शनिवार, 26 अगस्त 2023

माध्यमिक पेपर - 1 एसटीईटी 2023 MADHYAMIC PAPER - 1 STET 2023. Subject - Fine Art. विषय - ललित कला


Subject - Fine Art.
विषय - ललित कला





कला का अर्थ एवं परिभाषा



कला का अर्थ

     किसी भी कार्य को पूरी कुशलता या निपुणता से सम्पन्न करना कला कहलाता है। जैसे:- मूर्ति बनाना, चित्र बनाना, भवन या मंदिर बनाना, गीत गाना, काव्य रचना, आदि।

Note.- गीत गाना कला तभी कही जायेगी जब गीत सुमधुर और लय-ताल के साथ गाया जाये। इसी प्रकार काव्य, नाटक, चित्र, मूर्ति, आदि। कला की परिधि में तभी आयेगी जब उसमें अर्थ, रस, भाव और रूप की सुन्दर निष्पति हो।

       कला शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ऋग्वेद में हुआ है। कला संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति कल धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है:- प्रेरित करना। लेकिन कुछ विद्वान इसकी उत्पति कड़ धातु से मानते हैं जिसका अर्थ होता है:- प्रसन्न करना

कला की परिभाषा

      मनुष्य के मन में उत्पन्न विचारों को व्यक्त करना ही कला (Art) कहलाता है। कला को विभिन्न विद्वानों के द्वारा परिभाषित किया गया है, जिनमें से कुछ निम्न है -

रविन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, “कला में मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता है।"

जयशंकर प्रसाद के अनुसार, “ईश्वर की कर्तव्यशक्ति का संकुचित रूप जो हमको बोध के लिए मिलता है, वही कला है।"

मैथलीशरण गुप्त के अनुसार, “अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला है, जो अपूर्ण कला की पूर्ति है।"

नीत्शे के अनुसार, “कला जीवन के कड़वे अनुभवों से मुक्ति का माध्यम है।

Note:- फ्रेडरिक नीत्शे जर्मनी के दार्शनिक थे। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उनसे प्रेरणा भी ली है।

प्लेटो के अनुसार, "कला सत्य की अनुकृति है।" 

Note:- प्लेटो, या अफ़्लातून, यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वह सुकरात के शिष्य तथा अरस्तू के गुरू थे। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही जाता है।

अरस्तू के अनुसार, "कला प्रकृति का अनुकरण हैं।" 

Note:- अरस्तु यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था। अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया।

फ्रायडं के अनुसार, "कला दमित वासनाओं का उभरा हुआ रूप है।" Note:- सिग्मंड फ्रायड आस्ट्रिया हंगरी के तंत्रिकाविज्ञानी तथा मनोविश्लेषण के संस्थापक थे।


क्रोचे के अनुसार, "हर एक महान कला ईश्वरीय कृति के प्रति मानव अहलाद की अभिव्यक्ति है।"

Note:- बेनेदितो क्रोचे इटली का आत्मवादी दार्शनिक था। उसने अनेकानेक विषयों पर लिखा जिनमें दर्शन, इतिहास, सौन्दर्य शास्त्र आदि प्रमुख हैं। वह उदारवादी विचारक था किन्तु उसने मुक्त व्यापार का विरोध किया।

टाल्सटॉय के अनुसार, "कला भावों को क्रिया, रेखा, रंग, ध्वनि या शब्दो द्वारा इस प्रकार अभिव्यक्त करना है जिसे देखने या सुनने वाले के मन में वही भाव उत्पन्न हो जाये।

हीगेल के अनुसार, "कला आदि भौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम है।"

रस्किन के अनुसार, "कला में मनुष्य अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है।

Note:- रस्किन बॉण्ड अंग्रेजी भाषा के एक विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक हैं।


Meaning of art


      To complete any work with full skill is called art. Such as:- Making Sculpture, making Painting, making buildings or temples, singing a songs, composing poetry, etc.

Note.- singing a songs art will be called then should be song with melody and rhythm. Similarly poetry, drama, pictures, idols, etc. The net will come under the periphery of art, only then there should be beautiful results of artha, rasa, emotion and form.


      The word Kala is first used in Rigveda. Art is a Sanskrit word. It is derived from the root kal which means:- To inspire. But some scholars consider its origin from the kadh, which means: - Happiness.


Definition of Art

Expressing the thoughts generated in the human mind is called ART.  Art has been defined by various scholars, some of which are as follows -

According to Rabindranath Tagore, “Man expresses himself in art.”

According to Jaishankar Prasad, "The narrow form of the power of God's duty which we get for realization, that is art."

According to Maithilisharan Gupta, "Art is the skillful power of expression, which is the fulfillment of imperfect art."


According to Nietzsche, “Art is a means of liberation from the bitter experiences of life.


Note:- Friedrich Nietzsche was a German philosopher. Nietzsche has played an important role in developing psychoanalysis, existentialism and phenomenological thinking. Both individualist and statist thinkers have also taken inspiration from him.

According to Plato, "Art is the imitation of truth."

Note:- Plato, or Aflatun, was a famous Greek philosopher. He was a disciple of Socrates and a teacher of Aristotle. Plato is credited with classifying sounds in Europe.

According to Aristotle, "Art is the imitation of nature.

Note:- Aristotle was a Greek philosopher. He was a disciple of Plato and a teacher of Alexander. He was born in a town called Stegeria. Aristotle composed on many subjects including physics, spirituality, poetry, drama, music, logic, political science, ethics, biology. Aristotle carried forward the work of his mentor Plato.

According to Freud, "Art is the embodiment of repressed desires."


Note:- Sigmund Freud was an Austrian Hungarian neuroscientist and the founder of psychoanalysis.


According to Kroche, "Every great art is an expression of the human spirit towards a divine creation."


According to Tolstoy, "Art is the expression of emotion by action, line, colour, sound or words in such a way that the same emotion arises in the mind of the one who sees or hears it."


According to Hegel, "Art is a medium to expressing physical existence."


According to Ruskin, "In art man expresses his feelings.


Note:- Ruskin Bond is a world-famous Indian writer of the English language.

शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

माध्यमिक पेपर - 1 एसटीईटी 2023 के लिए पाठ्यक्रम। (Syllabus for Madhyamic Paper 1 STET 2023)

माध्यमिक पेपर - 1 एसटीईटी 2023 के लिए पाठ्यक्रम।
Syllabus for Madhyamic Paper 1 STET 2023







Subject - Fine Art.

विषय - ललित कला



UNIT - 01

इकाई - 01


  • कला का अर्थ एवं परिभाषा
  •  चित्र कला
  • चित्रकला में प्रयुक्त कला सामग्री एवं निर्माण विधियाँ


UNIT -01

इकाई - 02


  • मूर्तिकला
  • मूर्तिकला में प्रयुक्त कला सामग्री एवं निर्माण विधियाँ
  • वास्तुशिल्प

UNIT - 03

इकाई - 03

  • छापा कला
  • छापा कला प्रयुक्त कला सामग्री एवं निर्माण विधियाँ


UNIT - 04

इकाई - 04

  • व्यवहारिक कला
  • व्यवहारिक कला में प्रयुक्त कला सामग्री एवं निर्माण विधियाँ


UNIT - 05

इकाई - 05


  • भारतीय कला इतिहास



UNIT - 06

इकाई - 06


  • विश्व कला इतिहास


UNIT - 07

इकाई - 07


  • डिजाईन
  • कला एवं तकनिकी


UNIT - 08

इकाई - 08


  • विश्व फोटोग्राफी


UNIT - 09

इकाई - 09


  • भारतीय सौन्दर्य शास्त्र
  • पाश्चात्य सौन्दर्य शास्त्र
  • भारतीय प्रतिमा विज्ञान


UNIT - 10

इकाई - 10


  • कला संयोजन के सिद्धान्त
  • कला के तत्व


UNIT - 11

इकाई - 11

  • लोक कला
  • आदिम कला
  • क्राफ्ट

UNIT - 12

इकाई - 12


  • समकालीन कला प्रवृित्तियाँ


UNIT - 13

इकाई - 13


  • दृश्य कला का अन्य विधाओं से अन्तःसंबंध
  • प्रचलित कला विधाएँ


UNIT - 14

इकाई - 14


  • प्रमुख कलाकार एवं कृतियाँ
  • कला लेखन, प्रमुख पुस्तकें एवं कला पत्रिकाएं
  • कला समीक्षा
  • कला दीर्घा एवं संग्रहालय
  • कला प्रबंधन


UNIT - 15

इकाई - 15


  • कला संस्थान, अकादमी एवं कला फाउंडेशन
  •  कला बाजार
  • कला मेला
  • प्रमुख प्रदर्शनियाँ


Syllabus for Art of Teaching and Other Skills STET - 2023


Art of Teaching, Other skills


(A) Art of Teaching

(B) Other skills


A. Art of Teaching 


1. Teaching & Learning:- Meaning, Process & Characteristics.


2. Teaching Objectives and Instructional Objectives:- Meaning & Types, Blooms Taxonomy.

3. Teaching Methods:- Types and its Characteristics, Merit, and demerits of Methods.


4. Lesson Plan:- Types and Format & Various Model. 5. Microteaching & Instructional analysis


6. Effective ecosystem of Classroom.


7. Textbook and Library


8. Qualities of Teacher.


9. Evaluation & Assessment for learning.


10. Curriculum.


11. Factors affecting teaching and learning. 


12. Teaching Aids and Hands-on learning.


B. Other skills


1. General Knowledge,


2.Environmental Science


3. Mathematical aptitude.


4.logical Reasoning.


शिक्षण कला और अन्य कौशल के लिए पाठ्यक्रम एसटीईटी-2023


शिक्षण कला, अन्य कौशल


(a) कला शिक्षण 

(B) अन्य कौशल


(a) अध्यापन की कला 


1. शिक्षण और अधिगमः- अर्थ, प्रक्रिया और विशेषताएँ।

2. शिक्षण उद्देश्य और निर्देशात्मक उद्देश्यः- अर्थ और प्रकार, ब्लूम का वर्गीकरण।

3. शिक्षण विधियाँः- विधियों के प्रकार और उनकी विशेषताएँ, योग्यता और अवगुण।

4. पाठ योजनाः- प्रकार और प्रारूप और विभिन्न मॉडल। 

5. सूक्ष्म अधिगम और निर्देशात्मक विश्लेषण।

6. कक्षा का प्रभावी पारिस्थितिकी तंत्र।

7. पाठ्य पुस्तक और पुस्तकालय।

8. शिक्षक के गुण।

9. सीखने के लिए अवलोकन और मूल्यांकन।

10. पाठ्यक्रम।

11. शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक। 

12. शिक्षण सहायक सामग्री और हाथों से सीखना/ सिखाना।


बी. अन्य कौशल


1. सामान्य ज्ञान,

2. पर्यावरण विज्ञान

3. गणितीय योग्यता।

4. तार्किक विचार।


गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुझे ख़ामख़ा ही फंसाया गया है। (I have been falsely implicated.)



मुझे ख़ामख़ा ही फंसाया गया है।

जहर-ए-मुहब्बत का पिलाया गया है ।।


जो बेबात हँसता है उसको समझिए।

हजारों दफ़ा दिल उसका दुःखाया😢 गया है।।


जिसे अपनी तन्हाई से है मुहब्बत।

बहुत इश्क़ में वो सताया गया है।।


शराफ़त का चोला है जिसके बदन पे।

उन्हीं का ज़ेहन काला पाया गया है।।


 हम भी चाह बैठे थे उसको अपना।

 जिसे मेरे काबिल बताया गया है।।


हुई उसकी कामिल तमन्ना आज पुरी।

मज़ार मेरा सजाया गया है।।


 साभार - सोशल मीडिया


I have been falsely implicated.


I have been falsely implicated.


 Fed the poison of love for me.



 Understand the one who laughs unnecessarily.

Thousands of times his heart has been hurt.



 Who is in love with his loneliness.

He has been tortured a lot in love.



 On whose body is the robe of decency.

 His mind has been found to be black.


We too wanted him as our own.

 Who has not been made capable of me.


 His wish came true today.

My tomb was decorated.


Courtesy - Social Media

गुरुवार, 3 अगस्त 2023

वाल्मीकि रामायण (भाग - 13) Valmiki Ramayana, - Part.- 13



रात बीती और पुष्य नक्षत्र में राज्याभिषेक का शुभ-मुहूर्त आ गया। अपने शिष्यों के साथ महर्षि वसिष्ठ राज्याभिषेक की आवश्यक सामग्री लेकर राजा दशरथ के अंतःपुर में पहुंचे। उन्होंने मंत्री सुमन्त्र से कहा, "सूत! तुम शीघ्र जाकर महाराज को मेरे आगमन की सूचना दो।"
"उन्हें बताओ कि श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए सारी सामग्री एकत्र कर ली गई है। गंगाजल से भरे कलश ला लिए गए हैं। सोने के कलशों में समुद्र का जल भी आ गया है। अभिषेक के लिए गूलर की लकड़ी का भद्रपीठ बनाया गया है, जिस पर बिठाकर श्रीराम का राज्याभिषेक होगा। सब प्रकार के बीज, गन्ध, कई प्रकार के रत्न, शहद, दही, खील, कुश, फूल, दूध, आठ सुंदरी कन्याएं, गजराज, चार घोड़ोंवाला रथ, चमचमाता खड्ग, उत्तम धनुष, पालकी, श्वेत छत्र, चंवर, सोने की झारी, स्वर्णमाला से अलंकृत ऊंचे डील वाला श्वेत पीतवर्ण का वृषभ, चार दाढ़ों वाला सिंह, उत्तम अश्व, सिंहासन, व्याघ्रचर्म, समिधाएं, अग्नि, सब प्रकार के वाद्य, वारांगनाएं, सौभाग्यवती स्त्रियां, आचार्य, ब्राह्मण, गौ, पवित्र पशु-पक्षी, देश-देश के प्रसिद्ध व्यापारी और उनके सेवक तथा बड़ी संख्या में प्रजाजन प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए उपस्थित हैं। तुम महाराज से शीघ्र चलने को कहो, ताकि यह शुभ मुहूर्त बीत न जाए।"
वसिष्ठ जी की यह बात सुनकर सुमन्त्र राजा दशरथ के पास गए। राजा का आदेश था कि सुमन्त्र को कभी भी उनके पास आने से रोका न जाए, अतः वे सीधे ही महाराज के कक्ष में जा पहुंचे।
उन्हें राजा के दुःख का पता न था। अतः उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक दशरथ जी से कहा, "महाराज! श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी पूर्ण हो गई है और सब आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
यह सुनकर दशरथ जी का शोक और भी बढ़ गया। उन्होंने कहा, "तुम यह बात कहकर मेरी पीड़ा को और अधिक क्यों बढ़ा रहे हो?"
सुमन्त्र को इस बात से बड़ा अचंभा हुआ। वे समझ नहीं पाए कि इस पर क्या कहें।
तभी कैकेयी बोली, "सुमन्त्र!!! श्रीराम के राज्याभिषेक के हर्ष से महाराज सारी रात सो नहीं पाए हैं। अत्यधिक थकावट के कारण इन्हें नींद आ गई है। तुम तुरंत जाओ और श्रीराम को यहां बुला लाओ।"
तब सुमन्त्र ने कहा, "भामिनी! मैं महाराज की आज्ञा के बिना कैसे जा सकता हूं?"
इस पर दशरथ जी बोले, "सुमन्त्र! मैं सुन्दर श्रीराम को देखना चाहता हूं। तुम शीघ्र ही उसे यहां ले आओ।"
राजा की यह आज्ञा सुनते ही सुमन्त्र तुरंत श्रीराम को बुलाने के लिए निकल पड़े। वे यह भी सोचते जा रहे थे कि न जाने क्यों कैकेयी इस प्रकार श्रीराम को शीघ्र बुलाने की उतावली कर रही थी।
श्रीराम के महल में पहुंचकर उन्होंने देखा कि बड़ी संख्या में नगरवासी श्रीराम के लिए उपहार लेकर द्वार पर खड़े हैं। श्रीराम की सवारी में उपयोग किया जाने वाला शत्रुञ्जय नामक सुन्दर गजराज भी वहां था। राजा के अनेक प्रमुख मंत्री भी सुन्दर वस्त्राभूषणों से विभूषित होकर हाथी, घोड़े और रथों पर वहां आए हुए थे।
सब लोगों को एक ओर हटाकर सुमन्त्र ने श्रीराम के महल में प्रवेश किया।
वहाँ भीड़ बिल्कुल भी नहीं थी। एकाग्रचित्त एवं सावधान युवक प्रास (भाला) और धनुष लेकर श्रीराम की सुरक्षा में डटे हुए थे। उनके कानों में शुद्ध सोने के कुण्डल झिलमिला रहे थे।
ड्योढ़ी में सुमन्त्र को गेरुआ वस्त्र पहले और हाथ में छड़ी लिए वस्त्राभूषणों से अलंकृत अनेक वृद्ध पुरुष दिखाई दिए। वे अन्तःपुर की स्त्रियों के संरक्षक थे। सुमन्त्र को आता देख तत्काल वे सब उठकर खड़े हो गए। सुमन्त्र ने उनसे कहा, “आप लोग शीघ्र जाकर श्रीरामचन्द्र से कहें कि सुमन्त्र द्वार पर खड़े हैं।”
सन्देश मिलते ही श्रीराम ने अपने पिता के उस अन्तरंग सेवक को अन्तःपुर में ही बुला लिया।
वहाँ पहुँचकर सुमन्त्र ने देखा कि वस्त्राभूषणों से अलंकृत श्रीरामचन्द्रजी सोने से बने पलंग पर बैठे हैं। उनके अंगों में सुगन्धित चंदन का लेप लगा हुआ है। देवी सीता भी उनके पास ही बैठी हैं।
उन्हें प्रणाम करके सुमन्त्र ने कहा, “श्रीराम! इस समय रानी कैकेयी के साथ बैठे हुए आपके पिताजी तुरंत आपको देखना चाहते हैं। अतः आप वहाँ चलिये, विलंब न कीजिये।
यह सुनकर श्रीराम अपनी पत्नी सीता से बोले, “देवी! लगता है कि पिताजी और माता कैकेयी दोनों मिलकर मेरे बारे में ही कुछ विचार कर रहे हैं। निश्चय ही मेरे अभिषेक से संबंधित कोई बात हो रही होगी। माता कैकेयी सदा ही मेरा भला चाहती हैं। मेरे अभिषेक का समाचार सुनकर वे अत्यंत प्रसन्न हुई होंगी। अतः वे महाराज को मेरा अभिषेक जल्दी करने को कह रही होंगी। अवश्य ही महाराज आज ही मुझे युवराज पद पर अभिषिक्त करेंगे। मैं शीघ्र जाकर उनका दर्शन करता हूँ।”
ऐसा कहकर श्रीराम अपने कक्ष से बाहर निकले।
वहाँ उन्होंने द्वार पर भाई लक्ष्मण को विनीत भाव से हाथ जोड़कर खड़े देखा। इससे आगे बढ़ने पर बीच वाले कक्ष में आकर वे अपने मित्रों से मिले और सबसे बाहर वाले कक्ष में अन्य प्रार्थी जनों से मिलकर वे व्याघ्रचर्म से आवृत्त, अपने शोभाशाली तेजस्वी रथ पर आरूढ़ हुए। उस रथ की घरघराहट मेघों की गम्भीर गर्जना के समान सुनाई पड़ती थी। वह बहुत विस्तृत था और मणियों एवं स्वर्ण से विभूषित था। उसमें उत्तम घोड़े जुते हुए थे। श्रीराम के भाई लक्ष्मण भी हाथ में चँवर लेकर उस रथ पर बैठ गए और पीछे से अपने ज्येष्ठ भ्राता की रक्षा करने लगे।
श्रीराम को आता देख नगरवासी भी भारी संख्या में अपने घरों से बाहर निकल आये और उनके पीछे-पीछे चलने लगे। उनके आगे कवच आदि से सुसज्जित और खड्ग व धनुष धारण किये हुए अनेक शूरवीर योद्धा चल रहे थे। पूरे मार्ग में घरों की खिड़कियों से महिलाएं उन पर पुष्पवर्षा कर रही थीं।
इस प्रकार बढ़ते हुए वे राजा दशरथ के भवन में आ पहुँचे।
महाराज दशरथ का वह महल अनेक रूप-रंग वाली उज्ज्वल अट्टालिकाओं से सुशोभित था। उसमें रत्नों की जाली से विभूषित तथा विमान के आकार वाले विलासगृह बने हुए थे। वह भवन इतना ऊँचा था, मानो आकाश को भी लांघ रहा हो। अपने पिता के महल में पहुँचने पर श्रीराम ने धनुर्धर वीरों द्वारा सुरक्षित उस महल की तीन ड्योढ़ियों को रथ से ही पार किया। अंतिम दो ड्योढ़ियाँ उन्होंने पैदल पार कीं।
महल में पहुँचकर श्रीराम ने पिता को कैकेयी के साथ एक सुन्दर आसन पर बैठे देखा। वे विषाद में डूबे हुए थे। उनका मुँह सूख गया था और वे बड़े दयनीय दिखाई दे रहे थे। श्रीराम ने उन्हें व रानी कैकेयी को प्रणाम किया।
उस दीनदशा से ग्रस्त राजा दशरथ केवल एक बार ‘राम!’ कह पाए और चुप हो गए। उनके नेत्रों में आँसू भर गए। उनका वह अभूतपूर्व भयंकर रूप देखकर श्रीराम को भी भय हो गया। राजा दशरथ शोक और संताप से दुर्बल हो रहे थे। उनके चित्त में बड़ी व्याकुलता थी। श्रीराम सोचने लगे कि उनकी व्यथा का कारण क्या हो सकता है।
अंततः उन्होंने कैकेयी से ही पूछा, “माता! पिताजी तो क्रोधित होने पर भी मुझे देखते ही सदा प्रसन्न हो जाते थे, किन्तु आज ऐसी क्या बात हो गई कि मुझे देखकर इन्हें इतना कष्ट हो रहा है? कहीं अनजाने में मुझसे कोई अपराध तो नहीं हो गया है अथवा इन्हें कोई शारीरिक रोग या मानसिक चिंता तो नहीं पीड़ित कर रही है? कहीं तुमने तो इन्हें कोई कठोर बात नहीं कह दी, जिससे इनका मन दुखी हो गया है?”
तब कैकेयी बोली, “राम! महाराज कुपित नहीं हैं और न इन्हें कोई कष्ट हुआ है। इनके मन में एक बात है, किन्तु तुम्हारे भय से ये कह नहीं पा रहे हैं। पहले तो इन्होने मेरा सत्कार करते हुए मुझे मुँहमाँगा वरदान दे दिया और अब ये गँवार मनुष्यों की भांति उसके लिए पछता रहे हैं। इन्होने जिस बात के लिए मुझसे प्रतिज्ञा की है, उसका तुम्हें अवश्य पालन करना चाहिए अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि आज तुम्हारे मोह के कारण महाराज सत्य को ही छोड़ बैठें। वह बात चाहे शुभ हो या अशुभ, पर तुम यदि उसे पूर्ण करने का वचन दो, तभी मैं तुम्हें वह बता सकती हूँ।”
यह सुनकर श्रीराम के मन में बड़ी व्यथा हुई। उन्होंने कहा, “धिक्कार है देवी! तुम्हें मेरे बारे में ऐसा संदेह नहीं करना चाहिए। महाराज मेरे गुरु, पिता और हितैषी हैं। उनकी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। उन्हें जो अभीष्ट है, वह मुझे बताओ।”
तब कैकेयी ने कहा, “देवासुर संग्राम में मैंने तुम्हारे पिता की रक्षा की थी और प्रसन्न होकर उन्होंने मुझे दो वर दिए थे। उनमें से पहला वर मैंने यह माँगा है कि भरत का राज्याभिषेक हो और दूसरा यह माँगा है कि आज ही तुम्हें दण्डकारण्य में भेज दिया जाए।”
“तुम्हारे राज्याभिषेक के लिए यह जो सारी तैयारी की गई है, इससे अब भरत का राज्याभिषेक होना चाहिए और तुम्हें आज ही जटा और चीर धारण करके चौदह वर्षों के लिए दण्डकारण्य में चले जाना चाहिए।”
“महाराज बस इतनी-सी बात से दुखी हैं कि तुम्हारे वन में जाने से इन्हें तुम्हारे वियोग का कष्ट सहना पड़ेगा, किन्तु श्रीराम! तुम राजा की इस आज्ञा का पालन करो, ताकि इनकी प्रतिज्ञा झूठी न हो जाए।”
इतने कठोर वचन सुनकर भी श्रीराम के हृदय में कोई शोक नहीं हुआ, किन्तु महाराज दशरथ अपने पुत्र के वियोग का विचार करके और अधिक दुखी एवं व्यथित हो उठे।

आगे अगले भाग में..…

जय श्रीराम 🙏
पं रविकांत बैसान्दर ✍🏻