितनी कविताएं आप पढ़ते हो वह ऐसे थोड़े ही आती है, प्यार में गहरा डूब कर बाहर आने के बाद शब्द फुटते हैं। अब वह थोड़ा इंटरेस्ट लेने लगा था फिर उसने बोला आपको भी प्यार में धोखा मिला है? मैं थोड़ा उदास होते हुए कहा - मिला तो था। अच्छा भैया कौन थी वह? अबकी बार चहकते हुए अभिषेक ने पूछा था। फिर अपने आप बोला रहने दीजिए क्या फायदा बता कर, जिसको जाना था वह तो चला गया दुनिया के सामने उसकी कहानी को बता कर क्या फायदा? मैं कुछ नहीं बोला बस चुपचाप सुनता रहा। अभिषेक लगातार बोले जा रहा था। उसने आगे बताया। (यहां मैं अभिषेक की जुबानी ही प्रस्तुत कर रहा हूं जैसा उसने मुझे बताया था।)

 हम तो फिदा हो गए थे उनकी तिरछी निगाहो पर,

 हमें क्या पता सनम टेढ़ा ही देखते हैं।

     अभिषेक के इस शेर पर मुझे हंसी तो आई लेकिन मैंने हंसा नहीं क्योंकि उसने सीरियसली इसे कहा था। उसने आगे बताया- मुझे स्कूटी चलाने नहीं आती थी और ना ही मेरे घर पर था लेकिन उसको धूप में स्कूल जाते देखकर मेरा मन मचल उठता था। पापा को किसी तरह तैयार करके स्कूटी खरीदे और उसको रोज स्कूटी से विद्यालय छोड़ने जाते। वह देखने में सुंदर नहीं थी लेकिन प्रेम चेहरा कहां देखता है वह तो बस हो जाता है, जैसे मुझे हो गया था। बस दिन-रात उसी का ख्याल चलते रहता। यदि एक घंटा भी उससे बात ना हो तो लगता था कि क्या गुम हो गया है। मैंने अपना +2 (इंटरमीडिएट) पूरा कर लिया था और ग्रेजुएशन में था लेकिन वह अभी +2 में गई ही थी। घर से मैं तो यह बोलकर निकलता की अपने कॉलेज जा रहा हूं लेकिन उसको छोड़ने उसके विद्यालय चला जाता और छुट्टी होने से पूर्व उसके विद्यालय पहुंचकर उसको रिसीव करता और घर पहुंचाता था, उसके उपरांत अपने घर जाता। उसको विद्यालय से जो भी असाइनमेंट मिले रहते उसे रात में बैठकर पूरा करता। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं +2 की पढ़ाई फिर से कर रहा हूं। मेरे पूरे 02 साल की दिनचर्या यही रही। रोज सुबह स्कूटी से उसको रिसीव करना विद्यालय पहुंचाना और फिर शाम में वापस लाना। कभी-कभी वह स्कूल से बंक मारती और हम सिनेमा देखने चले जाते तो कभी पार्क में घंटो बैठ बातें करते। उसका +2 तो बहुत अच्छे से पूरा हो गया लेकिन मैं ग्रेजुएट नहीं हो सका क्योंकि मैं उसके ख्यालों में इतना खोया रहता कि मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मैं भी ग्रेजुएशन कर रहा हूं और अपना सारा एग्जाम छोड़ते चला गया। इसी दरम्यान एक दिन उसके भाई ने हमदोनो को एक पार्क में देख लिया और उसकी और मेरी जमकर पिटाई कर दी मुझे यह देख कर आश्चर्य लग रहा था की जिसे कल तलक दोस्त कहते थे वो भी उस दिन मुझे पीट रहे थे। उस दिन शाम को मैं घर नहीं गया और उसी मंदिर के प्रांगण में रात बिताई जिसके प्रांगण में कभी हमने शादी करने का फैसला किया था। मुझे उस समय बहुत आश्चर्य हुआ तब मैंने देखा की सूरज की किरणों के साथ वो भी मंदिर के प्रांगण में आई उसका चेहरा एवं आँखे सूजी हुई थी ऐसा लग रहा था रातभर वो सोई नहीं है और चोट के निशान अभी भी दिख रहे थे। आने के साथ ही सबसे पहले उसने मुझसे पूछा - शादी करोगे?

मैं तो आश्चर्य से उसे देखते ही रह गया। मैं कुछ बोलता है इससे पहले उसने फिर पूछा - शादी कर रहे हो या नहीं।

फिर उसने मेरा जवाब सुने बिना ही हाथ पकड़ कर के सीधे मंदिर के गर्भ-गृह में लेकर गई और मेरे हाथ में सिंदूर का डिब्बा देते हुए बोली - मैं नहीं चाहती कि मेरे भैया या पापा आपको फिर कभी यूं मारे-पिटे।

मुझे भी होश ठिकाना नहीं था, मैंने सिन्दूर लेकर उसकी मांग भर दी। वह फूट-फूट कर रोने लगी और मेरे गले लग गई। फिर रोते-रोते कहां चलिए हम यहां से भाग चलते हैं नहीं तो मेरे एवं आपके घर वाले हम लोगो को नहीं छोड़ेंगे मैंने अपने घर से पूरा बैग भरकर के लाया है, साथ में कुछ रूपये भी रखे है और माँ की ज्वेलरी भी जो उसने मेरी शादी के लिए बनवाये थे। हमें कोई दिक्कत नहीं होगा। मुझे पता नहीं क्या हो गया था, हम भी उस दिन उसकी बातों में पूरी तरह आ गए थे। वह जैसा कह रही थी हम बस वैसा ही किये जा रहे थे। उसका हाथ पकड़ कर के अभी मंदिर की सीढ़ियों से उतर ही रहे थें कि सामने देखे कि मेरे पापा एवं गांव के कुछ लोग आ रहे हैं। वह हम दोनों को देखकर एकदम गुस्सा हो गए। एक तो हम रात भर वह हमको ढूंढे थे क्योंकि हम घर नहीं गए थे और मोबाइल भी पार्क में हीं छूट गया था। मुझे देखते ही उनका गुस्सा और सातवें आसमान पर पहुंच गया क्योंकि मेरे साथ वो भी थी और पार्क वाला किस्सा उनको शाम में हीं मालूम चल गया था। पहले तो वह रात में मेरे घर आने का इंतजार किये जब हम नहीं पहुंचे तो वह ढूंढते-ढूंढते अभी मंदिर पहुंचे थे। तेज कदमों से चलते हुए वह हमारे पास आए और एक जोरदार थप्पड़ दे मारा। दिन में तारे दिखना यह कहावत मैंने सुनी थी उस दिन अनुभव भी किया। थप्पड़ लगते ही मैं जमीन पर गिर पड़ा वह मुझे उठाने की कोशिश करने लगी, पापा ने उसका बाल पकड़कर साइड किया और मुझे दो-चार लात और जड़ दिये मैं दर्द से कराह उठा। तब तक उनके साथ आए कुछ लोगों ने बीच-बचाव किया और उन्हें पकड़कर साइड किया फिर बोले-  आरे!!! आरे!!! रहने दीजिए, लड़का है। पापा का गुस्सा अभी खत्म नहीं हुआ था वह पुन: मुझे डांटते हुए बोले- लड़का है!!! पूरे खानदान का इज्जत मिट्टी में मिला दिया, हमारा नाक कटवा दिया। मम्मी भी रोते हुए बोली - बेटा, तुम्हें भी यही मिली थी, शादी करने के लिए। अब हम उन्हें क्या समझाते कि, जब नैन मिला चुड़ैल👹 से तो परी🧚🏻‍♀️ किस काम की। लगता है हमारी यह मन की बातें किसी ने सुन ली और आसपास खड़े लोग इसी बात की चर्चा करने लगे। तब तक उसके पापा-मम्मी भी आ चुके थे। जब उन्होंने सुना कि हमारी बेटी के सांवले होने की चर्चा चल रही है तो इतना जोर से गुस्सा किया कि सभी शांत हो गए। फिर उसने मेरी मम्मी के पास आकर समझाते हुए कहां - देखिए बच्चों ने जो किया सो किया अब हमें भी इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। मेरी मम्मी कुछ बोलती उससे पूर्व पापा चीखते हुए कहें- नहीं, बिल्कुल नहीं हम इसे बहु के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। धीरे-धीरे उस मंदिर में बहुत भीड़ बढ़ गई थी सभी लोगों के लिए यह एक मजेदार विषय था। आपस में चर्चा कर रहे थे फलना का बेटा ,फलना  की बेटी से... अचानक से पापा उठे मेरा हाथ पकड़े और खींचते हुए घर की तरफ लेकर चल दिये, पीछे-पीछे मम्मी और घर के सभी सदस्य भी आ गए।

            घर जाते ही मैं सबसे पहले सोने चला गया, एक तो रात में सोए नहीं थे और ऊपर से पूरा बदन दर्द कर रहा था। अर्द्धनिद्रा में ही मैंने सुना कि पापा एवं मम्मी के बीच में काफी देर तक इस बात पर बहस हो रही थी कि हमने सही किया या गलत। मम्मी मेरे लिए खाना लेकर आई और कई बार जगाने की कोशिस भी करी लेकिन मैं जानबूझकर सोता रहा। अगले दिन क्या देख रहे हैं कि मेरा सारा समान बैग में पैक किया जा रहा है। मैं कुछ समझा नहीं, मम्मी से सीधा पूछ लिया कि समान क्यों पैक किया जा रहा है? मम्मी कुछ बोलती उससे पहले पापा बोल उठे। तुम आज पटना जा रहे हो वहीं रह कर पढ़ाई करोगे, घर पर नहीं रहना है। मुझे एकदम से रोना😥 आ गया। पटना हम अकेले कैसे रहेंगे?, खाना कैसे बनाएंगे?, कपड़े कैसे साफ करेंगे? मैं एक-एक करके सभी परेशानियां अभी गिना ही रहा था कि तभी बीच में पापा बोले उठे। तुम अकेले नहीं रहोगे तुम्हारे मामा का लड़का भी पटना में रहता है तुम उसके साथ रहोगे वह सब कुछ कर लेता है। मैंने बेबस भरी नजरों से मम्मी की ओर देखा। वह भी पापा का साथ देते हुए बोली कोई दिक्कत नहीं होगा महीना में एक दो बार घर आते रहना। अब मैं भी उन्हें मनाने का हिम्मत छोड़ दिया और पटना आ गया। पटना में दिनभर रूम पर लेते रहते और यही सोचते रहते की पता नहीं वह कैसी होगी। मेरे साथ जो मेरे मामा का लड़का रहता था उसका नाम अंशु था। एक दिन अंशु ने पूछ लिया कि भैया आप इतना उदास क्यों रहते हैं? मैंने बोला - भाई तुम नहीं समझोगे। लेकिन वह हमसे ज्यादा समझदार निकला बोला कि हम सब समझते हैं, आपको भाभी की याद आ रही है। एक काम काहे नहीं करते उन्हें फोन दे आइये और फिर बात करते रहिएगा। मुझे अंशु के इस समझदारी भरी बातों पर हंसी भी आई और आश्चर्य भी हुआ। अक्सर पटना में रहने वाले बच्चे समझदार हो ही जाते हैं। मैंने उससे कहां - नहीं भाई, अभी घर नहीं जा सकते हैं अभी एक सप्ताह हुआ ही है पटना आए हुए। मुझे तो यह भी नहीं पता कि हम पटना क्यों आए हैं? और क्या करने आए हैं? अंशु बोला - फूफा जी तो बता रहे थे कि आपको आगे की पढ़ाई करनी है इसीलिए वह आपको मेरे पास भेज रहे हैं। ऐसे आपका ग्रेजुएशन पूरा हो गया है ना?

मैंने धीरे से कहां - नहीं 

अंशु ने कहां - आप कर तो रहे थे ग्रेजुएशन क्या हुआ?

अब हम उससे क्या छुपाते जो हकीकत था वह सब बयां कर दिये। उसको स्कूटी से कॉलेज छोड़ने से लेकर मंदिर वाला किस्सा विस्तार पूर्वक समझाएं। पूरी कहानी सुनने के बाद अंशु ने बोला - भैया भाभी की फोटो दिखाइए ना!!!

मुझे अचानक से ध्यान आया कि मैंने अपनी ड्राइंग बुक में उसकी कई सारी तस्वीरें बना रखी है उसी को निकाल कर अंशु को दिखाएं। वह बहुत ध्यान से एक-एक तस्वीरो को देख रहा था अचानक से वह बोला- जानते है भैया, पटना में एक कॉलेज है जहां पर ना यही सब-कुछ सिखाया जाता है। आप काहे नाही उसी में नामांकन ले लेते है ऐसे आपको पेंटिंग बनाने में मन भी लगता है। मुझे तो ऐसा महसूस हुआ की जैसे रेगिस्तान में दूर कहीं पानी की कुछ बूंदे दिखाई दे दी हो। तुरंत अंशु के मोबाइल पर आर्ट कॉलेज का एड्रेस सर्च किये और पहुंच गये वहां पर नामांकन लेने के लिए। इसे आप मेरी खुशनसीबी ही कहियें की इत्तेफ़ाक़ से उस समय आर्ट कॉलेज में एडमिशन के लिए फॉर्म आया हुआ था। फिर क्या था फटाफट फॉर्म ले कर के उसे फील करने के उपरांत जमा कर दिये। अब मुझे पटना में रहने के लिये एक बहुत बड़ी वजह मिल गई थी, हम यह सोच कर ज्यादा उत्साहित थे की अब उसकी फोटो और अच्छे से बना पायेंगे मेरे घर वाले भी बहुत खुश😊 क्योंकि मैंने नामांकन ले लिया था। चुंकि आर्ट कॉलेज में एडमिशन फ़ी बहुत नाममात्र ही लगता है फिर भी घर से एडमिशन के नाम पर पैसे मांगे और एक मोबाइल एवं सिम ख़रीदा फिर उसे चुपके से ले जा कर के उसे गाँव में दे आएं। अब हमारे बीच दूरियां कम हो गई थी, रोज शाम एकाध घंटा उस से बातचीत हो जाती और प्रत्येक शनिवार को हम पटना से गाँव चले जाते। इस दरम्यान मेरी उस से कई बार मुलाकाते हुई और हमने कई राते साथ में बिताया भी। उस दरम्यान मैं बहुत ख़ुश रहता तो सभी को लगता की, इसका मन पटना में लग गया है लेकिन हकीकत यह था की मेरा मन तो गाँव में ही लगता था। धीरे-धीरे साल बीतते गए और हमारा प्यार गहरा होते गया। इन तीन सालो में मालूम नहीं मैंने कितनी बार उसके एवं उसकी मम्मी का मोबाइल रिचार्ज किया। जब भी पटना से जाते भले अपने घर के लिये कुछ ना ले लेकिन उसके लिये गिफ़्ट एवं मिठाई लेना ना भूलते। अब वह मेरी बैचमेट बन चुकी थी क्योंकि +2 के बाद उसने स्नातक में नामांकन ले लिया था। किताब से लेकर पेन तक हर चीज़ हम उसे दिलाते। प्रत्येक शुक्रवार को कॉल आ जाता की आते समय अमुक-अमुक चीज़ लेते आइयेगा। हमारे पास भी पैसे नहीं होते थे फिर भी उसकी हर एक इच्छा को पुरा करते। उस दरम्यान स्टेशन पर बिकने वाले सेकंड हैंड कपड़े को खरीदकर हम पहनते लेकिन उसके लिये हमेशा कपड़ा मॉल से ही खरीदते। इतना बोलकर अभिषेक मौन हो गया फिर कुछ देर बाद बोला -

.....कोई इंसान ऐसा कैसे कर सकता है... भैया!!! इतना कहते कहते अभिषेक की आँखे पुनः नम हो गई। 

मैंने उसे पानी पीने के लिये दिया और पूछा - तुम दोनो की शादी हो गई थी ना, फिर क्या हो गया? घर वाले नहीं माने या...

मैं अपनी बात पुरी करता उससे पूर्व अभिषेक बोल उठा - धोखा!!!😡 वही दे गई। इतना बोल कर अभिषेक मौन हो गया। हम वहां से उठे और किचन में जाकर के अभिषेक की मनपसंद इलायची वाली चाय बनाने लगे। जबतक हम चाय बनाये अभिषेक अपनी जगह से हिला तक नहीं। मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था की कोई मूर्ति कमरे में रखा गया है। चाय वगैरा पीने के उपरांत वो थोड़ा सा हल्का महसूस कर रहा था। फिर बोला भैया हम अब सोने जा रहे है, रात बहुत हो गया है। कल सुबह विद्यालय भी जाना है। 

मैंने कहा - आपकी कहानी अभी पुरी नही हुई है।

अभिषेक कुछ देर बैठा रहा फिर धीरे से बोला -


 एक ख्वाहिश थी मेरी बस उसके साथ जिंदगी जीने की,

 वरना दिल तो कई बार साथ रहने से लोगों से अपने आप लग जाता है।

मैंने कुछ नहीं बोला, वह उठा और सोने जाने से पहले बोला - भैया सुबह का खाना बहुत बढ़िया👌🏻 बना था और Movie🎬 के लिये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद😊 बाकी की कहानी हम आपको बाद में सुनाएंगे और जाते-जाते गुनगुनाते गया।


सच कहता हूं की न होकर भी, 

हर रोज तुम मुझे याद आओगे।

 किसी से कह तो नहीं पाऊंगा,

 पर अक्सर रातों में मेरे आँखों से नींद में छलक आओगे।


 की ना होने पर भी याद रखेगी दुनिया ये मेरी कहानी

 जिसमे होके किसी गैर के तुम,

 दिल में हमेशा मेरे जिन्दा रह जाओगे।


 जिस्म तुम्हारा भले किसी और का हो जाएगा,

 पर यकीनन बदनाम तो तुम मेरे प्यार में ही कहलाओगे।

और हां हक दिखाकर हर बात मना लेने की जिद में वास्ता दुनिया का देकर

 मुझसे जिस्म तो जुदा कर दोगे पर जरा ये बताओ

 तुम्हारे रूप पर जो हमने अपनी खुशबू बिखेरी है उस खुशबू को कैसे मिटा पाओगे।

   उस दिन के उपरांत मेरी अभिषेक से कई बार बात हुई लेकिन उसने अपनी कहानी आगे नहीं बताई, शायद वह नहीं चाहता था की उसकी वेवफाई दुनियां के सामने आये। लेकिन मुझे ज्ञात हुआ की उसकी शादी के लिये बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया था, लड़का सरकारी नौकरी में था। उसके वैभव के आगे अभिषेक के गिफ़्ट फिके पड़ गए और उसकी दोस्त जो कभी इसके (अभिषेक के) साथ जीने-मरने की कसमें खा रही थी अब वह यहीं बाते किसी और से बोलने लगी। अभिषेक ने स्नातक के बाद परास्नातक किया और उसकी दोस्त ने शादी। वर्तमान में अभिषेक और उसकी दोस्त में बस यही समानता है की वह अपने बच्चों को संभालती है और अभिषेक विद्यालय के।