बुधवार, 16 जुलाई 2025

एक अधूरी कहानी...

किस्से आर्ट कॉलेज के...

      यह कहानी है उस लड़के की, जो हमेशा अपने शरीर, अपनी सोच, एवं अपने कार्य को लेकर असमंजस की स्थिति में रहता था। घर पर उसके मम्मी-पापा के अलावा उससे छोटी एवं बड़ी चार बहने थी। पापा का छोटा-मोटा व्यवसाय था मछली पकड़ना एवं उसे बेचना, दरअसल बात यह थी की कुछ ऐसे कार्य होते हैं जो की जाति विशेष के बना दिए जाते हैं तो उनका मछली पकड़ना एवं उसे बेचना भी जातिगत ही कार्य था। यानी उन्ही के जाति के लोग यह कार्य किया करते थे और संभवत: यही वजह भी रही थी कि उन्होंने भी इसे ही चुना। लेकिन बच्चों को पढ़ाने की लालसा उनके अंदर थी तभी तो सुरेश (बदला हुआ नाम) को पढ़ने के लिए उन्होंने पटना भेजने का निर्णय लिया था। एक मेरा स्वं का किस्सा यहां याद आ रहा है पहले उसकी बात कर, फिर हम सुरेश की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। दरअसल बात यह थी की बरसात के समय में मेरे घर के तीन तरफ पूरा पानी लग गया था और उसमें बहुत सारी मछलियां आ गई थी। क्योंकि हमें मछली खाना पसंद है तो हम लोगों ने भी छिप, बंसी एवं आरसी (यह तीनों मछली पकड़ने के यंत्र हैं।) बनाकर के मछली पकड़ने लगे। उसी समय हमारे बड़े पापा के लड़के की शादी के लिए कुछ रिश्तेदार आए थे। जैसा अक्सर हर गांव में होता है कुछ लोग "विवाह कटवा" होते हैं। एक विवाह कटवा पहुंच गए लड़की वाले के यहां चुंकि लड़की वाले पूर्णत: शाकाहारी थे उन्होंने जाते ही सबसे पहले कहां - 

अरे महाराज!!! कहां शादी कर रहे हैं वह लोग जो है ना, बिन-मल्लाह की तरह मछली पकड़ के खाता है। 

लड़की के पिता थोड़े समझदार थे उन्होंने कहां - तो क्या बात हो गई? वो लोग मछली खाते हैं तो पकड़ते हैं। उस दिन उस विवाह कटवा की दाल नहीं गली और फाइनली रिश्ता हमारा वही हुआ।

बचपन में मैंने एक कविता पढ़ी थी - "इ विवाह कटवा हाँ, बड़ा विवाह काटेला" की लाइने दिमाग में चलने लगी।

 खैर!!! हम अपनी कहानी पर लौटते हैं और सुरेश जो की कलाकार बनने के लिए प्रयत्नशील था उसे कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में उम्मीद की किरण दिखाई देती है और इसके नामांकन की प्रक्रिया को समझने लगता हैं। जिस दिन वह अपने गांव की गलियों से निकल कर पटना में आता है संभवत: पहली बार महाविद्यालय में एंट्रेंस एग्जाम देने क्योंकि उसने फॉर्म ऑनलाइन फील किया था। कॉलेज के मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही अचानक से उसकी नजर अंकेश (बदला हुआ नाम) पर पड़ती है और पता नहीं सुरेश के मन में क्या इच्छा जागृत होती है सबसे पहले वह उसका नंबर मांगता है और उसके बाद शुरू होती है उन दोनो के बीच घंटो बातचीत। ऐसे अंकेश, सुरेश से दो-तीन साल बड़ा होगा लेकिन दोनों एक ही क्लास के थे और शायद इन दोनों की दोस्ती को और आगे जाना था तभी तो दोनों का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर हो गया और यह सूचना सुरेश को अंकेश ही फोन करके दी। सुरेश को तो मानो पूरी दुनिया की खुशी एक बार में ही मिल गई हो। अब वो जल्द से जल्द पटना आना चाहता था। सुरेश के घर वाले इससे थोड़े चिंतित हो गए क्योंकि इससे पहले कभी भी सुरेश को अकेले बाहर नहीं भेजे थे और घर का इकलौता लड़का होने की वजह से इसकी मां को उसकी सबसे ज्यादा चिंता थी, वह सोचने लगी कि लड़का अकेले कैसे सब कुछ मैनेज करेगा यहां तो अपना खाया हुआ थाली तक नहीं उठाता है वहां खाना बनायेगा कैसे? नहाने के बाद गंजी पैंट तक नहीं धोता है वहां पूरे कपड़े कैसे साफ करेगा? उपरोक्त बाते सोच-सोच कर के उसकी माँ को रोना आ रहा था लेकिन उसके पापा कठोर थे वह उसकी माँ को समझा तो रहे थे की लेकिन अंदर ही अंदर वह भी सुबक😓 रहे थे। घर पर आटा, चावल, आलू, प्याज, चुरा का भुजा, आम का अचार, तिलकुट, नमकीन, बिस्कुट इत्यादि बोरे में रखकर सुरेश के पापा ने उसका मुंह बांधते हुए सुरेश की मां से कहां - सुनs तारु हो!!! अवरी कुछू रखे के बा का? 

सुरेश की मां सुबकते हुए बोली - बेटवा के विदाई थोड़े करतs बानी... 

तभी सुरेश की छोटी बहन दौड़ते हुए आई और बोली - भैया केने बाड़े ? अचानक से सभी का ध्यान आया कि, हां!!! सही है सुरेश कहीं दिख नहीं रहा है। सुरेश की माँ, पुन: उसके कपड़े को एक-एक कर के अच्छे से बैग में पैक करने लगी।

       सुरेश की उंगलियां बार-बार मोबाइल के स्क्रीन पर चल रही थी, अब तो वह नंबर भी उसे याद हो गया था 9131.....857. यह नंबर था अंकेश का, सुरेश इसलिए बहुत परेशान हो रहा था क्योंकि अंकेश उसका कॉल उठा नहीं रहा था। अंकेश के फोन का हेलो ट्यून था - सांसों की जरूरत है जैसे, जिंदगी के लिए बस एक....  सुरेश को यह गाना बहुत पसंद था लेकिन आज उसकी सांसे अटक रही थी, यह सोच करके की अंकेश फोन क्यों नहीं उठा रहा है। अचानक से फोन रिसीव हुआ और अंकेश ने हेलो कहा। सुरेश कुछ बोल नहीं पाया बस आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे। अंकेश ने दो-तीन बार हेलो!!! हेलो!!! कहा और फिर यह कहते हुए फोन रख दिया कि हम क्लास ले रहे हैं बाद में फोन करते हैं। सुरेश ने अपने आंसू पोछे और नीचे रूम में आया, वहां सभी उसका इंतजार कर रहे थे। खाना वगैरा खाकर सभी सोने चले गए रात में तीन लोगों की आंख में आंसू थे सुरेश के पापा-मम्मी एवं स्वयं सुरेश के। सुरेश के पापा मम्मी तो बेटे की विदाई में रो रहे थे लेकिन सुरेश क्यों रो रहा था चलिए उसके आंसुओं से ही पूछते हैं। 

    सुरेश एकतक से छत को देख रहा था आंसू की बूंदे उसके गालों पर गिरकर तकिया को भींगोये जा रही थी रात के 12:00 बज चुके थे लेकिन अभी भी सुरेश को अंकेश के कॉल का इंतजार था। आज पहली बार सुरेश, अंकेश के लिए इतना रोया😭 था। शायद उसके आंसुओं का प्रभाव था कि सुबह में हल्की बारिश हुई एवं मौसम सुहाना हो गया।


नम है मौसम🌧️ कहीं तो कोई रो😭 रहा होगा।

अपने अश्कों से वो रोज तकिया भिगो रहा होगा।।

भीनी-भीनी सी फिजाओं में घुली है खुशबू🌼 ।

प्रेम😍 के फूल का बीज कोई तो बो रहा होगा।।


 मेरी यह पंक्तियां शायद सुरेश की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठती है। उसने सुबह-सुबह अंकेश को सुप्रभात 💐 का मैसेज किया और जब कुछ देर तक उसका रिप्लाई नहीं आया तो उसने कॉल कर दिया। सुरेश अंकेश को तब तक कॉल करता रहा जब तक की अंकेश ने कॉल उठा नहीं लिया हो। उसके कॉल उठाते ही सुरेश ने एकदम से चहकते हुये कहा - अंकेश जानते हो, हम ना आज पटना आ रहे हैं। ये बाते सुरेश ने इतनी तेज आवाज़ में कही थी की किचन में काम कर रही उसकी मम्मी भी उसके रूम में जाकर देखने लगी। अंकेश नींद में ही बोला - भाई, इतनी सुबह-सुबह कौन फोन करता है अभी हम सो रहे हैं। अच्छा तुम आ रहे हो पटना में स्वागत💐 है। सुरेश को तो बस इतना ही सुनना था। अंकेश की आवाज, भले ही वह गुस्से वाली क्यों ना हो लेकिन उसे प्यारी लगी। वह उठ करके फ्रेश हुआ और नाश्ता करके अपने सामान पर एक नजर दौड़ाया। सभी सामान एक-एक करके बहुत अच्छे से पैक किया गया था। मम्मी उसके लिए ठेकुआ तैयार करके ला कर दी, उसने जानबूझकर कुछ ज्यादा ठेकुआ पैक कर लिया। उसके पापा साइकिल पर सामान बांध करके बस स्टैंड तक छोड़ने आए, जब वह पटना के लिए बस में बैठा तो उसे एक समय के लिए महसूस हुआ कि उसकी पुरानी दुनिया छूट रही है लेकिन पटना में मिलने वाली नई दुनिया से वह बहुत खुश था।

 पटना में सुरेश ने पहले चाहा की वह अंकेश के साथ ही रहे लेकिन अंकेश का पटना में अपना घर था तो वह पॉसिबल नहीं हो पाया तब सुरेश ने कॉलेज के पास ही रूम ले लिया। धीरे-धीरे उसने खाना बनाने से लेकर कपड़ा धोने तक सीख लिया। वह रोज अंकेश के लिए लंच बना कर ले जाता, अंकेश पटना का होते हुए भी लंच क्यों नहीं लाता उसने कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं की। एक दो बार सुरेश ने चाहा की अंकेश के घर जाए लेकिन उसने मना कर दिया। महाविद्यालय में दोनों साथ-साथ पढ़ते ही थे लेकिन जैसे छुट्टी होता, पल-पल की जानकारी वह अंकेश की लेता। जैसे - वह घर पहुंचा कि नहीं? नाश्ता किया कि नहीं? रात का खाना खाया कि नहीं? सुबह का नाश्ता हुआ या नहीं? कॉलेज कब आएगा? कहां पर है? शुरू-शुरू में तो अंकेश को यह सब बहुत अच्छा लगा, वह सोच रहा था की कोई तो है जो उसकी इतनी फिक्र कर रहा है वरना किसके पास इतना समय है। रात में जब तक अंकेश खाना नहीं खा लेता तब तक सुरेश नहीं खाता था और कल के लंच में अंकेश को क्या पसंद है वही सुरेश बनाकर ले जाता। सुरेश के घर में कभी मछली की कमी तो रही नहीं थी लेकिन बस उसे बनाने नहीं आता था, वह फोन करके अपनी मम्मी से सारी डिश बनाने की ट्रेनिंग लेता और उसे तैयार करके ले जाता।

      एक दिन दोनो लंच कर रहे थे, सुरेश अंकेश के लिये मछली बना कर ले गया था। मछली खाते-खाते सुरेश ने कहा - जानते हो अंकेश हम चाहते हैं ना!!! मेरा भी घर पटना में हो और ठीक तुम्हारे घर के पास हो ताकि हमदोनो हमेशा साथ रह सके कॉलेज से निकलने के बाद भी। सोचो कितना अच्छा लगेगा जब हम दोनों एक साथ पार्क में टहलने जाएंगे और....

सुरेश अपनी बात पुरी करता उससे पूर्व ही अंकेश को जोड़ की खांसी आई शायद उसके गले में मछली का कांटा अटक गया था। सुरेश दौड़कर पानी लाया और अंकेश को दिया। अंकेश के गले से मछली का कांटा तो निकल गया था लेकिन सुरेश की बाते उसके जेहन में अटकी रही। वह सोचने लगा🤔 कहीं सुरेश बहुत आगे तो नहीं बढ़ गया? कहीं वह हमारे रिश्ते को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस तो नहीं है? वह मन ही मन सोचा कि अब सुरेश से थोड़ी सी दूरी बनाकर वह रहेगा और शुरुआत उसने उसी दिन से कर दी। अमूमन जब भी वह महाविद्यालय से निकलता तो एक बार जरूर सुरेश को बोल देता कि हम घर जा रहे हैं लेकिन उस दिन बिना बताए ही वह चला गया और उस शाम सुरेश का कोई भी कॉल रिसीव नहीं किया और ना ही व्हाट्सएप मैसेज को देखा। सुरेश उसे लगातार फोन किये जा रहा था। सुरेश इस बात से चिंतित था कि लगता है उसे मछली पसंद नहीं आई या फिर जो गले में कांटा अटक गया था इस वजह से वह मुझसे नाराज है लेकिन जब तक बात नहीं हो जाती उसे पता कैसे चले कि किस बात की नाराजगी है। बार-बार वह मोबाइल के स्क्रीन को देख रहा था शायद अंकेश का कोई मैसेज आ जाए या कॉल आ जाए। जब बहुत रात हो गई तो एक बार पुनः कॉल किया शायद अंतिम बार यह सोचते हुए की फोन रिसीव हो जाएगा लेकिन जब फोन नहीं रिसीव हुआ तो फूट-फूट कर रोने😭 लगा।

 अगले दिन वह 09:00 बजे ही कॉलेज चला गया, उस दिन वह अंकेश का पसंदीदा खाना खीर, पूरी, पनीर की सब्जी एवं कुछ मिठाइयां ले कर के गया था लेकिन उस दिन उसे अंकेश कॉलेज में दिखा ही नहीं। लंच के समय वह कई बार उसे फोन किया लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ। थक-हार कर उसने भी लंच नहीं किया और उसी तरफ पैक करके फिर बैग में रख लिया। उसके उपरांत वह क्लास में नहीं गया बल्कि महाविद्यालय के प्रांगण में बने बुद्धा गार्डन में भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति के नीचे बैठकर कुछ सोचने लगा। संभवतः उसके मन में यही ख्याल आ रहे थे...

 शायद!!! बात बंद कर देना ही सबसे आसान लगा होगा तुम्हें,

 कुछ होगा ही नहीं तुम्हारे पास जवाब देने के लिए।

 और यहां मुझे नींद आनी बंद हो गई हैं,

 बेचैन सा रहने लगा हूँ इतना तड़प रहा था लेकिन तुम्हें कोई मतलब ही नहीं।

 अब तो बता दो - क्या हुआ?

 हम बात कर सकते हैं... मिल सकते हैं...

 बताओगे तभी तो मालूम चलेगा की आख़िरकार क्या हुआ?

 तुम्हारे ही कॉल से मेरा फोन बजता था बस...

 अब फोन और हम दोनों बिल्कुल खामोश हो गए हैं।

...लेकिन तुम खामोश मत रहो कुछ तो जवाब दो।

कुछ तो जवाब दो...


 सुरेश की आंखें नम हो गई थी, ना चाहते हुए भी आंसुओं की धार बह निकली। अचानक से उसके फोन की घंटी बजी स्क्रीन देखकर वह खुशी से उछल उठा क्योंकि अंकेश का कॉल था। उसने जैसे ही फोन उठाया उधर से अंकेश बोला - सुरेश कहां हो? तुम्हें कब से ढूंढ रहे हैं।

सुरेश- बुद्धा गार्डन में है बोलो कहा पर आ जाएं

अंकेश - तुम वहीं रुको, हम आते हैं।

...कुछ देर उपरांत अंकेश एवं सुरेश आमने-सामने थे। सुरेश के पास तो प्रश्नों की लंबी झड़ी थी लेकिन जैसे मानसून के मौसम में बादल उमड़-घूमड़ कर आते हैं लेकिन बारिश नहीं होती ठीक उसी प्रकार सुरेश के मन में प्रश्न तो बहुत आ रहे थे लेकिन वह पूछ नहीं पा रहा था। फिर भी उसने हिम्मत जुटा करके पूछा - अंकेश, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?

अंकेश कुछ देर शांत रहा और फिर धीरे से बोला - सुरेश!!! प्लीज मुझे भूल जाओ और हमसे बात मत करना। मैंने दूसरा डिपार्टमेंट ले लिया है तुम्हारे साथ भी अब हम नहीं पढ़ सकते हैं। जानते हो तुम्हारे बारे में पूरे कॉलेज में क्या अफवाहे उड़ रही है? तुमको मेरे साथ सब देख करके यह बोलते हैं कि तुम्हें लड़के ही पसंद है। मेरी एक दोस्त है वह भी इसी वजह से हमसे बात नहीं कर रही है। सुरेश...

अंकेश कुछ और बोलता उससे पहले ही सुरेश ने उसे मना कर दिया और वहीं जमीन पर बैठकर सिसकियां😢 भरने लगा। मुझे नहीं पता अंकेश कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं!!! मुझे यह भी नहीं पता कि सब मेरे बारे में क्या बोलते हैं!!! महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम क्या बोलते हो और समझते हो। यदि तुमको मुझसे दूर ही रहना है तो कोई बात नहीं, लो हम अपने मोबाइल से तुम्हारे सामने तुम्हारा नंबर डिलीट करते हैं और आज के बाद तुम्हें कभी कॉल या मैसेज से परेशान नहीं करेंगे। इतना बोल कर सुरेश वहां से उठा और अंकेश से ऐसे मुंह फेर लिया जैसे बाबा भारती ने अपने घोड़े सुल्तान को खड़क सिंह को देने के बाद मुंह फेर लिया था।

 इस घटना को कई महीने बीत गए, इन दोनों की बातचीत नहीं हुई। लेकिन कभी-कभी सुरेश के मन में यह ख़्याल जरूर आते -

 एक नंबर हुआ करता था मेरे फोन में,

 जिसके साथ मुस्कुराहट का रिश्ता था।

 उस नंबर का मेरे मोबाइल स्क्रीन पर दिखना,

 मेरे दिन के बन जाने के लिए काफी होता था।

 उस नंबर के साथ मेरा रिश्ता हर जगह था,

 कॉल, टेक्स्ट, व्हाट्सएप हर जगह।

 दिन के शुरुआत से रात के बीच तक,

 वह नंबर कभी गुस्सा जताता तो कभी प्यार।

 आज वह नंबर मेरे कांटेक्ट लिस्ट में नहीं है,

 लेकिन वह नंबर मुझे आज भी याद है।

 कभी-कभी टाइप कर लेता हूं फोन के स्क्रीन पर,

...और फिर मिटा देता हूं।

 क्योंकि समय अब बहुत आगे निकल चुका है,

 लेकिन वह नंबर आज भी मुझे याद है।

वह नंबर आज भी मुझे याद है।


  एक दिन सुरेश ने देखा कि अंकेश उसी बुद्धा गार्डन में बैठा हुआ हैं जिसमें वह दोनों कभी घंटो बैठा करते थे। उसके चेहरे पर घनी उदासी छाई हुई थी, वह उसके पास मुस्कुराते हुए गया और बोला- मैंने क्या कहा था, लड़कियां हमेशा धोखा देती है वह कभी किसी की सच्ची दोस्त नहीं होती। तुमने मुझे बहुत रुलाया😢 है ना देखना तुम भी उसकी याद में वैसे ही रोओंगे 😭। अंकेश कुछ बोलना चाहा लेकिन सुरेश ने उसे मना कर दिया और बोला - आज मैं बस कहने आया हूँ तुम्हें सुनने नहीं। और हां इससे मिलो यह है मेरा नया दोस्त यह मुझे कभी नहीं रुलाता है और ना ही मेरे फोन को इग्नोर करता है। ...और सबसे बड़ी बात यह मेरे जिले से ही आता है। खैर यह सब मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं? तुम तो बहुत खुश थे उसके साथ मुझे इग्नोर करके...

बस!!! अंकेश ने एकदम से चीखते हुए कहा।

 सुरेश एकदम चुप हो गया और धीरे से अपना बैग उठाया और चल दिया।

 अंकेश सुरेश को जाते हुए देखता रहा और तब तक देखा जब तक कि वह आंखों से ओझल ना हो गया।


मंगलवार, 8 जुलाई 2025

किस्से आर्ट कॉलेज के

...और मैंम ने परीक्षा की कॉपी पढ़ ली।


 मैं और मेरा दोस्त आनंद एक ही साथ एक ही क्लास में थे उसने भी वही डिपार्टमेंट लिया जो मैंने लिया था। जिस वजह से प्रैक्टिकल कार्य तो हमारा आसानी से हो जाता लेकिन मामला फँसता थ्योरी के पेपर में। क्योंकि जैसा कि नाम ही उसका आनंद था हमेशा क्लास में आनंदमय ही रहता वह लाख कोशिश कर ले लेकिन थ्योरी उससे याद ही नहीं होती। मैं उसे प्रत्येक दिन याद कराता था कि अजंता में 29 गुफाएं पहले थी लेकिन अब 30 हो गई हैं और एलोरा में 34. अजंता में 9, 10, 19, 26, एवं 30 चैत्य गुफा है और बाकी सब विहार। ठीक उसी प्रकार एलोरा गुफा में हिंदू, ब्राह्मण एवं जैन गुफाएं हैं। जिन्हें तीन मुख्य समूहों में बांटा गया है: 12 बौद्ध गुफाएं, 17 हिंदू गुफाएं, और 05 जैन गुफाएं। ये गुफाएं एक ही चट्टान से काटकर बनाई गई हैं और विभिन्न धर्मों के कलात्मक और धार्मिक पहलुओं को दर्शाती हैं। उस दिन तो वह याद कर लेता और सुना भी देता लेकिन अगले दिन फिर भूल जाता। वह हमेशा एक ही बात बोलना - भाई आगे से पढ़ते हैं एवं पीछे से भूलते चले जाते हैं। लेकिन एक बात हमेशा मेरे समझ से परे रही की वह हर एग्जाम में पास कैसे कर जाता है? मैंने कई बार उससे पूछने की कोशिश भी की तो बोलता कि, मुझे ना एग्जाम के टाइम याद आ जाता है। हम भी बोलते, भाई तुम्हारे पास तो बहुत अच्छा स्किल है, पेपर देखकर तुम्हें हर क्वेश्चन याद आ जाता है। वह हर बार मुस्कुरा कर मेरे इस प्रश्न का उत्तर डाल देता। हमने 2010 में आर्ट कॉलेज में नामांकन लिया था और उसका यह भेद खुला 2013 में, जब हमारे महाविद्यालय में थ्योरी पेपर को पढ़ाने के लिए रश्मि मैंम आई, इससे पूर्व वो केंद्रीय विद्यालय, आरा में शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी। अभी तक जो हमारा थ्योरी का पेपर होता था उसे एक्सटर्नल एक्सपर्ट सेट करते और कॉपी भी बाहर ही जाता चेक करने के लिए। उस समय मैंम ने खुद पेपर सेट किया और कॉपी भी उन्होंने खुद चेक की। हम सभी लोग पास हो गए थे लेकिन आनंद फेल हो गया था। मैं क्या पुरा क्लास आश्चर्य में था की आनंद फेल कैसे हो गया? उसे तो सारा क्वेश्चन परीक्षा में याद हो ही जाता था आज अचानक से क्या हो गया!!! मैंने आनंद से बात करी, पहले तो उसने आना कानी की, फिर बोला- जानते हो भाई मुझे सही में कुछ याद नहीं रहता था, वह तो परीक्षा में.....

आनंद अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही रश्मि मैंम ने उसे बुला लिया था। वह डरते-डरते मैंम के केबिन में गया और उधर से उदास हो कर के लौटा। हम सब यह जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर हुआ क्या? वह आते ही बिना भूमिका के बोला- हमारा सोमवार को फिर से एग्जाम है, मैंम ने कहा है, और एग्जाम मैंम अपने सामने लेगी। मैंने थोड़ा मजाकिया अंदाज में कहा- तो इसमें दिक्कत क्या है तुम्हें तो सारा उत्तर प्रश्न देखते ही याद हो जाता है😀 आनंद इस बार थोड़ा झुझलाते हुए कहा - भाई मजाक क्यों कर रहे हो? हम सही बोल रहे है मुझे कुछ याद नहीं होता था। हम सभी चौंकते हुए बोले कि फिर तुम पेपर में लिखते क्या थे? आनंद कुछ देर मौन रहा फिर उन्होंने बोलना शुरू किया - तुम सब हमारी परेशानी नहीं समझोगे!!! और वहां से उठ कर चला गया। आनंद को हम फर्स्ट ईयर से जानते थे उसने कभी यूं गुस्सा नहीं किया था मुझे लगा मैंम के पास जाकर के ही इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए। चुंकि मैंम की नजरों में हम एक अच्छे स्टूडेंट थे इसलिए सोचे की इसका थोड़ा फायदा उठाते हैं और आनंद की समस्या को समझने का प्रयास करते हैं।

कुछ देर उपरांत हम मैंम के टेबल के सामने थे और आनंद की कॉपी भी सामने पड़ी हुई थी। मैंने कॉपी उठाया और एक-एक लाइन पढ़ना शुरू किया -

प्रश्न १ का उत्तर - हम सुबह 10:00 बजे अपनी साइकिल से कॉलेज पहुंचते हैं तो सीढ़ी के पास लगे वॉटर टैंक में पानी नहीं रहता है, हमें पानी लेने के लिए हॉस्टल में जाना पड़ता है। वहां भी पानी नहीं रहता है तो फिर मोटर चलाते हैं तब जाकर के पानी भरते हैं। मोटर का तार भी खुला हुआ है कई बार वहां लाइन मारने का डर बना रहता है। कॉलेज में बहुत सुधार की जरूरत है। कॉलेज में कैंटीन भी नहीं है। दोपहर में हम सभी बाबा जी का इडली खाते हैं, जो बेचने आते हैं....

मैंने कॉपी पूरा पढ़ा नहीं और रख दिया। मैंम ने मुझे देखा और कहा - मैंने कॉपी पूरी पढ़ी है, अब तुम्ही बताओ उसको क्या नंबर दे?

मैंने कहा- मैंम आनंद का आर्टवर्क बहुत अच्छा है, बस केवल उसे थ्योरी याद नहीं रहता है। आप तो देखते ही हैं वह क्लास में प्रतिदिन आता है। हम उसे थ्योरी याद कराने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन वह भूल जाता है।

मैंम ने कहा- वह तो ठीक है, लेकिन यह सब कॉपी में कौन लिखता है, बताओ हम रिकॉर्ड में क्या रखेंगे?

मैंने कहा- मैंम सोमवार की परीक्षा में उसे थोड़ा छूट दे दीजिएगा, नहीं तो वह फिर से यही सब लिख देगा। मैंम ने मुझे ऐसे देखा जैसे कह रही हो कि "तो हम क्या करें"? मैंने भी मन-ही-मन कहा - मैंम, आपको जो बेहतर लगे वह कर दीजिएगा।

सोमवार का दिन आनंद के लिए थोड़ा सा परेशान करने वाला था लेकिन जब वह परीक्षा देकर आया तो बहुत आनंदमय दिख रहा था। मैंने पूछ लिया - क्या हुआ?

वह उसी मुस्कान के साथ बताया कि "चोरी नहीं डकैती किए हैं।"

मैं सोचने लगा कि मैंम को इतना भी छूट नहीं देना चाहिए था।



सोमवार, 7 जुलाई 2025

किस्से आर्ट कॉलेज के...

तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई?


तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई?, तुम्हें नहीं आना चाहिए था, हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते हैं? अभिषेक(बदला हुआ नाम) अचानक से नींद में हीं बड़बड़ाने लगा। मैं कुर्सी पर बैठा अपनी डायरी लिखने✍🏻 में व्यवस्त था अचानक से चौक गया और फिर पूछा - अभिषेक!!! अभिषेक!!! क्या हुआ? अभिषेक ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह नींद में था। अभिषेक हमसे आर्ट कॉलेज में 03 साल जूनियर था लेकिन मेरे ही हम उम्र था क्योंकि वह ग्रेजुएशन करने के बाद यहां नामांकन लिया था। महाविद्यालय के शुरू के दिनों में तो अभिषेक से उतनी बातें नहीं होती थी लेकिन फिर धीरे-धीरे बातें होने लगी क्योंकि उसे भी मेरी तरह यूट्यूब पर वीडियो बनाना, जगह-जगह घूमना और मूवी देखने का बहुत शौक था केवल उसे कविता लिखने✍🏻 का शौक नहीं था लेकिन कविता की बारीकीयों को अच्छे से समझता था। कल सुबह उसने मुझे कॉल किया और बोला- भैया मेरा मन ना!!! आज बहुत विचलित हैं, कुछ करने को मन नहीं कर रहा हैं रात में भोजन भी नहीं किये थे और सोये भी नहीं। उसकी बहुत याद आ रही हैं भैया!😥... और फिर वो रोने लगा। मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो लगातार रोते रहा। मैंने उससे कहां - अभिषेक भाई, आप मेरे रूम पर आओ, आज का लंच हम साथ ही करते हैं। रविवार होने की वजह से मेरे कॉलेज की छुट्टी थी और उसकी भी। वो बोला - ठीक हैं भैया, एकाध घंटे में हम आ रहे हैं। हम अमुमन रविवार को चिकन बनाते है लेकिन अभिषेक नॉनवेज नही खाता है इसीलिये उस दिन खीर, पुरी एवं मटर-पनीर बनाये थे। अभिषेक नींद में बड़बड़ाने के बाद पुन: सो गया था। खाना बनाने के उपरांत हम स्नान किये और उसके बाद उसे जगाए की खाना खा लो। उसे खीर बहुत पसंद है मुझे उस दिन मालूम चला। ऐसे उससे कभी बाते ही कहां हुई थी। वो तो इधर एक दो महीनों से मेरी कवितायें पढ़कर उसे लगने लगा था की हम भी प्यार🥰 में धोखा खाये हुये है। तभी इतनी रोमांटिक एवं दर्दभरी कविताएं लिख पा रहे है। ऐसे मुझे अनुभव तो नहीं लेकिन सुना है की जो लोग प्यार में होते है उन्हें हर एक चीज़ ऐसे लगती है जैसे की वो उन्ही के लिये बनाई गई हो। खाना वगैरा खाने के उपरांत वो बोला की भैया चलिए ना!!! मूवी देखने चलते है। मुझे हॉरर, कॉमेडी एवं सस्पेंस टाइप की फिल्में ज्यादा पसंद है और अभिषेक को रोमांटिक टाइप। अब कन्फ्यूजन यह हो रहा था कि कौन सी मूवी देखी जाए, आखिरकार मुंज्या फिल्म पर सहमति बन गई। फिल्म के शुरुआती सीन में ही कुछ लव ट्रेगेल को दिखाते हुए फिल्म की शुरुआत हुई, उसके उपरांत कॉमेडी, हॉरर एवं सस्पेंस पर पूरी तरह बेस्ट यह फिल्म रही।

      फिल्म देखने के उपरांत हमने डिनर बाहर ही किया, चुंकि अभिषेक का रूम सिनेमा हॉल के नजदीकी था तो वह बोला कि भैया आप रात में मेरे यहां ही रुक जाइए ऐसे भी अकेले मुझे रूम में डर लगता है। मैंने उसकी बात मान ली और रात में उसके यहां ही ठहरा। बातचीत में मैंने यूं ही उससे पूछ लिया, अभिषेक तुम दिन में सोते समय कुछ बड़बड़ा रहे थे। जैसे- तुम मेरी जिंदगी में क्यों आई? और पता नहीं क्या-क्या बोल रहे थे बात क्या है? वह बोला - कुछ नहीं भैया आप नहीं समझोगे!!! ये बहुत गहरी बात है। फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोला- क्या आपने कभी किसी से प्यार🥰 किया है? मेरे लिए इसका जवाब बहुत साधारण था नहीं। लेकिन उस दिन मैंने उसे गलत जवाब दिया क्योंकि मुझे लगा कि इसके मन की कुंठा को खोलने का यही एक उपाय है। लेकिन उसे मेरे जवाब पर यकीन नहीं हुआ। फिर मैंने उसे बताया कि अच्छा बताओ जितनी कविताएं आप पढ़ते हो वह ऐसे थोड़े ही आती है, प्यार में गहरा डूब कर बाहर आने के बाद शब्द फुटते हैं। अब वह थोड़ा इंटरेस्ट लेने लगा था फिर उसने बोला आपको भी प्यार में धोखा मिला है? मैं थोड़ा उदास होते हुए कहा - मिला तो था। अच्छा भैया कौन थी वह? अबकी बार चहकते हुए अभिषेक ने पूछा था। फिर अपने आप बोला रहने दीजिए क्या फायदा बता कर, जिसको जाना था वह तो चला गया दुनिया के सामने उसकी कहानी को बता कर क्या फायदा? मैं कुछ नहीं बोला बस चुपचाप सुनता रहा। अभिषेक लगातार बोले जा रहा था। उसने आगे बताया। (यहां मैं अभिषेक की जुबानी ही प्रस्तुत कर रहा हूं जैसा उसने मुझे बताया था।)

 हम तो फिदा हो गए थे उनकी तिरछी निगाहो पर,

 हमें क्या पता सनम टेढ़ा ही देखते हैं।

     अभिषेक के इस शेर पर मुझे हंसी तो आई लेकिन मैंने हंसा नहीं क्योंकि उसने सीरियसली इसे कहा था। उसने आगे बताया- मुझे स्कूटी चलाने नहीं आती थी और ना ही मेरे घर पर था लेकिन उसको धूप में स्कूल जाते देखकर मेरा मन मचल उठता था। पापा को किसी तरह तैयार करके स्कूटी खरीदे और उसको रोज स्कूटी से विद्यालय छोड़ने जाते। वह देखने में सुंदर नहीं थी लेकिन प्रेम चेहरा कहां देखता है वह तो बस हो जाता है, जैसे मुझे हो गया था। बस दिन-रात उसी का ख्याल चलते रहता। यदि एक घंटा भी उससे बात ना हो तो लगता था कि क्या गुम हो गया है। मैंने अपना +2 (इंटरमीडिएट) पूरा कर लिया था और ग्रेजुएशन में था लेकिन वह अभी +2 में गई ही थी। घर से मैं तो यह बोलकर निकलता की अपने कॉलेज जा रहा हूं लेकिन उसको छोड़ने उसके विद्यालय चला जाता और छुट्टी होने से पूर्व उसके विद्यालय पहुंचकर उसको रिसीव करता और घर पहुंचाता था, उसके उपरांत अपने घर जाता। उसको विद्यालय से जो भी असाइनमेंट मिले रहते उसे रात में बैठकर पूरा करता। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं +2 की पढ़ाई फिर से कर रहा हूं। मेरे पूरे 02 साल की दिनचर्या यही रही। रोज सुबह स्कूटी से उसको रिसीव करना विद्यालय पहुंचाना और फिर शाम में वापस लाना। कभी-कभी वह स्कूल से बंक मारती और हम सिनेमा देखने चले जाते तो कभी पार्क में घंटो बैठ बातें करते। उसका +2 तो बहुत अच्छे से पूरा हो गया लेकिन मैं ग्रेजुएट नहीं हो सका क्योंकि मैं उसके ख्यालों में इतना खोया रहता कि मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मैं भी ग्रेजुएशन कर रहा हूं और अपना सारा एग्जाम छोड़ते चला गया। इसी दरम्यान एक दिन उसके भाई ने हमदोनो को एक पार्क में देख लिया और उसकी और मेरी जमकर पिटाई कर दी मुझे यह देख कर आश्चर्य लग रहा था की जिसे कल तलक दोस्त कहते थे वो भी उस दिन मुझे पीट रहे थे। उस दिन शाम को मैं घर नहीं गया और उसी मंदिर के प्रांगण में रात बिताई जिसके प्रांगण में कभी हमने शादी करने का फैसला किया था। मुझे उस समय बहुत आश्चर्य हुआ तब मैंने देखा की सूरज की किरणों के साथ वो भी मंदिर के प्रांगण में आई उसका चेहरा एवं आँखे सूजी हुई थी ऐसा लग रहा था रातभर वो सोई नहीं है और चोट के निशान अभी भी दिख रहे थे। आने के साथ ही सबसे पहले उसने मुझसे पूछा - शादी करोगे?

मैं तो आश्चर्य से उसे देखते ही रह गया। मैं कुछ बोलता है इससे पहले उसने फिर पूछा - शादी कर रहे हो या नहीं।

फिर उसने मेरा जवाब सुने बिना ही हाथ पकड़ कर के सीधे मंदिर के गर्भ-गृह में लेकर गई और मेरे हाथ में सिंदूर का डिब्बा देते हुए बोली - मैं नहीं चाहती कि मेरे भैया या पापा आपको फिर कभी यूं मारे-पिटे।

मुझे भी होश ठिकाना नहीं था, मैंने सिन्दूर लेकर उसकी मांग भर दी। वह फूट-फूट कर रोने लगी और मेरे गले लग गई। फिर रोते-रोते कहां चलिए हम यहां से भाग चलते हैं नहीं तो मेरे एवं आपके घर वाले हम लोगो को नहीं छोड़ेंगे मैंने अपने घर से पूरा बैग भरकर के लाया है, साथ में कुछ रूपये भी रखे है और माँ की ज्वेलरी भी जो उसने मेरी शादी के लिए बनवाये थे। हमें कोई दिक्कत नहीं होगा। मुझे पता नहीं क्या हो गया था, हम भी उस दिन उसकी बातों में पूरी तरह आ गए थे। वह जैसा कह रही थी हम बस वैसा ही किये जा रहे थे। उसका हाथ पकड़ कर के अभी मंदिर की सीढ़ियों से उतर ही रहे थें कि सामने देखे कि मेरे पापा एवं गांव के कुछ लोग आ रहे हैं। वह हम दोनों को देखकर एकदम गुस्सा हो गए। एक तो हम रात भर वह हमको ढूंढे थे क्योंकि हम घर नहीं गए थे और मोबाइल भी पार्क में हीं छूट गया था। मुझे देखते ही उनका गुस्सा और सातवें आसमान पर पहुंच गया क्योंकि मेरे साथ वो भी थी और पार्क वाला किस्सा उनको शाम में हीं मालूम चल गया था। पहले तो वह रात में मेरे घर आने का इंतजार किये जब हम नहीं पहुंचे तो वह ढूंढते-ढूंढते अभी मंदिर पहुंचे थे। तेज कदमों से चलते हुए वह हमारे पास आए और एक जोरदार थप्पड़ दे मारा। दिन में तारे दिखना यह कहावत मैंने सुनी थी उस दिन अनुभव भी किया। थप्पड़ लगते ही मैं जमीन पर गिर पड़ा वह मुझे उठाने की कोशिश करने लगी, पापा ने उसका बाल पकड़कर साइड किया और मुझे दो-चार लात और जड़ दिये मैं दर्द से कराह उठा। तब तक उनके साथ आए कुछ लोगों ने बीच-बचाव किया और उन्हें पकड़कर साइड किया फिर बोले-  आरे!!! आरे!!! रहने दीजिए, लड़का है। पापा का गुस्सा अभी खत्म नहीं हुआ था वह पुन: मुझे डांटते हुए बोले- लड़का है!!! पूरे खानदान का इज्जत मिट्टी में मिला दिया, हमारा नाक कटवा दिया। मम्मी भी रोते हुए बोली - बेटा, तुम्हें भी यही मिली थी, शादी करने के लिए। अब हम उन्हें क्या समझाते कि, जब नैन मिला चुड़ैल👹 से तो परी🧚🏻‍♀️ किस काम की। लगता है हमारी यह मन की बातें किसी ने सुन ली और आसपास खड़े लोग इसी बात की चर्चा करने लगे। तब तक उसके पापा-मम्मी भी आ चुके थे। जब उन्होंने सुना कि हमारी बेटी के सांवले होने की चर्चा चल रही है तो इतना जोर से गुस्सा किया कि सभी शांत हो गए। फिर उसने मेरी मम्मी के पास आकर समझाते हुए कहां - देखिए बच्चों ने जो किया सो किया अब हमें भी इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। मेरी मम्मी कुछ बोलती उससे पूर्व पापा चीखते हुए कहें- नहीं, बिल्कुल नहीं हम इसे बहु के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। धीरे-धीरे उस मंदिर में बहुत भीड़ बढ़ गई थी सभी लोगों के लिए यह एक मजेदार विषय था। आपस में चर्चा कर रहे थे फलना का बेटा ,फलना  की बेटी से... अचानक से पापा उठे मेरा हाथ पकड़े और खींचते हुए घर की तरफ लेकर चल दिये, पीछे-पीछे मम्मी और घर के सभी सदस्य भी आ गए।

            घर जाते ही मैं सबसे पहले सोने चला गया, एक तो रात में सोए नहीं थे और ऊपर से पूरा बदन दर्द कर रहा था। अर्द्धनिद्रा में ही मैंने सुना कि पापा एवं मम्मी के बीच में काफी देर तक इस बात पर बहस हो रही थी कि हमने सही किया या गलत। मम्मी मेरे लिए खाना लेकर आई और कई बार जगाने की कोशिस भी करी लेकिन मैं जानबूझकर सोता रहा। अगले दिन क्या देख रहे हैं कि मेरा सारा समान बैग में पैक किया जा रहा है। मैं कुछ समझा नहीं, मम्मी से सीधा पूछ लिया कि समान क्यों पैक किया जा रहा है? मम्मी कुछ बोलती उससे पहले पापा बोल उठे। तुम आज पटना जा रहे हो वहीं रह कर पढ़ाई करोगे, घर पर नहीं रहना है। मुझे एकदम से रोना😥 आ गया। पटना हम अकेले कैसे रहेंगे?, खाना कैसे बनाएंगे?, कपड़े कैसे साफ करेंगे? मैं एक-एक करके सभी परेशानियां अभी गिना ही रहा था कि तभी बीच में पापा बोले उठे। तुम अकेले नहीं रहोगे तुम्हारे मामा का लड़का भी पटना में रहता है तुम उसके साथ रहोगे वह सब कुछ कर लेता है। मैंने बेबस भरी नजरों से मम्मी की ओर देखा। वह भी पापा का साथ देते हुए बोली कोई दिक्कत नहीं होगा महीना में एक दो बार घर आते रहना। अब मैं भी उन्हें मनाने का हिम्मत छोड़ दिया और पटना आ गया। पटना में दिनभर रूम पर लेते रहते और यही सोचते रहते की पता नहीं वह कैसी होगी। मेरे साथ जो मेरे मामा का लड़का रहता था उसका नाम अंशु था। एक दिन अंशु ने पूछ लिया कि भैया आप इतना उदास क्यों रहते हैं? मैंने बोला - भाई तुम नहीं समझोगे। लेकिन वह हमसे ज्यादा समझदार निकला बोला कि हम सब समझते हैं, आपको भाभी की याद आ रही है। एक काम काहे नहीं करते उन्हें फोन दे आइये और फिर बात करते रहिएगा। मुझे अंशु के इस समझदारी भरी बातों पर हंसी भी आई और आश्चर्य भी हुआ। अक्सर पटना में रहने वाले बच्चे समझदार हो ही जाते हैं। मैंने उससे कहां - नहीं भाई, अभी घर नहीं जा सकते हैं अभी एक सप्ताह हुआ ही है पटना आए हुए। मुझे तो यह भी नहीं पता कि हम पटना क्यों आए हैं? और क्या करने आए हैं? अंशु बोला - फूफा जी तो बता रहे थे कि आपको आगे की पढ़ाई करनी है इसीलिए वह आपको मेरे पास भेज रहे हैं। ऐसे आपका ग्रेजुएशन पूरा हो गया है ना?

मैंने धीरे से कहां - नहीं 

अंशु ने कहां - आप कर तो रहे थे ग्रेजुएशन क्या हुआ?

अब हम उससे क्या छुपाते जो हकीकत था वह सब बयां कर दिये। उसको स्कूटी से कॉलेज छोड़ने से लेकर मंदिर वाला किस्सा विस्तार पूर्वक समझाएं। पूरी कहानी सुनने के बाद अंशु ने बोला - भैया भाभी की फोटो दिखाइए ना!!!

मुझे अचानक से ध्यान आया कि मैंने अपनी ड्राइंग बुक में उसकी कई सारी तस्वीरें बना रखी है उसी को निकाल कर अंशु को दिखाएं। वह बहुत ध्यान से एक-एक तस्वीरो को देख रहा था अचानक से वह बोला- जानते है भैया, पटना में एक कॉलेज है जहां पर ना यही सब-कुछ सिखाया जाता है। आप काहे नाही उसी में नामांकन ले लेते है ऐसे आपको पेंटिंग बनाने में मन भी लगता है। मुझे तो ऐसा महसूस हुआ की जैसे रेगिस्तान में दूर कहीं पानी की कुछ बूंदे दिखाई दे दी हो। तुरंत अंशु के मोबाइल पर आर्ट कॉलेज का एड्रेस सर्च किये और पहुंच गये वहां पर नामांकन लेने के लिए। इसे आप मेरी खुशनसीबी ही कहियें की इत्तेफ़ाक़ से उस समय आर्ट कॉलेज में एडमिशन के लिए फॉर्म आया हुआ था। फिर क्या था फटाफट फॉर्म ले कर के उसे फील करने के उपरांत जमा कर दिये। अब मुझे पटना में रहने के लिये एक बहुत बड़ी वजह मिल गई थी, हम यह सोच कर ज्यादा उत्साहित थे की अब उसकी फोटो और अच्छे से बना पायेंगे मेरे घर वाले भी बहुत खुश😊 क्योंकि मैंने नामांकन ले लिया था। चुंकि आर्ट कॉलेज में एडमिशन फ़ी बहुत नाममात्र ही लगता है फिर भी घर से एडमिशन के नाम पर पैसे मांगे और एक मोबाइल एवं सिम ख़रीदा फिर उसे चुपके से ले जा कर के उसे गाँव में दे आएं। अब हमारे बीच दूरियां कम हो गई थी, रोज शाम एकाध घंटा उस से बातचीत हो जाती और प्रत्येक शनिवार को हम पटना से गाँव चले जाते। इस दरम्यान मेरी उस से कई बार मुलाकाते हुई और हमने कई राते साथ में बिताया भी। उस दरम्यान मैं बहुत ख़ुश रहता तो सभी को लगता की, इसका मन पटना में लग गया है लेकिन हकीकत यह था की मेरा मन तो गाँव में ही लगता था। धीरे-धीरे साल बीतते गए और हमारा प्यार गहरा होते गया। इन तीन सालो में मालूम नहीं मैंने कितनी बार उसके एवं उसकी मम्मी का मोबाइल रिचार्ज किया। जब भी पटना से जाते भले अपने घर के लिये कुछ ना ले लेकिन उसके लिये गिफ़्ट एवं मिठाई लेना ना भूलते। अब वह मेरी बैचमेट बन चुकी थी क्योंकि +2 के बाद उसने स्नातक में नामांकन ले लिया था। किताब से लेकर पेन तक हर चीज़ हम उसे दिलाते। प्रत्येक शुक्रवार को कॉल आ जाता की आते समय अमुक-अमुक चीज़ लेते आइयेगा। हमारे पास भी पैसे नहीं होते थे फिर भी उसकी हर एक इच्छा को पुरा करते। उस दरम्यान स्टेशन पर बिकने वाले सेकंड हैंड कपड़े को खरीदकर हम पहनते लेकिन उसके लिये हमेशा कपड़ा मॉल से ही खरीदते। इतना बोलकर अभिषेक मौन हो गया फिर कुछ देर बाद बोला -

.....कोई इंसान ऐसा कैसे कर सकता है... भैया!!! इतना कहते कहते अभिषेक की आँखे पुनः नम हो गई। 

मैंने उसे पानी पीने के लिये दिया और पूछा - तुम दोनो की शादी हो गई थी ना, फिर क्या हो गया? घर वाले नहीं माने या...

मैं अपनी बात पुरी करता उससे पूर्व अभिषेक बोल उठा - धोखा!!!😡 वही दे गई। इतना बोल कर अभिषेक मौन हो गया। हम वहां से उठे और किचन में जाकर के अभिषेक की मनपसंद इलायची वाली चाय बनाने लगे। जबतक हम चाय बनाये अभिषेक अपनी जगह से हिला तक नहीं। मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था की कोई मूर्ति कमरे में रखा गया है। चाय वगैरा पीने के उपरांत वो थोड़ा सा हल्का महसूस कर रहा था। फिर बोला भैया हम अब सोने जा रहे है, रात बहुत हो गया है। कल सुबह विद्यालय भी जाना है। 

मैंने कहा - आपकी कहानी अभी पुरी नही हुई है।

अभिषेक कुछ देर बैठा रहा फिर धीरे से बोला -


 एक ख्वाहिश थी मेरी बस उसके साथ जिंदगी जीने की,

 वरना दिल तो कई बार साथ रहने से लोगों से अपने आप लग जाता है।

मैंने कुछ नहीं बोला, वह उठा और सोने जाने से पहले बोला - भैया सुबह का खाना बहुत बढ़िया👌🏻 बना था और Movie🎬 के लिये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद😊 बाकी की कहानी हम आपको बाद में सुनाएंगे और जाते-जाते गुनगुनाते गया।


सच कहता हूं की न होकर भी, 

हर रोज तुम मुझे याद आओगे।

 किसी से कह तो नहीं पाऊंगा,

 पर अक्सर रातों में मेरे आँखों से नींद में छलक आओगे।


 की ना होने पर भी याद रखेगी दुनिया ये मेरी कहानी

 जिसमे होके किसी गैर के तुम,

 दिल में हमेशा मेरे जिन्दा रह जाओगे।


 जिस्म तुम्हारा भले किसी और का हो जाएगा,

 पर यकीनन बदनाम तो तुम मेरे प्यार में ही कहलाओगे।

और हां हक दिखाकर हर बात मना लेने की जिद में वास्ता दुनिया का देकर

 मुझसे जिस्म तो जुदा कर दोगे पर जरा ये बताओ

 तुम्हारे रूप पर जो हमने अपनी खुशबू बिखेरी है उस खुशबू को कैसे मिटा पाओगे।

   उस दिन के उपरांत मेरी अभिषेक से कई बार बात हुई लेकिन उसने अपनी कहानी आगे नहीं बताई, शायद वह नहीं चाहता था की उसकी वेवफाई दुनियां के सामने आये। लेकिन मुझे ज्ञात हुआ की उसकी शादी के लिये बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया था, लड़का सरकारी नौकरी में था। उसके वैभव के आगे अभिषेक के गिफ़्ट फिके पड़ गए और उसकी दोस्त जो कभी इसके (अभिषेक के) साथ जीने-मरने की कसमें खा रही थी अब वह यहीं बाते किसी और से बोलने लगी। अभिषेक ने स्नातक के बाद परास्नातक किया और उसकी दोस्त ने शादी। वर्तमान में अभिषेक और उसकी दोस्त में बस यही समानता है की वह अपने बच्चों को संभालती है और अभिषेक विद्यालय के।