"अहिंसावादी कवि" यह मेरी एक छोटी सी हास्य व्यंग रचना है। इसे हास्य के रुप में ही पढ़े, अन्यथा ना लें।
अहिंसावादी कवि (Non-Violent Poet)
कवि सम्मेलन की गरिमा और एक अहिंसावादी कवि (Non-Violent poet) श्री महेन्द्र कुमार मिसिर/मिश्रा जी का आगमन हो रहा है। आप सभी जोरदार तालियों से इनका स्वागत कीजिए। जैसे ही मंच से ये उद्घोषणा हुई। पूरा परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मिश्रा जी बनारस वाले, जो कब से अपनी बाड़ी का इन्तजार कर रहे थे और इस तन्हाँ इन्तेजार में इतनी चाय की चुस्कियाँ ले चुके थे की अब चाय वाला भी इनके पास नहीं आ रहा था। चाय कि तलब को दुर करने लिए उन्होने पान को मुँह में ले रखा था। जैसे ही नाम पुकारा गया अपने पान की पिक को थूकने की जगह ढुंढने लगे। लेकिन मंच पर व्यवस्थापकों के तरफ से ऐसी व्यवस्था न देख मिश्रा जी तुरंत ही Violent हो गए। लेकिन वो कर भी क्या सकते थे। उनके आस-पास कोई कार्यकर्ता दिखाई भी नहीं दे रहा था। और उनके नाम का उद्घोष कवि के रूप में लगातार हो रहा था फिर उसने अपने आप को Non-Violent में तब्दिल किया और मंच से सटे एक दिवार के कोने पर कैमरे से नजर बचाते हुए अपने पान की पिक को तुलिका और दिवाल को कैनवास समझते हुए चित्रकारी कर दी।
अगले ही पल मंद-मंद मुस्कुराते हुए मिसिर जी ने अपने काव्य रचना पढ़नी शुरू की:-
परोपकार अब है कहां, इस जमाने में।
एक हाथ देकर, दुसरा चुपके से मांग लेते हैं।
सहानुभुती की बातें तो कोरी रह गयी,
बिन गलती देखे गोलियां दाग देते हैं।
खुदगर्जी भी मेरी कह रही है मुझसे,
तुम्हारे अहसानों का कर्ज उतार देंगे।
पर हम अहिंसावादी (Non-Violent) वाले कवि है,
तुम्हारे तन-मन को छलनी नहीं करेंगे।
उनकी कविता पूर्ण होती उससे पहले ही माइक में कुछ समस्या उत्पण हो गयी और वो जो उतनी देर से Non-Violent होकर सभी कवियों को सुन रहा था अचानक से Violent हो गया।
मिश्रा जी को लगा कि हम भी अपना Non-Violent रूप इसके सामने प्रकट करें तभी उनकी नजर कैमरे वाले भईया के उपर पड़ी जो शाम से ही लगातार सभी कवियों की तस्वीरें कैमरे में कैद करते-करते थक गया था और थोड़ी सी राहत लेने के उद्देश्य से कुर्सी पर बैठा ही था कि इस Violence वाली क्रिया से उसकी निद्रा टूट गयी और वो लगातार मिश्रा जी की तस्वीरें उतारने लगा। विडियोग्राफी वाला भी जो कि उतनी देर से दर्शको के तरफ था वो भी वहां से हटकर मिश्रा जी को केन्द्रित करने लगा था।
पांच मिनट (05 Min.) में फिर कवि सम्मेलन को शुरू किया गया आयोजकों ने माफी मांगी। मिश्रा जी को पुनः माईक दिया गया इस बार उन्होंने दूसरी कविता पढ़नी शुरू की -
चुनौतियों से टकराएंगे नहीं,
चुनौतियों को समझाएंगे हम।
धर्म और अहिंसा की राह पर चल,
दुनिया को दिखांएगे हम।
कोई पत्थर मारेगा यदि हमें,
उस परिस्थिति में भी मुस्कुराएंगे हम।
प्रेम से, अनुराग से, शुद्ध भाव से,
विश्वजीत (World winner) बन जाएंगे हम।
तालियों की शोर से पूरा परिसर गूंज उठा और मिसिर जी ने एक से बढ़कर एक अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते रहे। अंतिम प्रस्तुती में मिश्रा जी ने कहां -
युवाओं में जोश होता है,
बुजुर्गों में होश होता है।
जोश और होश जब आपस में मिल जाएं तो,
उसका इस दुनिया में जयघोश होता है।
कवि सम्मेलन की समाप्ति के अगले ही दिन कुछ मीडिया के कर्मी सुबह-सुबह मिश्रा जी के घर पहुंच गए वजह यह था कि वें जानना चाह रहे थे कि
उनके इस अहिंसावादी विचार के पीछे वजह क्या है?
वो कौन सी प्रेरणा है जो इनको अहिंसावादी बनने को प्रेरित करती है?
ऐसे बहुत सारे प्रश्न थे जिनका उत्तर उन सभी पत्रकार बंधुओं को जानना था लेकिन बहुत देर तक Doorbell (दरवाजे की घंटी) बजाने के बाद भी जब मिश्रा जी ने दरवाजा नहीं खोला तब पत्रकारों की भी चिंता बढ़ गयी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारा और लगातार Doorbell बजाते रहे। बहुत देर के बाद उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला। पत्नी का चेहरा पूरी तरह से सूजा हुआ था। बदन पर जख्म के निशान अभी ताजा थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कुछ घंटे पहले ही उनके साथ Violence (हिंसा) किया गया है। एक महिला पत्रकार नें उनसे पूछा मैम ये कैसे हुआ? तब उन्होंने कहां कल रात ये एक कवि सम्मेलन में गए हुए थे रात में देर से आए। मैंने पूछा देर क्यों हुआ तब वो बोले कवि सम्मेलन में था। वहां उन्होनें भोजन भी नहीं दिया। मैंने फटाफट भोजन तैयार किया। जल्दबाजी में नमक भूल गयी जैसे ही उन्होनें भोजन शुरू किया तुरंत ही Violent हो गए....
.....परिणाम आप सभी के सामने है।